अखबार पढ़ने की आदत

अधिकतर पाठकगण सुबह की गरमागरम चाय की चुस्कियों के साथ अखबार पढ़कर खुद को तरोताज़ा महसूस करते हैं। कुछ एक, दो कदम आगे बढ़ाते हुए, चाय पीने के बाद अखबार लेकर शौचालय में घुस जाते हैं। वहीं बैठकर इत्मिनान से देश-दुनिया का समाचार लेते हैं।
आमतौर पर अखबार पढ़ने वालों की तीन प्रजातियां पायी जाती हैं। पहले- जीव हैं खरीदकर पढ़ने वाले स्वाभिमानी! दूसरे- जिनमें अच्छी आदत होती है, मांगकर-छीनकर या चुराकर पढ़ने की! वे इसे अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझते हैं। तीसरे-आधुनिक तकनीक का दुरूपयोग करते हुए मोबाइल, लैपटॉप या कम्प्यूटर पर पेपर पढ़ना अपनी आन-बान-शान-पहचान समझने वाले होते हैं। 
आप घर पर आराम से, दिलचस्पी के साथ अखबार पढ़ने में तल्लीन हों तो उसी समय, आपका कोई शुभचिंतक पड़ोसी दरवाज़े पर दस्तक दस्तक देगा। बिना लाग लपेट के सीधे अखबार मांगेगा। आप पड़ोसी धर्म के वशिभूत, उदारवादी दृष्टिकोण दिखाते हुए, अनमने से उसे अखबार दे देंगे। क्योंकि ना कहने का अधर्म ंआपसे नहीं होगा। धन्यवाद कहने की औपचारिकता निभाए बिना वो आपकी आंखों से ओझल हो जाएगा। वैसे किसी विद्वान ने कहा है, अखबार पढ़ने का असली आनंद तब आता है, जब आपके द्वारा खरीदा हुआ अखबार आपसे पहले कोई और पड़े। आप रेल या बस यात्रा के दौरान सुध-बुध खोकर, पेपर पढ़ने में मशगूल हों, तभी गिद्ध की तरह आंखें गड़ाए बैठा सहयात्री बड़ी बेशर्मी से अखबार मांगेगा। आप शालीनता से मना करने के बारे में सोचते हैं। ठीक उसी समय आपके मौन को ही मज़र्ी मानकर पेपर झपट लेगा। मन मसोसकर उसे निहारते रहेंगे।
ज्योतिष विद्दा में विश्वास रखने वाले पेपर में अपनी राशि पढ़कर सुनिश्चित हो जाते हैं कि आज किन-किन विकट स्थितियों से सामना होगा। शेयर बाज़ार में निवेश करके तुरंत धनी बनने के सपने संजोए बैठा सामान्य मनुष्य, सेंसेक्स को धड़ाम से नीचे गिरा देखकर (पढ़कर) हैरान-परेशान होकर, अपना माथा पकड़ लेता है। कुछ पाठक संपादकीय पेज पर नीरस, बोझिल विषय पढ़कर, माथापच्ची करने के बजाये चटपटी, लछेदार, मज़ेदार बातें पढ़कर पैसा वसूल करते हैं। जिस तरह रेडियो के पुराने, सुहाने दिन लौट आए हैं, ठीक उसी तरह पेपर पढ़ने वालों की संख्या में भी बढोत्तरी होगी। क्योंकि कई पेपर इतने सस्ते होते हैं कि उस दाम में एक कप चाय तक नहीं खरीद सकते हैं।
 

-गांधी नगर, कोल्हापुर, महाराष्ट्र
मो. 9421216288

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