अपनी स्मार्टनेस का कॅरियर में कैसे फायदा उठाएं?

कार्यस्थलों का इन दिनों एक खास नारा है- ‘मेहनत नहीं, होशियारी से काम करिये सफलता आपके कदम चूमेगी।’ सवाल है हम अपनी स्मार्टनेस या होशियारी का फायदा अपने कॅरियर में कैसे उठाएं? याद रखिए अगर सिर्फ मेहनत से सफलता मिलती होती और सिर्फ मेहनत से आदमी सम्पन्न हुआ होता तो मज़दूर सबसे ज्यादा सफल और सम्पन्न होता। सफलता और सम्पन्नता के लिए मेहनत तो बहुत ज़रूरी होती ही है, लेकिन सिर्फ मेहनत ही नहीं, होशियारी के साथ की गई मेहनत यानी ‘हार्ड वर्क विद स्मार्टनेस’। क्योंकि जब हम बुद्धिमानी से, होशियारी से, मेहनत करते हैं तो ऊर्जा के साथ साथ हम उसमें अपनी कुशलता और दूरदृष्टि भी लगाते हैं। इससे हमें सफलता ही नहीं, नतीजा भी ज्यादा और जल्दी मिलता है। मगर सवाल यह भी है कि आखिर हममें यह गुण आए कैसे या इसकी आदत कैसे पड़े? इसके लिए जरूरी है कि हम अपनी सोच को आलोचनात्मक बनाएं यानी कोई हमारे काम पर सवाल उठाए, इससे पहले हम ही अपने काम के तरीके पर दर्जनों सवाल उठाएं किसी और से नहीं खुद अपने से, फिर ईमानदारी से यह जानें कि हमारे काम करने का तरीका तारीफ के लायक है या गुस्सा दिलाता है।
हम अपने कॅरियर में अपनी स्मार्टनेस का बेहतर इस्तेमाल करें, इसके लिए हमारी सोच आलोचनात्मक होने के साथ-साथ हर समस्या का कोई न कोई समाधान ढूंढ़ने की भी हममें आदत होनी चाहिए। कुछ लोग छोटी से छोटी समस्या के सामने हाथ खड़ी कर देते हैं, हथियार डाल देते हैं। क्योंकि उन लोगों के पास यह सुविधा होती है कि सोचने का भार उन पर नहीं होता, ऐसे में ये लोग सोचते हैं, वो क्यों सोचे, जो लोग सोचने का पैसा लेते हैं, वही क्यों न सोचें? दरअसल यह बहुत नकारात्मक तरीका है। तकनीकी रूप से यह सही है। अगर आपको सोचने का काम नहीं है तो आप नहीं भी सोचेंगे तो भी आपकी नौकरी बनी रहेगी। लेकिन अगर आपका काम न होने के बावजूद आप कुछ सोचेंगे, साधारण ही सही समस्या का समाधान ढूंढ़ निकालेंगे तो इसका आपको बढ़ चढ़कर लाभ मिलेगा। आप जिसके मातहत हैं, उसका प्यार और उसकी नजदीकी तो मिलेगी ही, आपको इसका आर्थिक लाभ भी मिलेगा। समय से पहले प्रमोशन भी मिलेगा और हां, आपकी इज्जत भी बढ़ेगी। इसलिए अगर थोड़ा सा दिमाग डालकर किसी ऐसी समस्या का समाधान हम भी ढूंढ़ने की कोशिश करते हैं,जिसका समाधान ढूंढ़ने की हमारी जिम्मेदारी नहीं है, तो ऐसा करने से हमें कोई नुकसान नहीं होगा, फायदे ज़रूर बहुत होंगे।
जब हम अपने काम को लेकर आलोचनात्मक तरीके से सोचने लगते हैं, सोचने के क्रम में हम समस्याओं का हल ढूंढ़ने लगते हैं तो किसी काम को सीखने की हमारी क्षमता तेजी से बढ़ जाती है। हमारा काम बेहतर हो जाता है। हम काम करने के दौरान आने वाली कई बड़ी-बड़ी समस्याओं का आसानी से समाधान निकालने लगते हैं और यह सब करते करते हम अपने काम करने की रफ्तार तो बढ़ाते ही हैं, कुछ ऐसी तरकीबें और ढंग भी ढूंढ़ लेते हैं, काम करने की जैसी तकरीबें और ढंग पहले नहीं होते। इससे हमारी स्मार्टनेस का, हमारे इर्द-गिर्द डंका बजने लगता है। जाहिर है यह हमारी सफलता का सूचक है। हमें जल्दी-जल्दी प्रमोशन मिलते हैं। हम अपने बॉस की नज़रों में सम्मानजनक जगह पाते हैं और हमें ऐसी जिम्मेदारियां भी बिना कहे मिलने लगती हैं, जिससे हमारा ओहदा चुपचाप बढ़ने लगता है। मगर सवाल यह है कि अपनी स्मार्टनेस का अपने कॅरियर में सिस्टमेटिक रूप से इस्तेमाल करना कैसे शुरु करें?
सबसे पहले कार्यस्थल पर हम अपने व्यवहार से अपनी गुड विल बनाएं। मतलब हमारी लोग इज्जत करें, ऐसा तभी होगा, जब हम दूसरे की इज्जत करें, किसी का मजाक नहीं उड़ाएं, लोगों से मुस्कुराकर और गर्मजोशी से मिलें, लेकिन किसी के व्यक्तिगत जीवन में न झांकने की कोशिश करें और न ही टांग आड़ने की। कार्यस्थल पर अपनी स्मार्टनेस दिखाने का यह शुरुआती तरीका है। इसके बाद हमें काम के जटिल मुद्दों पर चुपचाप उम्मीदों से ज्यादा सोचना होगा। अगर हम सोच लेते हैं तो बहुत अच्छा, काम के संबंध में डिस्कशन के दौरान हम बेहतर तरीके से सोची गई अपनी बात को सही समय पर रख सकते हैं और अगर इसमें कोई वाकई आकर्षक पहलू हुआ तो हम अपना नजरिया पेश करते ही, बॉस की नज़रों में चढ़ जाएंगे और भले उससे हमारे काम को कोई अतिरिक्त फायदा न मिले, लेकिन हम पर ध्यान अतिरिक्त रूप से ज़रूर दिया जाने लगेगा। कॅरियर में सफलता पाने का एक तरीका यह भी है कि हम अपने सहकर्मियों के साथ और जिनके साथ हम कामकाजी ज़रूरतों के लिए मुखातिब होते हैं, उन सबके साथ हमारा बातचीत करने का तरीका प्रभावी हो। हम जो कुछ कहें यानी किसी सवाल का अगर कुछ भी जवाब दें तो वह यूं ही हवाहवाई न हो बल्कि सोचा समझा और ध्यान खींचने वाला जवाब हो।  हमें यह बात भी ध्यान रखनी होगी कि हमारे बात करने का तरीका बिल्कुल स्पष्ट हो, अपनी बात हम जलेबी की तरह गोल गोल न घुमाएं, न ही अप्रत्यक्ष तरीके से कहें। आम को आम कहें, इमली को इमली। इससे हम अपनी बात दूसरों तक आसानी से पहुंचाते हैं। ऐसी छवि न बनाएं कि आपसे कुछ कहते हुए लोग कई बार सोचें। ऐसा स्वाभाव न प्रदर्शित करें कि बॉस को भी आपसे कुछ अतिरिक्त काम लेने के लिए कई बार सोचना पड़े। याद रखिए, दफ्तर में स्वाभाव का लचीलापन आपको सबके बीच खास बनाता है।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर