मेघालय का सबसे विख्यात व सुन्दर लिविंग रूट ब्रिज

शिलोंग से लगभग 90 किमी की ड्राइव के बाद मैं मावलिननोंग पहुंचा, जहां से पाडू गांव बस कुछ ही फासले पर है। इसी पाडू गांव में पाडू पुल है, जोकि मेघालय का सबसे विख्यात व सुंदर लिविंग रूट ब्रिज है। लिविंग रूट ब्रिज यानी पेड़ की जीवित जड़ों से तैयार किया गया पुल। चौंक गये न कि क्या ज़मीन पर खड़े हुए पेड़ की जड़ों से भी पुल तैयार किया जा सकता है? ज़रुरत अविष्कार की जननी होती है। मेघालय के ज़मीनी व मौसमी हालात ऐसे हैं कि पेड़ भी खड़े रहें और उनकी जड़ों से पुल बनाकर नदी, नाले, खाई आदि आसानी से पार किये जा सकें। मेघालय में कंक्रीट के सामान्य पुल बनाना कठिन है। हालांकि मेघालय के स्थानीय लोगों ने इन पुलों का निर्माण अपनी यातायात ज़रूरतों को पूरा करने के लिए किया था और आज भी यह इसी काम आ रहे हैं, लेकिन इनकी विशिष्टता पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र बन गई है। इन्हें देखने के लिए दुनियाभर के लाखों पर्यटक हर साल मेघालय आते हैं। अब जब पर्यटक आ रहे हैं तो होटल व लॉज भी खुल रहे हैं और स्थानीय लोगों के लिए आय के नये रास्ते भी बन गये हैं। 
यूं तो मेघालय में अनगिनत लिविंग रूट ब्रिज हैं, लेकिन इस राज्य की यात्रा करते हुए मैंने पाया कि इनमें कुछ बहुत खास हैं और वह ही पर्यटकों को विशेषरूप से आकर्षित करते हैं। पाडू पुल के बारे में मैं आपको बता चुका हूं, जोकि सिंगल-डेकर लिविंग रूट ब्रिज है और विशिष्ट अनुभव प्रदान करता है बाकी नौ पुलों के बारे में बताने से पहले यह जानना दिलचस्प रहेगा कि लिविंग रूट ब्रिज तैयार कैसे किये जाते हैं। लिविंग रूट ब्रिज बनाने के लिए गहन श्रम, संयम व महारत की आवश्यकता होती है। इन्हें देखकर मालूम होता है कि देशज लोगों को प्रकृति की गहरी जानकारी है और उनकी इंजीनियरिंग प्रथाएं सस्टेनेबल हैं। पेड़ों से जो एरियल रूट्स निकलती हैं उन्हें ग्रामीण ध्यानपूर्वक पानी की धारा की ओर गाइड कर देते हैं, उन्हें बढ़ने देते हैं और बहुत ही नाप तोल के उन्हें आपस में बांध देते हैं। कुछ सालों बाद जड़ें परिपक्व व मज़बूत पुल संरचना में तब्दील हो जाती हैं। यह लिविंग रूट ब्रिज जीवित जड़ें होती हैं जो निरंतर बढ़ती रहती हैं और मौजूद नेटवर्क को मज़बूत करती रहती हैं। 
इन पुलों का निर्माण व मेंटेनेंस शुरू होता है दो रबर फिग पेड़ों को विपरीत किनारों पर लगाकर और फिर इंतज़ार करना कि पेड़ मज़बूत हो जायें। अगले चरण में एरियल रूट्स को गाइड किया जाता है पानी की धारा में। इस गाइडेंस में बीटल नट का तना, बांस या पत्थर प्रयोग किये जाते हैं। समय के साथ आपस में गुंथी हुई जड़ों का एक मज़बूत नेटवर्क तैयार हो जाता है, जो लोगों के बोझ को बर्दाश्त कर सकता है। एक और तरीके में अन्य पेड़ों के खोखले तने इस्तेमाल किये जाते हैं पानी के ऊपर जड़ों को गाइड करने के लिए, जब तक कि विपरीत पेड़ों की जड़ें आपस में जुड़ न जायें और भी तरीके हैं लेकिन सभी का उद्देश्य दो विपरीत किनारों पर लगे पेड़ों की जड़ों को आपस में इस तरह से मिलाना है कि जड़ें महिला की चोटी के बालों की तरह आपस में गुथ जायें। पुलों की देखभाल के लिए ग्रामीण सामुदायिक प्रयास करते हैं। जड़ों को नियमित काटना छांटना होता है ताकि अतिरिक्त ग्रोथ व मरी हुई जड़ों को हटाया जा सके। खराब हिस्से में नई जड़ें गाइड करनी पड़ती हैं।
मेघालय में सबसे लम्बा लिविंग रूट ब्रिज मवकिरमोट गांव में है जोकि पूर्वी खासी पहाड़ी ज़िले में है। इसकी लम्बाई 53 मीटर है, जिससे आप इन देशज लोगों के कौशल का अंदाज़ा लगा सकते हैं। इसे देखते हुए मुझे एहसास हुआ कि किन अजीबोगरीब तरीकों को अपनाकर इंसान प्रकृति के साथ जीते हैं। यह पुल हरियाली से घिरा हुआ है और आसपास के लैंडस्केप का शानदार नज़ारा पेश करता है। उम्शिंग रूट ब्रिज चेरापूंजी में है और इसकी खासियत यह है कि यह डबल-डेकर है यानी पुल के ऊपर एक और पुल है। दो विपरीत किनारों पर लगे पेड़ों की जड़ों ऊपर नीचे दो जगह से जोड़कर दो पुल ऊपर नीचे बनाये गये हैं। शिलोंग से लगभग 85 किमी पर त्यर्ना गांव है, जहां से ट्रेक करते हुए चेरापूंजी पुल तक पहुंचा जा सकता है। ट्रेक में 3-4 घंटे लगते हैं, लेकिन 3,000 कदम चलते हुए बोरियत नहीं होती क्योंकि प्रकृति की सुंदरता दिल मोह लेती है। मावलिननोंग के ही निकट रिवाई गांव में मावसव पुल है, जोकि ओवरब्रिज सा प्रतीत होता है। मावलिननोंग एशिया का सबसे साफ सुथरा गांव है और इसका पुल इसी के नाम से है, जो प्रकृति व मानव कारीगरी का खूबसूरत नज़ारा पेश करता है। 
बहरहाल, जब आप मेघालय लिविंग रूट ब्रिज देखने जायें तो कुछ बातों का अवश्य ख्याल रखें। मेघालय में इन पुलों की भरमार हैं, इसलिए आपको जो मार्ग लेना है उसकी योजना पहले से बना लें। स्थानीय गाइड को अवश्य लें ताकि आपके ज्ञान में वृद्धि हो सके और आप रास्ता न भटकें। ट्रेक बहुत कठिन हो सकता है, इसलिए सही किस्म के जूते पहनें ताकि फिसलने से बच सकें। अपने साथ पानी व स्नैक्स ज़रूर रखें। स्थानीय परम्पराओं का सम्मान करें और अनिश्चित मौसम के लिए तैयार रहें, विशेषकर अगर मानसून में मेघालय जा रहे हैं। तस्वीरें ज़िम्मेदारी से खींचें।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर