आस्था, श्रद्धा और जीवन का संदेश है श्रीकृष्ण जन्माष्टमी

रोहिणी नक्षत्र में आधी रात का वह पवित्र क्षण जब कंस की जेल की अंधकारमय कोठरी में जन्म लेते हैं जग के पालक, धर्म के धारक और प्रेम के प्रतीक प्रभु श्रीकृष्ण। यही शुभ तिथि है श्रीकृष्ण जन्माष्टमी जो इस वर्ष 16 अगस्त को देशभर में भक्ति, उल्लास और सांस्कृतिक रंगों के साथ मनाई जाएगी। यह केवल एक पर्व नहीं, बल्कि संवेदनाओं, संदेशों और मधुर लीलाओं से सजी एक आध्यात्मिक यात्रा है। भगवान श्रीकृष्ण का जन्म केवल किसी एक स्थान या युग की घटना नहीं बल्कि अन्याय के विरुद्ध न्याय का उद्घोष, अहंकार पर विनम्रता की विजय और भक्ति में छिपी मुक्ति का अमिट प्रतीक है। उनका अवतरण हमें याद दिलाता है कि जब-जब अधर्म बढ़ेगा, तब-तब साक्षात भगवान विष्णु धर्म की रक्षा हेतु धरती पर उतरेंगे।द्वापर युग में जब अत्याचार और अधर्म चरम पर थे, तब वसुदेव और देवकी की आठवीं सन्तान के रूप में भगवान विष्णु ने श्रीकृष्ण के रूप में अवतार लिया। कंस की जेल से यमुना पार गोकुल पहुंचना और यशोदा की गोद में पलना-बढ़ना, यह कथा बताती है कि कठिनाइयों के बीच भी ईश्वर का संकल्प और समय का न्याय अवश्य पूर्ण होता है।
बाल्यावस्था में वह माखन-चोरी करने वाले नटखट कन्हैया थे। युवावस्था में राधा के प्रति निष्काम प्रेम के प्रतीक, गोवर्धन पर्वत उठाकर ग्राम-रक्षा और पर्यावरण संरक्षण का संदेश देने वाले और महाभारत के युद्धक्षेत्र में अर्जुन को गीता का अमर उपदेश देने वाले योगेश्वर। जन्माष्टमी की रात जैसे-जैसे बारह बजे का समय आता है, मंदिरों और घरों में भक्ति की तरंगें उमड़ने लगती हैं। झांकियां सजती हैं, बाल गोपाल की पालकी निकलती है, दही-हांडी की प्रतियोगिताएं, रासलीला, भजन-कीर्तन और व्रत-उपवास से यह पर्व भक्ति और उल्लास की त्रिवेणी बन जाता है। मधुर धुनों और पुष्पवर्षा के बीच जब ‘नंद के आनंद भयो, जय कन्हैया लाल की’ ‘हाथी, घोड़ा, पालकी जय कन्हैया लाल की’ का जयघोष गूंजता है तो हर भक्त अपने भीतर के अंधकार में कृष्ण-ज्योति का अवतरण महसूस करता है। जन्माष्टमी पर मथुरा और वृंदावन मानो स्वर्गलोक में बदल जाते हैं। जन्मभूमि मंदिर से लेकर वृंदावन के बांके बिहारी और इस्कॉन मंदिर तक हर कोना रोशनी, पुष्प और भक्ति के रंग में सराबोर हो जाता है। लाखों श्रद्धालु यहां केवल आस्था से ही नहीं, बल्कि उस दिव्य वातावरण को जीने के लिए आते हैं, जो सदियों से अविरल बह रहा है। इस दौरान स्थानीय अर्थव्यवस्था में जबरदस्त रौनक आ जाती है। होटल,फूल, प्रसाद, परिधान, सजावट और हस्तशिल्प के बाज़ार महीनों पहले से गुलजार रहते हैं। यह पर्व सांस्कृतिक, सामाजिक और आर्थिक दृष्टि से भी समुदाय को जोड़ने और सशक्त करने का माध्यम बन जाता है।
आज जब समाज में संघर्ष, लालच और असत्य का प्रभाव बढ़ रहा है, श्रीकृष्ण का जीवन हमें सिखाता है कि कठिन परिस्थितियों में भी धर्म और न्याय के मार्ग पर डटे रहना चाहिए। उनका सन्देश:-
‘कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन’
अर्थात-कर्म करते रहो, फल की चिंता मत करो।
उनकी बांसुरी हमें जीवन को मधुर बनाने का संदेश देती है, माखन-चोरी वाला उनका मुस्कुराता रूप हमें आनंद का महत्व बताता है और गीता हमें सिखाती है कि यदि मार्ग सत्य का है तो विजय निश्चित है। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी केवल व्रत, पूजा और उत्सव का अवसर ही नहीं बल्कि उनके दृष्टिकोण, नीति और प्रेम को जीवन में उतारने का संकल्प लेने का समय है। श्रीकृष्ण केवल एक युग के लिए नहीं, हर युग के हृदय में जन्म लेने के लिए अवतरित होते हैं।
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