भावी पीढ़ियों के लिए ज़रूरी है प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण

भविष्य की पीढ़ियों के लिए प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण केवल एक नैतिक या भावनात्मक नाराभर नहीं है बल्कि वैज्ञानिक, आर्थिक और सामाजिक ज़रूरत है। इसी बृहद उद्देश्य को ध्यान में रखकर 28 जुलाई, 1972 को पहली बार इस संबंध में एक अंतर्राष्ट्रीय जागरूकता दिवस मनाया गया, जिसे अब हर साल 28 जुलाई को विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस के रूप में मनाया जाता है। 1972 में स्टॉकहोम में संयुक्त राष्ट्र मानव पर्यावरण सम्मेलन के दौरान यह तय किया गया था कि भविष्य की पीढ़ियों के लिए अगर हम धरती को सुरक्षित बनाये रखना चाहते हैं तो प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण ज़रूरी है। इसी दिन इस सम्मेलन में विश्व धरोहर दिवस की भी रूपरेखा बनायी गयी और वर्ल्ड हेरिटेज कन्वेंशन को भी अपनाया गया था, ताकि मानव इतिहास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली प्राकृतिक धरोहरों की रक्षा की जा सके। 
हालांकि लगातार बिगड़ता पर्यावरण, ग्लोबलवार्मिंग का हमला, जैव विविधता का ह्ष, वनों की कटाई और विभिन्न तरह के पर्यावरणीय संकटों ने इस जागरूकता के बावजूद आज धरती को वैसी नहीं दिया, जैसे रहने की आधी सदी पहले कल्पना की गई थी। फिर भी यह दिन बार-बार धरती वासियों को भविष्य की पीढ़ियाें के प्रति उनके नैतिक और व्यवहारिक दायित्व की याद दिलाता रहता है। इसलिए हर साल विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस कई तरह के संरक्षण अभियानों को चलाकर मनाये जाने की ज़रूरत पर बल देता है। 
प्राकृतिक संसाधनों जैसे वायु, मिट्टी, वन, खनिज इन सबका अंधाधुंध दोहन यह जताता है कि हमें अपनी फिक्र तो है, लेकिन अपनी भविष्य की पीढ़ियों के लिए जरा भी फिक्र नहीं। यह दिन, हर साल हमारी इस हरकत पर सवालियां निशान लगाता है और इन प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण की महत्ता को रेखांकित करता है। यह दिन दुनिया के हर व्यक्ति को व्यक्तिगत और सामुदायिक स्तर पर पर्यावरण रक्षा के लिए प्रेरित करता है और भविष्य की पीढ़ियों के लिए धरती ग्रह को स्वच्छ और सुरक्षित बनाये रखने का आह्वान करता है। इस दिन विशेष तौर पर पूरी दुनिया में-
* सामुदायिक समूहों द्वारा या व्यक्तिगत स्तर पर वृक्षारोपण किया जाता है।
* कई गैर-सरकारी संस्थान इस दिन नदी, पार्क, समुद्र, झीलों या किसी प्राकृतिक स्थल की सामूहिक सफाई का आह्वान करते हैं। इस तरह ऐसे स्थानों को साफ करके भविष्य की पीढ़ियों के प्रति हम अपने कंशन को व्यक्त करते हैं। 
* इस दिन स्कूलों, कॉलेजों, सामुदायिक समूहों में सैमीनार, वर्कशॉप, सोशल मीडिया आदि अभियान चलाये जाते हैं कि धरती को भविष्य के लिए कैसे स्वच्छ और सुरक्षित रखा जाए?
* इस दिन कई संस्थान प्रकृति के संरक्षण के लिए योगदान करते हैं और शिक्षण संस्थानों में गार्डेनिंग, पोस्टर आदि गतिविधियों की प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती हैं। 
हर साल इस दिवस को मनाये जाने की एक विशेष थीम होती है, इस साल 2025 की थीम है, ‘लोक और वनस्पति को जोड़ना तथा आनुवांशिक संरक्षण कार्यों में डिजिटल तकनीकों को अपनाना’। वास्तव में यह प्रयास भले अभी उस तरह सफल न हो रहा हो, जैसी सफलता की ज़रूरत है लेकिन अगर भविष्य की पीढ़ियों के लिए प्राकृतिक संसाधनों को बचाये रखना है और धरती को जीने के अनुकूल बनाये रखना है तो हमें प्राकृतिक संसाधनों के अंधाधुंध दोहन पर लगाम लगानी ही होगी। जीवाश्म ईंधनों के कारण बहुत तेजी से धरती के ग्लेशियर पिघल रहे हैं तथा समुद्र का जल स्तर बढ़ रहा है। हर गुजरता मौसम पहले से ज्यादा चरम रूप लेकर आता है। अगर इस पर लगाम लगाना है तो हमें जीवाश्म ईंधनों के दोहन और अंधाधुंध उपयोग पर लगाम लगानी ही होगी। अगर ऐसा नहीं हुआ यानी प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण नहीं हुआ तो ग्लोबलवार्मिंग अनियंत्रित हो जायेगी, जिससे सूखा, बाढ़ के साथ-साथ भविष्य की खाद्य बेहद संकट में पड़ जायेगी। अगर हम इसे भारत में गंगा, यमुना के विशाल मैदानी क्षेत्र में पिछले डेढ़ दो दशकों में भूमिगत जलस्तर की गिरावट का पता करें तो कंपकंपी छूट जायेगी। क्याेंकि इस विशाल क्षेत्र में जो कि भारत का अन्न भंडार कहलाता है, पिछले दो दशकों में 40 से 200 फीट तक जलस्तर नीचे पहुंच गया है। वैज्ञानिकों को बेहद चिंता है कि अगर इसमें लगाम नहीं लगायी गई तो 2040 तक यहां बड़े पैमाने पर खेती होना पानी की कमी के कारण असंभव हो जायेगा। 
प्राकृतिक संसाधनों जैसे मिट्टी, पानी, घने जंगल पर ही दुनियाभर की कृषि उद्योग और बिजली का निर्माण आधारित है। जब ये संसाधन क्षरित होंगे तो सभी चीज़ों का उत्पादन घटेगा, महंगाई बढ़ेगी। बेरोज़गारी फैलेगी और देश में तनाव और संसाधनों की कमी के कारण अफरा-तफरी मच सकती है। साल 2018 में पर्यावरणीय क्षति के कारण देश के जीडीपी का 4 का नुकसान हुआ था। अगर अब भी प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण पर जोर न दिया गया तो आने वाले सालों में विभिन्न तरह की जैव विविधता के खराब और ग्लोबलवार्मिंग के नकारात्मक प्रभावों के कारण वार्षिक नुकसान की दर 200 से 300 अरब डॉलर पहुंच जायेगा। इसलिए प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण खुद धरती को सुरक्षित बने रहने के लिए और भविष्य की पीढ़ियाें के फलने फूलने देने के लिए बहुत ज़रूरी है। यदि आज की पीढ़ी अपने अत्यधिक उपभोग पर लगाम नहीं लगायेगी तो भविष्य की पीढ़ियों को ज़रूरी संसाधन मुहैय्या नहीं होंगे, और वे पीढ़ियां बिना कोई फिजूलखर्ची किए भी गरीबी में जीवन बसर करने के लिए अभिशप्त होगी।
साल 2050 तक दुनिया की आबादी तकरीबन 9.7 अरब हो जायेगी, तब आज के मुकाबले अनाज, सब्जी, फल, पीने के पानी आदि की मांग दोगुने से भी ज्यादा होगी। सवाल है क्या हम तब ये मांग आराम से पूरी कर पाएंगे? क्योंकि हाल के दशकों में हमने संसाधनों का इतना जबर्दस्त दोहन किया है कि भविष्य के लिए ऐसे संसाधनों की कमी का जबर्दस्त सामना अवश्यंभावी है। विशेषज्ञों ने आशंका ही नहीं जतायी बल्कि ठोस स्टडी के जरिये आगाह किया है कि सन् 2030 तक भारत के 40 प्रतिशत लोग पीने के साफ पानी से वंचित हो जाएंगी या इसके लिए उन्हें आज के मुकाबले कई गुना ज्यादा प्रयास करने होंगे। इसलिए इतने दिन से अनदेखी किये जाने के बाद अब समय आ गया है कि हम एक पल भी बिना लापरवाही बरते अपने अपने स्तर पर प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण पर जुट जाएं, तभी हम अपनी भविष्य की पीढ़ियों को किसी हद तक सुरक्षित धरती दे पाएंगे। -इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर 

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