महज चुनाव जीतने के लिए भारत को बदनाम कर रहे ट्रूडो

यह नाटकीय एवं अप्रत्याशित अवश्य है, लेकिन आश्चर्यजनक नहीं; क्योंकि पिछले एक साल से जो ताना-बाना बुना जा रहा था, उससे यह अनुमान तो सभी को था कि भारत और कनाडा के संबंधों में जो निरन्तर खटास आ रही है, उसे दूर करने का न के बराबर प्रयास हुआ था। यह भी कि यह खटास दोनों देशों के रिश्तों को एक दिन टूटने के कगार पर ला खड़ा करेगी। अब हुआ यह है कि कनाडा ने एक बार फिर से भारत पर बिना किसी सबूत को सार्वजनिक किये यह गंभीर आरोप लगाया है कि खालिस्तानी अलगाववादी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में अन्य भारतीय राजनयिकों के साथ उच्चायुक्त संजय वर्मा भी ‘पर्सन ऑफ इंटरेस्ट’ (जिस व्यक्ति को पुलिस अपराध में शामिल समझती है) थे। इस आरोप पर भारत ने कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए 14 अक्तूबर, 2024 को ओटावा से अपने उच्चायुक्त को वापस बुला लिया। यह चौथा अवसर है जब नई दिल्ली ने किसी देश से अपने शीर्ष राजनयिक को वापस बुलाया है। इससे पहले 1987 में गृह युद्ध व आईपीकेएफ ऑपरेशन्स के कारण श्रीलंका से, 1989 में ट्रेड व ट्रांजिट विवाद के दौरान नेपाल से और 2019 में पुलवामा हमले की वजह से पाकिस्तान से राजदूतों को वापस बुलाया गया था। 
हालांकि वाशिंगटन पोस्ट की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि कनाडा ने संजय वर्मा सहित छह भारतीय राजनयिकों को निष्कासित किया है, लेकिन भारत सरकार का स्पष्ट कहना है कि उसने कनाडा से अपने राजनयिकों को वापस बुलाया है। यही नहीं, नई दिल्ली में भारत ने कनाडा के चार्ज डी अफेयर्स स्टीवर्ट व्हीलर को समन किया, यह बताने के लिए कि उसने अपने राजनयिकों को वापस बुला लिया है। साथ ही भारत ने कनाडा के छह राजनयिकों से कहा कि वे शनिवार (19 अक्तूबर 2024) तक भारत छोड़ दें। व्हीलर का कहना है कि कनाडा ने ‘अखंडनीय’ साक्ष्य प्रदान किये हैं कि भारत सरकार के एजेंट कनाडा की धरती पर कनाडाई नागरिक की हत्या करने में शामिल थे। भारत सरकार ने व्हीलर से कहा है कि कनाडा में भारतीय उच्चायुक्त व अन्य राजनयिकों  तथा अधिकारियों को ‘आधारहीन निशाना’ बनाया जा रहा है जोकि पूर्णत: अस्वीकार्य है और अतिवाद व हिंसा के वातावरण में ट्रूडो सरकार की हरकतों ने उनकी सुरक्षा को खतरे में डाल दिया है। 
गौरतलब है कि (भारत में प्रतिबंधित) खालिस्तान टाइगर फोर्स के स्वयंभू प्रमुख और सर्रे, वैन्कूवर स्थित गुरु नानक सिख गुरुद्वारा के अध्यक्ष हरदीप सिंह निज्जर की 18 जून, 2023 को अज्ञात हमलावरों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी। निज्जर पृथक खालिस्तान बनाये जाने का कट्टर समर्थक था और इसके लिए रेफरेंडम (जनमत संग्रह) के लिए प्रयास कर रहा था। नई दिल्ली निरन्तर कनाडा सरकार से कहती चली आ रही है कि अतिवादी खालिस्तानी गुट कनाडा में न केवल भारतीय राजनयिकों को टार्गेट कर रहे हैं बल्कि वे कनाडा के लिए भी गम्भीर खतरा हैं क्योंकि उनका ग्लोबल नार्को नेटवर्क्स व पाकिस्तान-समर्थित आतंकी गुटों से लिंक है। इन अतिवादियों को खुला छोड़ना कनाडा व विश्व के लिए चिंताजनक समस्याएं उत्पन्न कर सकता है, लेकिन इस पर कनाडा की प्रतिक्रिया यह रही है कि कनाडा में खालिस्तान समर्थकों सहित आम लोगों को अपनी राय व असहमति खुलकर रखने की आज़ादी है, बशर्ते वह शांतिपूर्ण तरीके से व्यक्त की गई हो। मालूम हो कि नई दिल्ली में आयोजित जी-20 की बैठक के दौरान जस्टिन ट्रूडो ने इस बात का बचाव किया था कि कनाडा के सिखों को खालिस्तान की शांतिपूर्वक वकालत करने का अधिकार है। इस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कनाडा में अतिवादी तत्वों की भारत विरोधी गतिविधियों पर नई दिल्ली की ‘गंभीर चिंताएं’ व्यक्त की थीं। 
निज्जर की हत्या के बाद से ही भारत और कनाडा के रिश्ते तनावपूर्ण चल रहे हैं। कनाडा का आरोप है कि जी-20 सम्मेलन में जस्टिन ट्रूडो को अपमानित करने की हद तक अनदेखा किया गया। जब सम्मेलन खत्म होने के बाद उन्हें हवाई जहाज़ में तकनीकी खराबी आने के कारण लगभग दो दिनों तक नई दिल्ली में ही रुकना पड़ा तो भारतीय अधिकारियों ने उन्हें उनके ही हाल पर छोड़ दिया। इसके कुछ दिन बाद ही कनाडा ने अपने ट्रेड मिशन को ‘स्थगित’ कर दिया, जिसे अक्तूबर 2023 में भारत आना था। भारत ने भी फ्री ट्रेड एग्रीमेंट (एफटीए) पर चल रही वार्ता को स्थगित कर दिया। राजनयिक मोर्चे पर भी यही हुआ। कनाडा ने जब भारत के वरिष्ठ राजनयिक को निष्कासित किया तो नई दिल्ली ने निज्जर की हत्या से ‘भारत सरकार को जोड़ने के प्रयास’ को खारिज करते हुए कनाडा के एक वरिष्ठ राजनयिक को निष्कासित कर दिया।
दरअसल, इस पूरे विवाद में नई दिल्ली का दृष्टिकोण यह है कि कनाडा ने ‘रत्ती बराबर भी साक्ष्य उसके साथ शेयर नहीं किये हैं’ और ‘जांच के बहाने’ वह जानबूझ कर भारत को बदनाम करने की योजना बनाये हुए है। यह ट्रूडो सरकार का राजनीतिक एजेंडा है जोकि ‘वोट बैंक सियासत पर केन्द्रित’ है। भारत के विदेश मंत्रालय के अनुसार, ‘इस दिशा में अगला कदम’ भारत के राजनयिकों को निशाना बनाना होगा और ‘यह संयोग नहीं है कि यह सब कुछ ऐसे समय हो रहा है जब ट्रूडो को विदेशी हस्तक्षेप पैनल के समक्ष बयान देना है’। भारत को विश्वास नहीं है कि कनाडा सरकार भारतीय राजनयिकों की सुरक्षा सुनिश्चित कर पायेगी, इसलिए उन्हें वापस बुला लिया गया है। यह बात सही प्रतीत होती है कि ट्रूडो यह सब कुछ वोट बैंक की राजनीति के लिए कर रहे हैं, क्योंकि कनाडा में हाउस ऑफ कॉमन्स के सदस्य चुनने के लिए 45वें फैडरल चुनाव 20 अक्तूबर 2025 को या उससे पहले होंगे। 
इस साल सितम्बर में ट्रूडो की लिबरल पार्टी विशेष संसदीय चुनाव में मोंट्रियल शहर की वो सीट भी हार गई थी, जो उसके पास बहुत लम्बे समय से थी बल्कि उसका गढ़ भी थी। इस पराजय के बाद ट्रूडो ने सार्वजनिक तौर पर स्वीकार किया था कि जनता का विश्वास पुन: अर्जित करने के लिए उन्हें ‘बहुत अधिक काम करना होगा’। हाल के दिनों में जस्टिन ट्रूडो की लोकप्रियता में ज़बरदस्त कमी आयी है। एक रायशुमारी में  कनाडा के 56 प्रतिशत नागरिकों ने कहा है कि उन्हें अपना पद छोड़ देना चाहिए। जस्टिन ट्रूडो अल्पमत सरकार का नेतृत्व कर रहे हैं और उन्हें अपनी सियासी किस्मत बदलने के लिए एक मुद्दा चाहिए। उन्हें लगता है कि निज्जर हत्याकांड ही वह मुद्दा है। कनाडा की कुल जनसंख्या में सिखों की तादाद भले ही 2.1 प्रतिशत हो, लेकिन इस समुदाय में जो मुट्ठी भर कट्टरपंथी तत्व हैं, उन्होंने कनाडा की राजनीति में अपनी संख्या की तुलना से बहुत अधिक प्रभाव हासिल किया हुआ है। कनाडा के कई प्रांतों जैसे ब्रिटिश कोलम्बिया में वे सिख मतों को एकजुट करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इस तथ्य से यह अंदाज़ा सहज ही लगाया जा सकता है कि जस्टिन ट्रूडो भारत पर निज्जर की हत्या का क्यों बार-बार आरोप लगा रहे हैं, जिसे भारत ने ‘बेतुका’ व ‘राजनीतकि प्रेरित’ कह कर ठुकरा दिया है।

-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर 

#रत को बदनाम कर रहे ट्रूडो