मतदाता सूचियों संबंधी सर्वोच्च् न्यायालय का फैसला
बिहार में मतदाता सूची विशेष गहन पुनरीक्षण (एस.आई.आर.) के संबंध में विगत दिवस में व्यापक चर्चा चलती रही है। जून मास से वहां चुनाव आयोग द्वारा मतदाता सूचियों का संशोधन करवाया जा रहा है। मतदाता की सही पहचान संबंधी आधार कार्ड के साथ-साथ कुछ अन्य दस्तावेज़ों को भी आधार बनाया गया है। इस संबंध में कांग्रेस के नेता राहुल गांधी और बिहार के राष्ट्रीय जनता दल के तेजस्वी यादव ने विगत दिवस से बड़ा आन्दोलन शुरू किया हुआ है, जिसे अन्य विपक्षी दलों को साथ लेकर और भी आगे बढ़ाने का यत्न किया जा रहा है। इसके साथ-साथ ही राहुल गांधी ने बेंग्लुरु सैंट्रल लोकसभा सीट के महादेवपुरा विधानसभा क्षेत्र में एक लाख से ज्यादा जाली वोट बनाने का आरोप भी लगाया है।
मतदाता सूची संशोधन के विरोध में सर्वोच्च न्यायालय (सुप्रीम कोर्ट) में याचिकाएं दायर की गई थीं, जिनके संबंध में अब सर्वोच्च न्यायालय ने बड़ी स्पष्ट टिप्पणियां करते हुए यह कहा है कि आधार के अतिरिक्त अन्य दस्तावेज़ भी वोट पहचान का विकल्प बन सकते हैं, जो यह सिद्ध करता है कि मतदाता के लिए और भी विकल्प उपलब्ध करवाए गए हैं। चुनाव आयोग द्वारा मरे हुए व्यक्तियों या अन्य चुनाव क्षेत्रों में गए लोगों के नामों को काटने संबंधी अदालत ने यह कहा है कि चुनाव आयोग के पास ऐसा करने की शक्ति है, जो संविधान की धारा 324 में उन्हें मिली हुई है, जिसमें आयोग पुनर्विचार या विशेष सर्वेक्षण कर सकता है। राहुल ने यदि एक विधानसभा क्षेत्र में अधिक जाली वोटें होने का दावा किया है तो इसके उत्तर में भाजपा नेता अनुराग ठाकुर ने रायबरेली जहां से राहुल गांधी सांसद हैं, में व्यापक स्तर पर फज़र्ी मतदाता बनाये जाने का दावा किया है। इसी तरह अखिलेश यादव की कन्नौज और डिम्पल यादव की मैनपुरी सीट में भी क्रमवार अढ़ाई लाख वोट जाली होने का दावा किया और इस संबंध में आंकड़े भी पेश किए हैं। इसी तरह ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी की लोकसभा सीट डायमंड हार्बर में भी अढ़ाई लाख से अधिक आशंका वाले वोट होने का दावा किया है। अनुराग ने यह भी कहा है कि कर्नाटक के दलित नेता राजन्ना को अब मंत्रिमंडल से त्याग-पत्र देने हेतु इसलिए विवश किया गया क्योंकि उन्होंने इस करवाई जा रही गिनती को फज़र्ी कहा था। कर्नाटक में कांग्रेस पार्टी प्रशासन चला रही है। उसने केन्द्र में कांग्रेसी प्रशासन के होते दो मुख्य कमिश्नरों पर भी यह आरोप लगाया कि वे उस समय कांग्रेस के साथ मिले हुए थे।
राहुल गांधी पिछले 2024 के लोकसभा चुनावों के दौरान भी भाजपा पर वोट चोरी का लगातार आरोप लगा रहे हैं, जहां तक इन चुनावों के परिणामों का संबंध है, कांग्रेस को इसमें 99 सीटें मिली थीं, जिसके दृष्टिगत राहुल गांधी को विपक्ष का नेता बनाया गया है। इससे पहले लोकसभा में कांग्रेस को इतनी सीटें भी नहीं मिली थीं कि वह विपक्ष के नेता होने का दावा कर सकती। इसके मुकाबले में भाजपा अपने दावों के विपरीत 240 तक ही सिमट गई थी। चुनाव आयोग ने बिहार में मतदाता सूचियों के संशोधन के बाद मतदाताओं की पहली सूची जारी की थी परन्तु उसके दो सप्ताह बाद भी किसी राजनीतिक पार्टी ने चुनाव आयोग के समक्ष इस संबंध में अपनी आपत्ति दर्ज नहीं करवाई। ऐसी बड़ी प्रक्रिया में कहीं न कहीं गलतियां रह जाने की आशंका बनी रहती है। ऐसा कुछ 1952 के बाद प्रत्येक चरण में सामने आता रहा है परन्तु इसे चुनाव आयोग द्वारा साजिश बनाकर राहुल गांधी जैसे नेता ही पेश कर सकते हैं और इस संबंध में देश में हंगामा करने का भी उनका यत्न हो सकता है।
यदि राहुल गांधी को किसी क्षेत्र की मतदाता सूचियों में आपत्ति थी तो उन्हें ऐसी आपत्ति चुनाव आयुक्त के समक्ष लिखित रूप में पेश करनी चाहिए थी। वहीं सन्तोषजनक उत्तर न मिलने के बाद उनके पास इसके लिए उच्च न्यायालयों के द्वार खुले थे, परन्तु ऐसा करने की बजाय उन्होंने मात्र बयानबाज़ी करने और बाज़ारों में प्रदर्शन करने को ही प्राथमिकता दी है, जो किसी भी तरह उनकी परिपक्वता की निशानी नहीं कही जा सकती। इसकी अब बड़ी उदाहरण सर्वोच्च न्यायालय के मतदाता सूची संशोधन संबंधी दिए गए फैसले से देखी जा सकती है। ज़िम्मेदार नेताओं और पार्टियों द्वारा अपने पक्ष को कोई आधार बनाकर ही पेश किया जा सकता है। इसके बिना उनके बयानों और क्रियान्वयन में परिपक्वता की कमी खटकती रहेगी।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द