नई जी.एस.टी. दरों के प्रभाव
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा जब भी अचानक घोषणा की जाती है कि वे राष्ट्र केनाम संदेश देने वाले हैं तो कुछ सनसनी सी फैल जाती है। ऐसा क्यों न हो, क्योंकि ऐसा ही एक संदेश में उन्होंने देश को नोटबंदी की भंवर में झोंक दिया था। इससे देश आज तक पूरी तरह से नहीं निकल आया है। इसीलिए जब यह खबर आई कि मोदी जी कोई संदेश प्रसारित करने वाले हैं, तो लोगों ने दिमाग दौड़ाना शुरू कर दिया। कुछ लोग तो निजी बातचीत में पूछने लगे कि क्या मोदी जी आज इस्तीफा भी दे सकते हैं। लोगों का ख्याल था कि 75 वर्ष पूरे हो जाने पर मोदी जी अपने इस्तीफे को भी एक हथियार की तरह इस्तेमाल कर सकते हैं। चूंकि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ या भाजपा केपास फिलहाल उनका कोई विकल्प नहीं है, इसलिए जैसे ही उनका इस्तीफा होगा, वैसे ही भाजपा के नेताओं के साथ-साथ सरसंघचालक भी उन्हें देश की सेवा करते रहने के लिए मनाने लगेंगे। इस तरह मोदी जी अपनी सत्ता को नये सिरे से मज़बूत कर पाएंगे। इन लोगों को यह इसलिए भी लग रहा था कि अभी हाल ही में अमित शाह ने एक मोदी-आधारित इंटरव्यू दिया था, और मोदी जी ने भी अपनी तरफ से एनडीए केसांसदों के सामने अमित शाह का परिचय एक तरह से अपने उत्तराधिकारी के रूप में ही बिना कहे दे दिया था। बहरहाल, यह उम्मीद मेरे दोस्तों को ही थी। मुझे नहीं।
मैं तो सूत्रों के हवाले से चल रही उस खबर पर ज्यादा भरोसा कर रहा था जिसके अनुसार मोदी जी जी.एस.टी. केदूसरे संस्करण को लांच करने की घोषणा करके अपनी पीठ खुद थपथपाने वाले थे। हुआ भी यही... पूरे 19 मिनट तक मोदी जी लगातार हमेशा की तरह देश केसामने जी.एस.टी. केइस नये संस्करण की वह व्याख्या परोसते रहे जो उनके लिए लाभकारी है। कभी-कभी नेताओं केझूठ डिकोड करना थोड़ा मुश्किल होता है। पर यह बात मोदी जी के बारे में लागू नहीं होती। वे छाती ठोक कर अपना ‘सत्य’ बोलते हैं जो आलोचकों की निगाह में उनका झूठ होता है। आजकल केवल यही एक काम ऐसा है जो वे धड़ाके के साथ करते हैं, वरना उनके परम मित्र डोनाल्ड ट्रम्प ने एक तरफ से और दूसरी तरफ से उनके झूला-मित्र चीन के राष्ट्रपति शी ज़िनपिंग ने उन्हें दबोच रखा है। उनके दबाव में मोदी जी ज्यादातर चुप रहते हैं। बहरहाल, आइए देखें उनके सबसे ताज़े 19 मिनट राष्ट्र केनाम संदेश किस काम है। क्या उस झूठ से हमारी समझ भारतीय राजनीति के बारे में और भारतीय अर्थव्यवस्था के बारे में कुछ बढ़ती है या नहीं?
दोस्तो झूठ तीन तरह के होते हैं। पहला होता है वह जिसे हम महज़ झूठ कहते हैं। दूसरा होता है सफेद झूठ, यानी जिसकी पोल खुल हुई होती है मगर वह फिर भी बोला जाता है। तीसरा झूठ होता है आंकड़े। यह थोड़ा जटिल होता है क्योंकि उसे बहुत चालाकी के साथ परोसा जाता है। मोदी जी ने अपने भाषण में जो झूठ बोला है वह आंकड़ों के आधार पर ही गढ़ा गया है। इस झूठ की मुख्य बात यह है कि मोदी जी कहते हैं कि उन्होंने जी.एस.टी. के रेट कम कर दिये हैं जिससे त्योहार के इस मौसम में सारा देश बचत उत्सव मनाने के मूड में आ गया है। अब मिडिल क्लास और एक कथित मिडिल क्लास के पास इतने पैसे बच जाएंगे कि वह कार, दुपहिया वाहन, टीवी, फ्रिज, मकान आदि खरीद सकेगा और तो और, होटलों के रूम तक सस्ते हो जाएंगे जिससे यह मिडिल क्लास आज़ादी और बेफिक्री से घूमने-फिरने निकल सकेगा।
मोदी जी ने अपने पूरे संदेश में कहीं भी आटा, दाल-चावल, सब्जी, दूध, शिक्षा के लिए फीस, कहीं आने जाने के लिए पेट्रोल-डीजल जैसी चीजों का ज़िक्र ही नहीं किया। जैसे, ये चीजें तो डेढ़ अरब भारतवासियों को आसानी से सुलभ हों ही, बस उन्हें अगर कुछ ज़रूरत है तो ‘लाइफ स्टाइल गुड्स’ की ज़रूरत है। प्रधानमंत्री का संदेश स्पष्ट रूप से कह रहा था कि जैसे ही मिडिल क्लास इन चीजों को खरीदेगा वैसे ही भारत विकसित भारत बनने की तरफ बढ़ जाएगा।
इसी जगह से मोदी जी के झूठ का एक और पहलू सामने आता है। वे स्वदेशी और आत्मनिर्भरता का दावा करते हुए और देश की जनता से उसे अपनाने की अपील करते हुए दिखे। मानना पड़ेगा, उनकी हिम्मत की दाद देनी पड़ेगी। मोदी जी ने जो अर्थव्यवस्था बनाई है वह अरबों रुपए का चीनी माल आयात करती है। उन्होंने जो बाज़ार बनाया है उसमें चीनी माल भरा पड़ा है। मोदी जी की ज़ुर्रत देखिये, वे चीनी माल भी आयात करेंगे और स्वदेशी की अपील भी करेंगे। आत्मनिर्भरता की ज़रूरत भी समझाएंगे। और तो और ये बातें एक ऐसा प्रधानमंत्री कर रहा है जिसकी कार से लेकर चश्मे, पेन और एक-एक चीज़ से लेकर हर इस्तेमाल की चीज़े महंगे से महंगे से विदेशी ब्रांडों की होती है। जिसके बारे में स्वयं उसकी पार्टी में दबी जुबान से बताया जाता है कि मोदी जी किस देश से मंगाया हुआ बेशकीमती फेशियल इस्तेमाल करते हैं। क्या कहने हैं, झूठ बोला जाए तो इस दावे के साथ बेहिचक शैली में बोला जाए। इस मुकाम पर यह बताना भी ज़रूरी है कि मोदी जी के मंत्रिमंडल के कितने सदस्यों की औलादें स्वदेशी कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में पढ़ने के बजाय विदेशों में पढ़ती हैं और अगर कोई यह सवाल पूछना चाहे तो इसमें कोई गलत बात नहीं होगी कि उन्हें भी नेपाल के नेपोकिड्स की तर्ज पर क्यों न देखा-समझा जाना चाहिए। मोदीजी के सत्ताधारियों के नेपोकिड्स की लिस्ट एकाधिक बार टीवी पर सुनाई जा चुकी है।
पूरा संदेश सुनने के बाद क्या इस बात में कोई शक रह जाता है कि मोदी जी का पूरा भाषण उन लोगों के लिए था ही नहीं जो आटा, दाल-चावल, सब्जी, दूध, शिक्षा के लिए फीस, एक जगह से दूसरी जगह जाने के लिए पेट्रोल-डीजल जैसी चीजों को खरीदने के लिए रोज़मर्रा की जद्दोजहद करने में लगे रहते हैं। उनका भाषण या तो मिडिल क्लास के लिए था या मोदी जी के एक काल्पनिक मिडिल क्लास के लिए जिसे वे ‘नियोमिडिल क्लास’ कह रहे थे। यह 25 करोड़ की जनसंख्या वाला नियोमिडिल क्लास दरअसल क़ागजों में ही मिलता है और ये क़ागज़ सरकार के ‘थिंक टैंक’ नीति आयोग ने एक ऐसी दावेदारी के आधार पर तैयार किये हैं जिसकी पोल बहुत से अर्थशास्त्री खोल चुके हैं। जो भी हो, हमारे लिए ज्यादा ज़रूरी यह जानना-समझना है कि जी.एस.टी. के रेट कम होने से हमारा देश विकसित भारत कैसे बनेगा?
हकीकत यह है कि जी.एस.टी. का अभी जो रेट कट किया गया है उसे किसी भी तरह से रिफॉर्म की संज्ञा ही नहीं दी जा सकती। रिफॉर्म तो उसे तब कहा जाता जब मोदी जी जी.एस.टी. की डिज़ाइन बदलने की कोशिश करते। उसकी प्रक्रियाओं को सरल करने का प्रयास करते लेकिन उन्होंने ऐसा कुछ नहीं किया। दरअसल, जी.एस.टी. के केवल दो स्तर बना कर उस टैक्स की दर कम करने से तो भारत की अर्थव्यवस्था को और कुल मिला कर हमारे गरीबों, मज़दूरें और निम्न आयवर्ग को बहुत नुकसान होने वाला है। यहां समझने की बात यह है कि जीएसटी लागू होता है संगठित क्षेत्र पर। असंगठित क्षेत्र पर जीएसटी लागू ही नहीं होता। हम जानते हैं कि भारत का 94 प्रतिशत रोज़गार असंगठित क्षेत्र में ही मिलता है। (अगले सप्ताह दूसरी किश्त)
लेखक अम्बेडकर विश्वविद्यालय, दिल्ली में प्ऱोफेसर और भारतीय भाषाओं के अभिलेखागारीय अनुसंधान कार्यक्रम के निदेशक हैं।