आइए, टोपी पहना दूं 

वैसे तो टोपीबाजों की कमी नहीं है। समाज में हर तरह के टोपीबाज मौजूद हैं। लेकिन असल में टोपीबाज उसी को कहते हैं जो अपने समानों के अवगुण को छिपाकर सिर्फ गुण का ज्यादा बखान या गुणगान कर ग्राहक रूपी भगवान को आसान शब्दों में मुर्ख बनाकर सहर्ष अपने सामान को अच्छे दामों में बेच दे। टोपीबाज को दूसरे शब्दों में चूना लगाने वाले भी कह सकते हैं। फलां ने अपना सामान बेचकर अगले को ऐसा चूना लगाया कि वक्त-बेवक्त जितना में खरीदा था उसके मुरम्मत में ही उससे दुगुना लग गया। तब नाक भौं सिकोड़ते खार खाए एकदम से भन्ना, अपने गुस्से का इजहार प्यार से नहीं बल्कि बुनते या उबलते हुए तकरार से करता है। 
कम्बख्त मीठा-मीठा बोलकर सटाकर ऐसा कांटा मानो सरेआम गाल पर चांटा मारा हो।
आज टोपी पहनाने वाले आज इस कदर हाबी हो गए हैं कि कोई भी ऐसा क्षेत्र नहीं जो इससे अछूता बचा हो।
हमारे पड़ोस के रहमत लाल अपने बेटे जहमत लाल को एम.बी.ए. कराने के लिए कॉलेजों का चक्कर लगा रहे थे। रहमत लाल को मालूम है कि शिक्षा के क्षेत्र में टोपीबाज़ों की संख्या भरमार है। कॉलेज में प्रवेश करते के साथ ही नया मुल्ला समझ एकदम से खुल्लम-खुल्ला बातचीत करने पर उतरते। अपने चैंबर में चाय पानी कराकर अच्छी तरह इनका पर कतरते। रहमत लाल जानते थे कि वगैर टोपीबाज का उनका काम काज होने वाला नहीं। मामला अधर में लटक जाएगा। इसलिए और कहीं भटकना छोड़ यहीं पर अटक गए।
इस टोपीबाजों की दुनिया में जहमत लाल जोकि अभी विद्यार्थी हैं वह भी कम टोपीबाज नहीं है। वह मन-ही-मन स्वयं से कहता है, आज तेरा दिन है। कल से कालेज में मेरा दिन शुरू हो जाएगा। खैर रहमत लाल ने उस टोपीबाज से मामला फिट कर दिया। उसने कहा, ‘आपका लड़का कंप्लीट एम.बी.ए. का डिग्री लेकर निकलेगा।’
जहमतलाल उस टोपीबाज को देखकर मन-ही-मन कहा, ‘अब कम्पलीट होकर निकलेगा नहीं बल्कि अपने कमीशन के साथ तुम जो कैंडिडेट लाएगा उस पर भी ये जहमत लाल कमीशन खाएगा। क्योंकि इस मामले में जन्मजात टोपीबाज हूं। अब देखो तुम लोंगो पर कैसे गाज गिरेगा।’
जहमतलाल का एडमिशन होते ही टोपीबाज वाले धंधे में उतरकर बढ़-चढकर हिस्सा लेने लगे। कालेज में नये कैंडिडेट को पकड़ कर अपने हॉस्टल में ले जाते हैं और उसका एडमिशन करा कर ही वहां से उसको छोड़ते।
जहमतलाल का अल्प समय में ही धाक जम गया। शिक्षक के साथ मिलकर लाखों-लाख कमाने लगा। वहां के टीचिंग स्टाफ जिसका पेमेंट ही आधार था। इसने इस कारोबार में उतारकर उनके व्यापार को बढ़ा दिया।
जहमत लाल की बढ़ती साख को देखकर पहले से जो टोपीबाज थे उन पर गाज गिराकर स्वयं सरताज बन गया। 
आज जो भी क्षेत्र है, वहां टोपीबाज पहले से ही मौजूद है। बाबागिरी वाला लाइन में बाबा लोग अपने अल्प ज्ञान या अरसे से चली आ रही कथा को सुनाकर दान पुण्य नहीं करने पर गलत हश्र या भय दिखाकर या भक्तों को भय का टोपी पहनाकर मलाई चांप रहे हैं।
इसमें भी एक अलग किस्म के जेनुइन टोपीबाज होते हैं।
लंपटलाल टोपीवाला या टोपी पहनाने वाले का दुकान है। यह चूना लगाने या बहाने बनाकर कमाने वाला नहीं है। यह जेनुइन मुनाफा पर टोपी बेचने वाला टोपीबाज है। यहां नेता, अभिनेता से लेकर शादी-विवाह से लेकर दूल्हे-दुल्हन तक का उचित मूल्य पर यहां टोपी मिलता है। उचित मूल्य पर टोपी बेचा जाता है। इसलिए यहां डरने की ज़रूरत नहीं है। शायद ये टोपीबाज अपवाद में है। 

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