शहीद भगत सिंह का खटकड़ कलां और मोरांवाली

खटकड़ कलां और मोरांवाली दोनों गांव चंडीगढ़-जालन्धर मार्ग पर एक-दूसरे से पांच किलोमीटर दूर हैं। मोरांवाली शहीद-ए-आज़म भगत सिंह का ननिहाल गांव है और खटकड़ कलां उनके पूर्वजों का पैतृक गांव है। इस गांव के स्वतंत्रता सेनानी अजीत सिंह भगत सिंह के चाचा थे। अगर मोरांवाली की बात करें तो शहीद शमशेर सिंह बब्बर अकाली इसी गांव के निवासी थे। मोरांवाली होशियार ज़िले की तहसील गढ़शंकर में है और खटकड़ जालंधर ज़िले की तहसील नवांशहर में है, जो 1995 से ज़िला बन चुका है और जिसका नाम शहीद भगत सिंह नगर रखा गया है।
मेरा पैतृक गांव सूनी खटकड़ कलां तथा मोरांवाली से सात किलोमीटर की दूरी पर होने के कारण मेरे पिता, चाचा और अन्य रिश्तेदार भगत सिंह के प्रशंसक थे और इस क्षेत्र के निवासी होने पर गर्व महसूस करते थे।
मैं और मेरी उम्र के सभी लोग भगत सिंह, अजीत सिंह और शमशेर सिंह की कहानियां सुन कर ही बड़े हुए थे। हमारी अपनी उपलब्धियां चाहे जो भी हों, हम समय-समय पर इन महारथियों का नाम लेकर अपना नाम रोशन करते रहे हैं। यह गौरव केवल भगत सिंह को ही प्राप्त है कि उन्होंने अपने ननिहाल व दादका गांव दोनों के जीवन को रौशन किया है। इन दोनों स्थानों पर उनकी स्मृति में अद्वितीय संग्रहालय स्थापित किए गए हैं। आज उनके बलिदान पर पूर्वी व पश्चिमी पंजाब के निवासियों को ही गर्व नहीं, बल्कि दुनिया भर के हर उस नागरिक को भी गर्व है, जो किसी न किसी रूप में इस मिट्टी से जुड़ा हुआ है।  कुछ इस तरह जैसे कभी राम प्रसाद बिस्मिल ने कभी लिखा था।
सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
देखना है ज़ोर कितना बाजू-ए-कातिल में है
वक्त आने पर बता देंगे तुझे ए आसमां
हम सभी से क्यों बताएं जो हमारे दिल में है।
अब उस वक्त को आए एक सदी बीत चुकी है और आने वाली सदियों में इसने और भी रौशन होते रहना है। मोरांवाली संग्रहालय के प्रवेश द्वार पर भगत सिंह की मां विद्यावती द्वारा अपनी कोख से पैदा किये सूरमा को आशीर्वाद के रूप में पेश करना एक तरफ रहा, नवांशहर-बंगा रोड पर हर राहगीर को संग्रहालय में बाईं ओर संग्रहालय में ऐसी जगह पेश किया गया है कि वहां से गुज़रने वाले सभी वाहनों के सवार अपने मोबाइल फोन में भगत सिंह की मूर्ति की तस्वीर लिए बिना आगे नहीं बढ़ते। मैंने खुद 26 अक्तूबर को अपनी उम्र के अंतिम चरण में यही किया है।
उजागर सिंह के ‘सबूते कदम’
पायल-दोरहा रोड पर स्थित कद्दों गांव में जन्मे उजागर सिंह एक जाने-माने जनसंपर्क अधिकारी रहे हैं। उन्होंने अपनी नौकरी के दौरान और सेवानिवृत्ति के बाद कभी कोई बड़ नहीं हांकी। वह चुपचाप काम करने वाले इंसान हैं और किए काम का दिखावा नहीं करते। इसका प्रमाण उनकी हाल ही में प्रकाशित आत्मकथा ‘सबूते कदम’ है। पृष्ठ 80 पर दी गई जानकारी बहुत अहम है। उनके पास कहने और बताने के लिए इतना कुछ है कि उन्होंने आधा दर्जन पात्रों या उतनी ही घटनाओं को जगह दे रखी है।
इस छोटी-सी पुस्तक में अनेक राजनीतिज्ञों और उनके स्वभाव तथा खुलेपन को पेश करती घटनाएं हैं। यह बेअंत सिंह, हरचरण सिंह बराड़, राजिंदर कौर भट्टल, कैप्टन अमरिंदर सिंह और गुरचरण सिंह टोहरा के स्वभाव को ही नहीं बतातीं,  बल्कि 75 साल की राजनीति पर भी प्रकाश डालती है।
सबूत के तौर पर दो घटनाएं पेश हैं। जब उजागर सिंह की किसी दुर्घटना में आंखों की रोशनी पर असर हुआ तो मुख्यमंत्री बेअंत सिंह खुद उन्हें सांत्वना देने उनके घर गए। फिर जब बलदेव सिंह लंग की हत्या हुई, तो उनके कातिल तो उस समय के हत्यारे थे, लेकिन टोहड़ा के विरोधियों ने उनका नाम ही उछाला। इसे दबाने वालों में बेअंत सिंह भी थे, जिन्होंने उजागर सिंह के तर्कों से प्रभावित होकर ऐसा अमल किया कि सब चुप हो गए। उजागर सिंह की ‘सबूते कदम’ उन्हें भी मुबारक और उनके साथियों को भी।
चंडीगढ़ साहित्य अकादमी के नए रंग-ढंग
डॉ. मनमोहन सिंह ने चंडीगढ़ साहित्य अकादमी की कमान संभालने के बाद अपनी पूरी टीम को साथ लेकर असक्रिय अकादमी की नई साहित्यिक गतिविधियों का बीड़ा उठा लिया है। इसकी शुरुआत 25 अक्तूबर वाले कहानी दरबार से हुई, जिसमें हिंदी, उर्दू, पंजाबी और अंग्रेज़ी के कहानीकारों ने अपनी कहानियां पढ़ीं। इन कहानियों का विषय कोरोना बीमारी भी था और बिछुड़े शहर और बिछुड़ घरों के दरवाज़ों का मार्मिक वर्णन भी। खचाखच भरे कमरे में श्रोताओं को संबोधित करते हुए मनमोहन सिंह ने भविष्य के लिए नियोजित कार्यक्रमों का विवरण भी दिया, जिससे पता चलता है कि यह संस्था आने वाले समय में नई ऊंचाइयों को छूने के लिए प्रतिबद्ध है।

अंतिका
(सुशील दोसांझ की ‘पीली धरती काला अम्बर’ में से)
शहर तेरे के रंग नियारे
पत्थर हौले, फुल्ल ने भारे
जिन्ने सत्त पत्तणा दे तारू
सारे इक अथरू तों हारे
शहर ’च नवीयां हट्टियां उत्तों 
अज्जकल साह वी मिलन उधारे।

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