भगवान श्रीकृष्ण की बाल लीलायें

एक दिन माता यशोदा अपने प्यारे पुत्र कृष्ण को गोद में लेकर बैठी थीं। तभी भगवान कृष्ण ने जम्हाई ली। जब उन्होंने मुख खोला तो मुख के अंदर सातों समुद्र, नदियां, पर्वत और पूरा भूमण्डल, सूर्य, चन्द्र, तारे, ब्रह्मांड आदि देवतागण दिखाई दिये।
तब मां यशोदा आश्चर्य में पड़ गयी और उन्हें यह ज्ञात हो गया कि भगवान कृष्ण साक्षात ईश्वर का रूप हैं। कहते हैं महर्षि गर्ग द्वारा भगवान का नाम कृष्ण रखा गया। उनके बड़े भाई का नाम बलराम था। आगे जाकर भगवान कृष्ण और बलराम की लीलाओं की अनेक घटनायें हमें पढ़ने को मिलती हैं। भगवान कृष्ण के अनेक नाम थे, हज़ार हज़ार नाम थे। उनमें श्यामसुंदर भी एक नाम था। श्यामसुंदर स्वभाव से ही चंचल थे। वह बार-बार रूठते और खीझते थे। उनमें खीजने की अद्भुत शोभा थी। कभी बाबा नंद उन्हें समझाते तो कभी माता यशोदा उन्हें प्रेम से पुचकारती और दुलारती थी।
भगवान कृष्ण ने अपने बचपन से ही अनेक लीलायें कीं। गोकुल की सभी गोप-गोपियां बचपन से ही मोहन को चाहती थीं और दही तथा माखन खाने के लिये भगवान कृष्ण को अपने घर बुलाती थी। वह कभी एक ग्वालन के घर में घुस जाते और कभी दूसरी के। वहां दूध तथा माखन खाया करते थे, मटकियां फोड़ देते थे।
अपने सखाओं को दूध, दही, माखन खिलाते थे और बंदरों तक को उपकृत करते थे। इस प्रकार माखन चोरी के अनेक प्रसंग हमें मिलते हैं। वह माखन चोर, श्याम, कृष्ण आदि अनेक नामों से प्रसिद्ध हो गये थे। एक बार भगवान कृष्ण को सजा देते हुये ऊखल से बांध दिया गया था। तब वह बहुत बड़े ऊखल को घसीटते हुये नंद भवन वापस आ गये थे।
गोकुल में बार-बार राक्षस आते थे और उत्पात मचाते थे। बालक कृष्ण ने अपने बाल्यकाल में ही गोकुल को छोड़कर वृन्दावन में बसने का निर्णय लिया था। वह अपने गोप गोपियों को छोड़कर वृंदावन में जा बसे थे। कहते हैं इस समय उनकी आयु तीन वर्ष की थी। वह गायें चराने भी जाया करते थे। इसी समय उन्होंने कंस के सेवक वत्सासुर नामक राक्षस को पछाड़कर उसका अंत किया था। यमुना जी में कालिया नाम का एक बड़ा विषैला सर्प का परिवार रहता था। कहते हैं उसके सौ से अधिक सिर और फन थे। एक बार बालक कृष्ण गायें चराते हुये उस स्थान पर पहुंचे जहां सर्प के विष से अनेक गायें और गोप गोपियां मूर्छित होकर गिर पड़े थे। वह कालियाग्रह में कूद पड़े और उन्होंने कालिया नाग का अंत करने की ठान ली। सर्प ने तरह-तरह से अपना विष फैलाया परन्तु श्रीकृष्ण ने उसे अंतत: समाप्त कर दिया। इस प्रकार बचपन में ही भगवान कृष्ण ने अपने अद्वितीय पराक्रमी होने का परिचय दिया।
भगवान कृष्ण को बांसुरी बजाने का बड़ा शौक था। वह जब बंसी में स्वर फूंकते थे तो पक्षियों का उड़ना, चहचहाना, पशुओं का घास चरना और भौंरे का गुंजन करना कुछ क्षणों के लिये थम जाता था। पेड़ों से रस की धारा बहने लगती थी और पत्थर पिघल जाया करते थे। भगवान कृष्ण ने गोवर्धन नामक पर्वत को अपनी उंगलियों पर उठा लिया था। भगवान कृष्ण की रास लीलायें बड़ी प्रसिद्ध हैं। बांसुरी की धुन सुनते ही गोप गोपियां घर द्वार व स्वजनों को छोड़कर कृष्ण के पीछे दौड़ती थीं परन्तु उनका सच्चा प्रेम पाकर कृष्ण उनके साथ तरह-तरह की रास लीलायें करते थे और रास-नृत्य करते थे। ये रास नृत्य रात-रात भर चलते थे और नृत्य विनोद हुआ करता था।
महात्मा सूरदास ने श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं का वर्णन बहुत ही विस्तार से किया है। इस विवरण को पढ़ने से हमें ऐसा लगता है कि मानो उनके लिये ये सब सारी घटनायें आंखों देखी रही हों। इसी प्रकार रसखान ने भी भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं का वर्णन किया है। कभी भगवान श्रीकृष्ण चंद्रमा रूपी खिलौना मांगते हैं तो कभी कहते हैं, ‘मैया मोरी मैं नहीं माखन खायो’ तो कभी वह गायें चराते हुये वन प्रदेश में विचरण करते और कभी गोप गोपियों के साथ माखन चुराने जैसी तरह-तरह की क्रीड़ायें करते। (उर्वशी)

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