राहुल गांधी, इंडिया गठबंधन और सिख सरोकार
माफी चाहता हूं बोलने की,
मुझे एहसास है मैं बद-ज़बां हूं।
(मशहर आफरीदी)
नि:संदेह शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी अपने सिद्धांतों, नियमों या प्रस्तावों की पाबंद है। किसी व्यक्ति को गुरुद्वारा साहिब के निर्धारित जंगले के भीतर जाने देने की अनुमति देना गलत हो सकता है और किसी वी.आई.पी. को गुरु साहिब की हुज़ूरी में सम्मानित करने या सिरोपा देने पर पाबंदी भी लगाई गई होगी, परन्तु पहली बात तो यह है कि यह आदेश तथा सिद्धांत सब के लिए होने चाहिएं।
परन्तु जिस प्रकार का वृत्तांत विपक्ष के नेता राहुल गांधी को सिरोपा देने पर सृजित किया जा रहा है, वह श्री दरबार साहिब पर हमला करवाने वाली प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का पोता है या हमला करवाने वाली कांग्रेस का नेता है, इसलिए उसे सिरोपा नहीं देना चाहिए, यह बात किसी तरह भी उचित नहीं है। न ही यह सिख धर्म के धार्मिक दृष्टिकोण से उचित प्रतीत होता है, न ही यह एतिहासिक तथ्यों के अनुसार सही है, न ही वर्तमान राजनीतिक स्थिति के संदर्भ में सिख सरोकारों की कसौटी पर ही पूरा उतरता है, अपितु यह वृत्तांत या नैरेटिव एक ओर सिख आशय के अनुकूल नहीं, दूसरी ओर यह सिख इतिहास में से मिले सबकों के समकक्ष भी नहीं है। तीसरी बात यह कि यह समय की राजनीति के अनुकूल भी नहीं, अपितु यह सिखी की शान तथा महत्व को बनाए रखने की रणनीति को बुरी तरह कमज़ोर तथा निरुत्साहित करने का कारण ही बनेगा।
पहली बात को यह है कि गुरबाणी का आशय है कि मालिक, प्रभु-परमात्मा शरण में आने वाले को गले से लगा लेता है।
जो सरणि आवै तिसु कंठि लावै,
इह बिरदु सुआमी संदा। (अंग : 544)
गुरबाणी में दुश्मनी रहित तथा सबसे मित्रता के वृत्तांत की बात बार-बार की गई है।
ना को मेरा दुसमनु रहिया ना हम किस के बैराई।
(धनासरी म: 5, अंग 671)
तथा इसी अंग में दर्ज है कि :
सब को मीत हम आपन कीना
हम सभना के साजन।
जहां तक राहुल गांधी का सवाल है, वह कई बार श्री दरबार साहिब (अमृतसर) आए हैं, शीश निवाया है, सेवा भी की है, जो यह एहसास करवाता है कि उनके भीतर सिखों के प्रति वैर नहीं, अपितु कहीं न कहीं अफसोस का भाव है। वैसे वह कई बार सिखों के पक्ष में भी बोले हैं और उन्होंने कुछ स्थानों पर सिख दुखांत के बारे में माफी भी मांगी है। चाहे यह माफी विधिवत नहीं, परन्तु यह भी ठीक है कि उन्होंने सिख कत्लेआम के आरोपी कांग्रेस नेताओं को कांग्रेस से बाहर का रास्ता नहीं दिखाया, जिससे उन पर सवाल खड़े होते हैं।
ऑपरेशन 1984 तथा सिख कत्लेआम के समय राहुल गांधी 14 वर्ष के तथा प्रियंका 12 वर्ष के थे, तो उनकी साका नीला तारा या सिख कत्लेआम में क्या भूमिका हो सकती है? राहुल गांधी एक बार से अधिक बार इसके लिए दुख जता चुके हैं और माफी भी मांग चुके हैं। नि:संदेह यह माफी बाकायदा रूप में मांगने की ज़रूरत अभी भी शेष है, परन्तु माफ कर देना बड़प्पन है, छोटापन नहीं।
पुराने वक्तों के कुछ लोग अब भी कहते हैं,
बड़ा वही है जो दुश्मन को भी माफ करे।
(अ़ख्तर शाहजहांपुरी)
सिख राजनीतिक गलती कर रहे हैं
यदि सिख नेता वर्तमान अंतर्राष्ट्रीय तथा देश के आंतरिक हालात की समझ रखते होते तो वे 1984 के भुलाए बिना भी वक्त की नज़ाकत के अनुसार फैसले लेने के समर्थ होते।
इस समय राहुल गांधी राष्ट्रीय स्तर के ऐसे नेता हैं जो देश में साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण तथा संघवाद (फैडरलिज़म) विरोधी शक्तियों के खिलाफ लोकतंत्र तथा धर्म-निरपेक्षता बचाने के लिए जी-जान से लड़ रहे हैं। इस समय यदि अकाली तथा सिख नेतृत्व ने पहले की गई गलतियों से सबक लिया होता तो वे सिर्फ और सिर्फ भाजपा के समक्ष आत्म-समर्पण करने की रणनीति में ही मुक्ति न तलाशते। रणनीति मांग करती है कि सिख संतुलन अपने हाथों में लें तथा दोनों पक्षों को मजबूर करें कि वे उनका महत्व स्वीकार करें। इस समय सब कुछ भूल कर पहले तो सभी अकाली दलों में एकता या फिर किसी एक अकाली दल को प्रासंगिक बनाने की ज़रूरत है और दूसरा सिख नेतृत्व अपनी कम से कम मांगों का एक चार्टर तैयार करे और उसे देश के दोनों बड़े राजनीतिक गुटों एन.डी.ए. तथा ‘इंडिया’ ग्रुप के समक्ष रखे और उन से पूछा जाए कि कौन उनकी मांगों से सहमत है। जो उनकी मांगों से सहमत हो, उसका ही साथ दिया जाए। पिछली बातों को आधार बना कर किसी को भी बेगाना नहीं मानना चाहिए।
प्रवासियों को पंजाब से निकालने की बात
लकीरें खींच रहे हैं सभी ज़मीनों पर,
ज़मीं किसी की नहीं, आसमां किसी का नहीं।
—मुईद रशीदी
सच तो यह है कि गांव, शहर, राज्य तथा देश सभी विभाजन इन्सानों ने ही किए हैं। वैसे यह सिर्फ मानवीय फितरत ही नहीं, ताकतवर जानवर भी अपने-अपने क्षेत्रों की सीमाएं निर्धारित कर लेते हैं, परन्तु प्रकृति ने सिर्फ एक धरती, एक आकाश, एक सूर्य, एक तरह की हवा सब के लिए दी है। यह ठीक है कि होशियारपुर की घटना शर्मनाक तथा ़गम़गीन करने वाली ही नहीं, अपितु गुस्सा दिलाने वाली भी है, परन्तु किसी एक की सज़ा पूरे प्रवासी समाज को देना तथा उन्हें राज्य से भगा देने की बात करना उचित नहीं। ज़रा सोचें कि अपना सिख तथा पंजाबी समुदाय भी तो देश के अन्य राज्यों तथा दूसरे देशों में प्रवासियों की तरह ही है। वैसे भी इस समय पंजाब में ही नहीं, विश्व भर में प्रवासियों के प्रति नफरत का राष्ट्रवाद उभार पर है, परन्तु हां, सरकार तथा देश को सबके लिए एक जैसे अधिकार देने आवश्यक हैं। पंजाब में आकर बसने वाले प्रवासियों की पहचान तथा उनके अच्छे आचरण की जांच के लिए कोई नियम-कानून बनाना बहुत ज़रूरी है।
पंजाब सरकार को ऐसे प्रबंध ज़रूर करने चाहिएं कि साज़िश के कारण या बेहिसाब प्रवास से पंजाब की डैमोग्राफी (आबादी का संतुलन) को न बदला जा सके। चंडीगढ़ की डैमोग्राफी को कैसे पंजाबी तथा सिख विरोधी बना दिया गया है, यह हमारे सामने है। इस समय पंजाब में सिर्फ हिन्दू प्रवासी ही नहीं आ रहे, उत्तर प्रदेश, बिहार तथा मध्य प्रदेश में मुस्लिमों के खिलाफ माहौल के कारण पंजाब में मुस्लिम प्रवासी भी भारी संख्या में आकर बस रहे हैं। पंजाब सरकार के लिए ज़रूरी है कि पंजाब में स्थायी रूप में रहने आए प्रवासियों के लिए कोई शर्तें, नियम बनाए जाएं। पंजाब सरकार को अपने तौर पर पंजाब की जनगणना भी करवानी चाहिए। दूसरा, पंजाब में ज़मीन खरीदने के लिए कुछ पाबंदियां, जैसे कि देश के कई राज्यों जैसे हिमाचल प्रदेश, सिक्किम, नागालैंड, उत्तराखंड, अरुणाचल प्रदेश एवं जम्मू-कश्मीर में धारा-370 हटने के बाद भी हैं, होनी चाहिएं। गुजरात में भी कृषि योग्य ज़मीन खरीदने पर कई पाबंदियां हैं। पंजाब को अपनी डैमोग्राफी बचाने के कानून बनाने चाहिएं और पंजाब में बसने वाले प्रवासियों की पृष्ठभूमि की जांच भी करनी चाहिए। जो आपराधिक किस्म के लोग हैं, उन्हें बसने की अनुमति नहीं मिलनी चाहिए, परन्तु सभी प्रवासियों को निकाल देने की सोच गुरु साहिब की शिक्षा तथा पंजाबियत की सोच से मेल नहीं खाती। यह पंजाब की आर्थिकता के लिए भी घातक सिद्ध होगी।
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