क्यों आज भी करोड़ों लोग रहते हैं जंगलों और गुफाओं में
आपको शायद यह सुनकर हैरानी हो कि अट्टालिकाओं के इस युग में दुनियाभर में लगभग 20 करोड़ लोग जंगलों में और 3 से 5 करोड़ लोग गुफाओं, कंदराओं या पहाड़ों से काटी गई आवासीय आकृतियों में रहते हैं। दुनिया में सबसे ज्यादा करीब 2 से 3 करोड़ लोग गुफाओं, कंदराओं और पहाड़ों को काटकर बनायी गई आकृतियों में चीन में रहते हैं। अमरीका के बाद दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाले चीन के शांक्सी, गांसू और हेनान जैसे इलाकों में करोड़ों की तादाद में लोग गुफाओं और पहाड़ों की संरचनाओं में रहते हैं। इनमें सारी प्राकृतिक गुफाएं नहीं हैं, ज्यादातर कृत्रिम गुफाएं हैं यानी जो पहाड़ियों को खोदकर या काटकर बनायी गयी हैं लेकिन यह कोई हाल फिलहाल का काम नहीं है, सदियों से यहां के लोगों का यही प्राकृतिक आवास हैं। चीन के अलावा भारत में अबूझमाड, बस्तर और ओडिशा के कई दूसरे स्थानों में भी करीब 1 से 2 लाख लोग गुफाओं, कंदराओं या इन्हीं जैसे आवासों में रहते हैं। चीन और भारत के अलावा तुर्की में करीब 1 से 2 लाख, उत्तरी अफ्रीका 2 से 5 लाख लोग और मध्य एशिया, पेरू तथा अमेजन जैसे लैटिन अमरीकी भू-भाग में भी 10 से 20 लाख लोग पर्वतों, गुफाओं, पहाड़ों के बीच की संरचनाओं आदि जगहों पर पीढ़ियों से रह रहे हैं।
दरअसल जबसे कर्नाटक के उत्तर कन्नड़ ज़िले के एक सुदूर इलाके की गुफा से 40 वर्षीय रूसी महिला नीना कुटीना और उनकी दो बेटियां 6 वर्षीय प्रेमा और 4 वर्षीय ऐमा, गश्त लगाती पुलिस को बियाबान जंगल की एक गुफा में रहती पायी गई हैं, जहां सांप और दूसरे जंगली जानवरों की भी मौजूदगी थी। तब से देश और दुनिया में लोगों को यह सवाल परेशान कर रहा है कि इस दौर की दुनिया में जब हर देश में बहुमंजिला इमारातों और आधुनिक आवासीय घरों के बेहतर से बेहतर होने की होड़ लगी है, उस दौर में आखिर दुनियाभर में तमाम लोग जिनकी संख्या करोड़ों में है, आखिरकार वो गुफाओं या कंदराओं तथा जंगलों में क्यों रहते हैं? दरअसल इस सवाल की पड़ताल करते हुए समाजशास्त्रियों और विभिन्न सामाजिक क्षेत्रों के विशेषज्ञों ने पाया है कि आज भी दुनिया में करोड़ों लोग अगर जंगलों, गुफाओं या ऐसी ही जगहों में रहते हैं तो सबसे बड़ा कारण यह है कि ऐसे लोग सदियों से यहीं रहते आए हैं और तमाम कोशिशों के बावजूद भी ये वहां से बाहर नहीं आ पा रहे। कुछ के पीछे का कारण इनकी अपनी संस्कृति और प्रकृति के साथ निर्भरता का जुड़ाव भी है। मसलन भारत में ज्यादातर आदिवासी जो घने जंगलों के बीच में रहते हैं, वो अपनी समूची जीविका के लिए जंगलों के संसाधनों पर ही आमतौर पर निर्भर रहते हैं।
हालांकि केवल भारत में ही नहीं बल्कि दुनिया की हर उस जगह में जहां लोग पहाड़ों, कंदराओं, घाटियों और गुफाओं तथा जंगलों में रहते हैं, उन्हें हर तरह के संसाधनों की भीषण कमी का सामाना करना पड़ता है। गुफाओं या कंदराओं में चाहे वो जिस देश में हों, बिजली, पानी और सड़क जैसे बुनियादी ढांचे की कमी होती है बशर्ते वे तुर्की के गुफा आवास न हों, जो कि विशेष तौर पर पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए आधुनिक सुख सुविधाओं से परिपूर्ण बनाये गये हैं। हालांकि ज्यादातर बार तो कहा यह जाता है कि सरकारों की तमाम पुनर्वास योजनाओं और भरसक कोशिशों के बाद भी इन जगहों पर रहने वाले लोग यहां से बाहर आने के लिए तैयार नहीं होते। मगर हकीकत ये है कि व्यवहारिक तौर पर सरकार की तरफ से ऐसे लोगों के लिए पुनर्वास योजनाओं का भी काफी अभाव है। जो लोग मानते हैं कि ऐसे लोग यहां खुद को ज्यादा सुरक्षित महसूस करते हैं, तो सुरक्षा के ये कारण बहुत प्राकृतिक हैं। जैसे गुफाओं और कंदराओं में रहने वाले लोग सर्दी, गर्मी और बारिश जैसे प्रकृति के परेशान करने वाले मौसमों से बचे रहते हैं लेकिन यह भी सही है कि ये लोग आधुनिक समाज और सभ्यता से भी बहुत दूर रहते हैं, जिनमें कुछ लोग तो जानबूझकर ऐसा करते हैं, लेकिन ज्यादातर लोग अपनी पारंपरिक मजबूरियों के चलते आधुनिक सभ्यता और समाज से लगातार कटे रहने के लिए अभिशप्त हैं।
भारत में वैसे तो लगभग 10 करोड़ से ज्यादा आदिवासी जनसंख्या है, लेकिन इतनी बड़ी जनसंख्या के बावजूद भारत में शायद सबसे कम लोग ऐसी बेहद अभावपूर्ण जगहों में रहते हैं। आज की दुनिया में गुफाओं और जंगलों में रहने वाले लोग किसी भी तरह से आधुनिक समय के साथ जीवन नहीं व्यतीत करते। इसलिए दुनियाभर की सरकारों का यह नैतिक और सामाजिक दायित्व है कि ऐसे लोगों को बेहतर विकल्प और सम्मानजनक पुनर्वास देना चाहिए। इनकी किसी जिद या परंपरा का बहाना नहीं बनाना चाहिए। खास करके चीन जैसे देश को जो कि हर मामले में अमेरिका से टक्कर लेने की होड़ में रहता है। चीन को यह ज़रूर देखना चाहिए कि उसके 2 से 3 करोड़ जो लोग गुफाओं और कंदराओं में रहते हैं, वे किस तरह का जीवन व्यतीत करते हैं। हालांकि कुछ जगहों जैसे सहारा के रेगिस्तान आदि में भूमिगत प्राकृतिक गुफाएं यहां रहने वालों को प्रकृति के भयानक गर्मी के प्रकोप से बचाती हैं। लेकिन इस बात के लिए गुफाओं में इनके रहने को सहज नहीं माना जा सकता। क्योंकि ऐसे लोगों के पास किसी भी तरह की आधुनिक सुविधाएं नहीं होती, जो कि जीवन को बाकी लोगों की तरह सरल और सुविधाओं से सम्पन्न बना सकें। आज भी जो करोड़ों लोग गुफाओं, कंदराओं और जंगलों में रहते हैं, वो आदिम युग जैसी समस्याओं से परेशान रहते हैं। इसलिए दुनियाभर की सरकारों और सभ्य मानव समुदायों की यह बुनियादी जिम्मेदारी है कि ऐसे लोगों को अपने साथ जीवन बिताने के लिए, आगे लाएं।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर