शांति, सहयोग और समानता के अग्रदूत—महाराजा अग्रसेन

आज जयंती पर विशेष

भारतीय इतिहास में महाराजा अग्रसेन का नाम केवल एक शासक के रूप में ही नहीं, बल्कि एक युग-प्रवर्तक समाज सुधारक के रूप में भी अंकित है। वह शांति के दूत, अहिंसा के पुजारी, समाज सुधारक और गणतंत्र की भावना के प्रणेता माने जाते हैं। उनका जन्म प्रताप नगर के राजा बल्लभ जी के घर हुआ था। बाल्यकाल से ही उन्होंने वेद, शास्त्र, राजनीति, अर्थशास्त्र और व्यापार नीति का गहन अध्ययन किया। युवा अवस्था में ही वह नेतृत्व, संगठन और शासन की अद्भुत क्षमता से युक्त हो गए।
उनका विवाह नागवंश के राजा कुमंद की पुत्री माधवी से हुआ। पिता के संन्यास लेने के बाद अग्रसेन जी ने प्रताप नगर की बागडोर संभाली और शीघ्र ही अपने न्याय प्रिय, दूरदर्शी और प्रजा हितैषी शासन से प्रसिद्ध हो गए। महाराजा अग्रसेन की सबसे बड़ी विशेषता यह रही कि उन्होंने समाज में समानता, सहयोग और साझा समृद्धि की नींव रखी। उन्होंने आदेश जारी किया कि उनके राज्य में आने वाला प्रत्येक नया परिवार स्वागत स्वरूप एक ईंट और एक सोने का सिक्का पाएगा ताकि ईंटों से वह अपना घर बना सके व सिक्कों से अपनी जीविका आरंभ कर सके। यह नीति केवल एक परम्परा नहीं थी, बल्कि एक आर्थिक-सामाजिक क्रांति थी। इससे निर्धनता समाप्त हुई और हर परिवार अपने पैरों पर खड़ा हो सका। वास्तव में इसे आधुनिक काल की सहकारी अर्थ-व्यवस्था और सामाजिक सुरक्षा का प्रारंभिक स्वरूप माना जा सकता है।
महाराजा अग्रसेन जी ने 18 यज्ञ सम्पन्न कराए, किंतु इन यज्ञों की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता यह थी कि उन्होंने पशु बलि का दृढ़ता से विरोध किया और अहिंसा का मार्ग अपनाया। उस समय वैदिक परम्परा में यज्ञों में पशु बलि की प्रथा आम थी, लेकिन अग्रसेन जी ने समाज को यह सिखाया कि सच्चा धर्म जीवों की हत्या में नहीं, बल्कि दयालुता, करुणा और सहानुभूति में है। यही कारण है कि उनका पूरा वंश शाकाहार, अहिंसा और धर्मनिष्ठा के लिए प्रसिद्ध हुआ।
महाराजा अग्रसेन ने केवल धार्मिक सुधार ही नहीं किए, बल्कि आर्थिक नीतियों में भी क्रांतिकारी कदम उठाए। उन्होंने एक संगठित बैंकिंग और ऋण व्यवस्था की शुरुआत की। यदि किसी व्यक्ति को हानि होती तो वह शाही कोष से ऋण ले सकता था और समृद्ध होने पर वह ऋण वापस कर देता। इससे समाज में न केवल विश्वास और सहयोग बढ़ा, बल्कि आर्थिक स्थिरता और व्यापारिक उन्नति का मार्ग भी प्रशस्त हुआ।
महाराजा अग्रसेन के 18 पुत्र हुए। उनकी शादियां मगध नरेश सिसूनाग की 18 पुत्रियों से हुईं। इन्हीं वंशजों से अग्रवाल समाज की उत्पत्ति हुई। अग्रवाल समाज के 18 गोत्र इस प्रकार हैं—गर्ग, गोयल, गोयन, बंसल, कंसल, सिंघल, मंगल, जिंदल, तिंगल, ऐरन, धारन, मधुकुल, बिंदल, मित्तल, तायल, भंदल, नागल और कुचछल। इन गोत्रों ने न केवल भारत में बल्कि विदेशों में भी व्यापार, उद्योग, शिक्षा और सेवा क्षेत्रों में अपनी विशिष्ट पहचान बनाई है।
आज जब समाज असमानता, हिंसा और आर्थिक विषमता जैसी चुनौतियों से जूझ रहा है, तब महाराजा अग्रसेन की नीतियां और भी अधिक प्रासंगिक हो जाती हैं। उनकी ‘एक ईंट और एक सिक्का’ की नीति आज स्टार्ट-अप, सहकारी बैंकों और क्राउड फंडिंग जैसी अवधारणाओं में प्रतिध्वनित होती है, उनकी अहिंसा और शाकाहार की शिक्षा पर्यावरण संरक्षण और सतत विकास की दिशा दिखाती है, उनकी धर्मनिष्ठा और उदारता आज भी समाज को परस्पर सहयोग और भाईचारे की प्रेरणा देती है। महाराजा अग्रसेन की जयंती प्रतिवर्ष प्रथम नवरात्र के दिन मनाई जाती है। इस वर्ष यह पर्व 22 सितम्बर को है। भारत ही नहीं, बल्कि विदेशों में बसे अग्रवाल समाज के लोग भी इसे श्रद्धा और उत्साह से मनाते हैं। मंदिरों, सभागारों और समाजिक संस्थाओं में विशेष आयोजन किए जाते हैं।
यह केवल एक जयंती नहीं, बल्कि उन आदर्शों का स्मरण है जो समाज को न्याय, करुणा और सहयोग की ओर अग्रसर करते हैं।
 

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