देश के पांच विख्यात दशहरा उत्सव

भारत विविधताओं का देश है। यहां के बारे में मशहूर है कि कोस कोस में पानी और सात कोस में बानी बदल जाती है। यही वजह है कि देश में बहुत कम यानी गिने चुने ही ऐसे पर्व और परंपराएं हैं, जिनकी पूरे देश में एक जैसी मान्यता है। उन्हें मनाये जाने का एक जैसा तरीका है। यहां तक कि होली और दिवाली जैसे हिंदुओं के दो सबसे बड़े त्योहार भी पूरे देश में एक जैसे उल्लास के साथ नहीं मनाये जाते, लेकिन इन सबके बीच दशहरा एकमात्र ऐसा त्योहार है, जो देश के हर कोने में अपनी स्थानीय परंपराओं के साथ पूरे जोश व उत्साह से मनाया जाता है। दशहरा देश में उत्तर-दक्षिण, पूर्व-पश्चिम ऐसा कोई इलाका नहीं है, जहां न मनाया जाता हो और जिसमें स्थानीय उमंग और उत्साह न शामिल हो। सच बात तो यह है कि दशहरा ही ऐसा त्योहार है, जिसे पूरे भारत में एक जैसी उमंग और उत्साह के साथ मनाया जाता है। हालांकि देश में करीब 20 हजार से ज्यादा अलग-अलग दशहरा समारोह होते हैं, इन सबके बारे में तो बता पाना भी संभव नहीं है, लेकिन उत्तर और दक्षिण भारत के पांच सबसे मशहूर दशहरा आयोजनों की हम इस लेख में चर्चा करेंगे, जिससे पता चलेगा कि कैसे दशहरा देश का सबसे बड़ा अखिल भारतीय सांस्कृतिक आयोजन है।
मैसूर का दशहरा
भारतीय राज्य कर्नाटक का दूसरा सबसे बड़ा शहर मैसूर है। यह शहर अपने महलों और सबसे ज्यादा अपने प्रसिद्ध विजयदशमी उत्सव के लिए जाना जाता है। 
मैसूर का दशहरा पूरी दुनिया में मशहूर है। यह दस दिनों तक चलने वाला एक भव्य आयोजन है, जिसकी शुरुआत 400 साल से भी पहले हुई थी। मैसूर का प्राचीन राजमहल अपने दशहरा आयोजन का पर्याय माना जाता है। 1610 में इस पर्व की शुरुआत राजा वाडिया प्रथम ने शुरु की थी। यह आज भी करीब-करीब वैसे ही मनाया जाता है, जैसे 1610 में इसकी शुरुआत हुई थी। 
इस त्योहार में हाथियों का जुलूस निकाला जाता है, जिसे जंबो सावरी कहा जाता है। इस जुलूस में शामिल होने वाले हाथियों की अगुवाई करने वाले हाथी की पीठ पर 750 किलो सोने का अंबारी होता है, जिसमें माता चामुंडेश्वरी की मूर्ति रखी जाती है। दशहरा के मौके पर मैसूर के राजमहल को भव्य तरीके से सजाया जाता है।
कुल्लू का दशहरा
मैसूर के दशहरे की तरह ही हिमाचल प्रदेश में स्थित कुल्लू का दशहरा भी देश विदेश में मशहूर है। यह भी एक किस्म का शाही उत्सव है, जो 8 दिनों तक चलता है। कुल्लू के दशहरे को देखने के लिए हर साल हजारों की तादाद में देसी, विदेशी पर्यटक आते हैं। लेकिन बाकी जगहों में जहां दशहरा नवरात्रि में शुरु होता है, वहीं कुल्लू का दशहरा विजयदशमी के बाद शुरु होता है और फिर अगले आठ दिनों तक चलता है। यह दशहरा उत्सव परंपरा, हिमाचली रीति रिवाज और इतिहास पर रोशनी डालने के साथ सम्पन्न होता है। कुल्लू का दशहरा उगते चांद के 10वें दिन से शुरु होता है। इस उत्सव में रावण, मेघनाथ और कुंभकर्ण के पुतलों का दहन नहीं किया जाता बल्कि इस उत्सव में भगवान रघुनाथजी की रथयात्रा निकाली जाती है, जिसमें हिस्सा लेने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं। इस उत्सव में देवी देवताओं की मूर्तियों को बेहद आकर्षक पालकियों में सजाकर उनका जुलूस निकाला जाता है। कुल्लू दशहरा के इस आयोजन में राजघराने के सभी सदस्य देवी देवताओं का आशीर्वाद लेने के लिए आते हैं। माना जाता है कुल्लू दशहरे की शुरुआत यहां के राजा जगत सिंह ने की थी। उन्हें कुष्ठ रोग था, जिससे छुटकारा पाने के लिए उन्हें एक साधु ने रघुनाथ जी की मूर्ति लाने की सलाह दी थी।
दिल्ली का दशहरा
देश की राजधानी दिल्ली अपने तरह-तरह के दशहरा आयोजनों के लिए भी प्रसिद्ध है। दिल्ली में कोई एक दो जगहों पर नहीं बल्कि नौ जगहों पर दशहरे का आयोजन किया जाता है। दिल्ली के इन नौ प्रसिद्ध दशहरों में शामिल हैं- रामलीला मैदान, सुभाष मैदान, लालकिला मैदान, डीडीए ग्राउंड एनएसपी प्रीतमपुरा दशहरा, धार्मिक लीला समिति लालकिला लॉन, श्रीराम भारतीय कला केंद्र द्वारका सेक्टर-10 का दशहरा, जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम का दशहरा और केशवपुरम रामलीला मैदान का दशहरा। अगर कहा जाए कि दिल्ली विख्यात दशहरा आयोजनों से पटी पड़ी है तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। सच्चाई तो यह है कि देश की राजधानी दिल्ली में होने वाले ये सभी दशहरा आयोजन न सिर्फ अपनी राष्ट्रीय पहचान बल्कि अलग सांस्कृतिक महत्व भी रखते हैं। 
बनारस का दशहरा
देश के मशहूर दशहरा आयोजनों में वाराणसी से सटे उपनगर रामनगर का दशहरे का भी शुमार होता है। इसे देखने के लिए भी दशहरा के अवसर पर देश विदेश में हजारों लोग आते हैं। हालांकि दिल्ली की तरह ही वाराणसी में जगह-जगह  रामलीलाओं का आयोजन होता है और पूरे दस दिन रातभर शहर में रामलीलाओं की धूम मची रहती है। लेकिन वाराणसी से सटे रामनगर में आयोजित होने वाला पिछले 200 सालों से यह दशहरा आयोजन अपने आपमें अनोखा है। इस दशहरे को देखने के लिए देश के हर कोने से रामकथा पर आस्था रखने वाले लोग आते हैं। रामनगर के दशहरे का खास महत्व यह है कि यहां एक महीने तक रामकथाओं के मंचन के बाद दशहरा आयोजन आता है और इसका समापन दशमी को नहीं बल्कि पूर्णमासी के दिन होता है। यहां होने वाली रामलीलाएं किसी स्टेज पर नहीं होती बल्कि दूर तक फैले गंगा के घाटों में होती हैं। हां, यहां रामलीला में हर एक सीन के लिए अलग स्थान को चुना जाता है यानी पूरे एक महीने तक रामलीलाओं का मंचन स्थान बदलता रहता है। 
बस्तर का दशहरा
दशहरे का यह आयोजन भी अपनी तरह का एक विशिष्ट आयोजन है। यहां दशहरा एक दो तीन दिनों तक नहीं बल्कि 75 दिनों तक आयोजित होता है और साल 2023 में तो इसका आयोजन 107 दिनों तक हुआ था। बस्तर दशहरे की शुरुआत पाठजात्रा रस्म के साथ होती है और फिर एक एक करके इसमें चौदह प्रमुख रस्में अदा की जाती हैं। बस्तर के दशहरे के आयोजन के दिनों की संख्या हर साल बदलती रहती है, क्योंकि यह संख्या ग्रह नक्षत्रों के आधार पर होती है। लेकिन यह बदलाव आमतौर पर दो या इससे कम दिनों की होती है। लेकिन 2023 में कुछ खास कारणों से यह बदलाव 25 दिनों का हुआ, मगर इस साल यह 77 दिनों का है। बस्तर दशहरे की प्रमुख रस्मों में पाठजात्रा, डेरी गढ़ई, काछनगादी, जोगी बिठाई, फूल रथयात्रा, बेल पूजा, निशाजात्रा, जोगी उठाई, मावली परघाव, भीतर रैनी, बाहर रैनी, मुरिया दरबार, कुटुंबजात्रा और होली विदाई के साथ दशहरा खत्म होता है। इस तरह देश के सैकड़ों रंग बिरंगे दशहरे आयोजनों में ये पांच प्रमुख आयोजन हैं।

-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर