चिन्ताजनक है पंजाबी सभ्यता की वर्तमान स्थिति
पंजाबी सूबा के रूप में पंजाब का पुनर्गठन 1 नवम्बर, 1966 को हुआ था और इसकी 59वीं वर्षगांठ 1 नवम्बर, 2025 को थी। इसमें कोई दो राय नहीं कि पंजाबी सूबा के पुनर्गठन के दौरान तत्कालीन केंद्र सरकार द्वारा पंजाब के साथ घोर अन्याय किया गया। पंजाब की राजधानी चंडीगढ़ पंजाब को देने के बजाय इसे केंद्र शासित क्षेत्र बनाकर पंजाब के साथ-साथ नवगठित हरियाणा राज्य की साझी राजधानी बना दिया गया। बहुत-से पंजाबी भाषी क्षेत्र हरियाणा में रहने दिए और पहाड़ी क्षेत्रों के नाम पर हिमाचल को भी बहुत-से पंजाबी भाषी क्षेत्र हस्तांतरित कर दिए गए।
सबसे बड़ा अन्याय यह भी हुआ कि पंजाब के पानी के अधिकार केंद्र सरकार ने पंजाब पुनर्गठन अधिनियम की धारा 78, 79 और 80 के माध्यम से अपने हाथ में ले लिए। तत्कालीन अकाली नेतृत्व, जिसने पंजाबी सूबा की स्थापना के आंदोलन में अहम भूमिका निभाई थी, केंद्र सरकार के इन षड्यंत्रों को समझने, उनका विरोध करने और राज्य के पुनर्गठन की प्रक्रिया पर पूरी नज़र रखने में विफल रहा। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि पंजाब के पुनर्गठन से पहले भी 1955 में पंजाब की नदियों का आधा पानी गैर-रिपेरियन राज्य राजस्थान को दे दिया गया था, लेकिन बाद में पंजाब पुनर्गठन अधिनियम में जो उपरोक्त धाराएं शामिल की गईं, उनसे पंजाब के पानी की लूट की ऐसी व्यवस्था बना दी गई कि उस कारण अदालतों में भी राज्य को न्याय मिलने की संभावना हमेशा के लिए समाप्त हो गई। इन धाराओं के कारण राज्य बार-बार अदालतों में मुकद्दमे हारता चला गया। कांग्रेस पार्टी ने अपनी केंद्र सरकार के समय पंजाब के साथ ज़्यादतियों तथा धक्केशाही करने की नींव रखी थी। वर्तमान भाजपा सरकार भी उसे और आगे बढ़ा रही है। इसकी ओर से हरियाणा को पंजाब की राजधानी चंडीगढ़ में नई विधानसभा के निर्माण के लिए ज़मीन आवंटित करने के लिए पूरा ज़ोर लगाया जा रहा है। उसने पंजाब विश्वविद्यालय पर लगभग अप्रत्यक्ष रूप से कब्ज़ा कर ही लिया है। चंडीगढ़ को अस्थायी केंद्र शासित क्षेत्र बनाते समय कहा गया था कि जब तक इसका अंतिम निर्णय नहीं होता, तब तक चंडीगढ़ में कर्मचारी पंजाब और हरियाणा से नियुक्त किए जाएंगे और उनका अनुपात 60 : 40 का होगा, यानी 60 प्रतिशत कर्मचारी पंजाब से और 40 प्रतिशत कर्मचारी हरियाणा से लिए जाएंगे। पहले कांग्रेस की केंद्र सरकारों और बाद में भाजपा की केंद्र सरकारों द्वारा पंजाब को दिए गए ऐसे आश्वासनों की धज्जियां उड़ाते हुए हर क्षेत्र में पंजाबी कर्मचारियों की संख्या लगातार कम की जाती रही है। वर्तमान भाजपा सरकार ने तो चंडीगढ़ में वरिष्ठ कर्मचारियों की नियुक्तियों के लिए अन्य केंद्र शासित प्रदेशों के लिए बनाए गए कर्मचारियों के एक अलग कैडर से ही चंडीगढ़ में कर्मचारियों की नियुक्तियां शुरू कर दी हैं, जैसे कि चंडीगढ़ कोई विवादास्पद शहर न होकर एक स्थायी रूप में केंद्र-शासित प्रदेश हो।
विगत लम्बे समय से भाखड़ा बांध और नंगल हेडवर्क्स की सुरक्षा पंजाब पुलिस करती आ रही थी और भाखड़ा प्रबंधन बोर्ड का अधिकांश खर्च भी पंजाब सरकार वहन करती आ रही है। अब केंद्र सरकार ने भाखड़ा बांध और नंगल हेडवर्क्स की सुरक्षा का ज़िम्मा भी पंजाब सरकार से छीन कर अपने हाथ में ले लिया है। बांधों की सुरक्षा के नाम पर राष्ट्रीय स्तर पर बने एक कानून की आड़ में ऐसा किया गया है। मौजूदा केंद्र सरकार एक ओर पंजाबियों, खासकर सिख समुदाय के प्रति तरह-तरह से अपना स्नेह दिखाती नज़र आती है, लेकिन दूसरी ओर पंजाब के अधिकारों-हितों को कमज़ोर करने का कोई मौका नहीं छोड़ रही। बंदी सिहों की रिहाई समेत सिख समुदाय से जुड़े कई अन्य मुद्दे हैं, जिन्हें सुलझाने में केंद्र सरकार लगातार आनाकानी कर रही है। और तो और, शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के चुनाव कराने के लिए सिख समुदाय में बार-बार आवाज़ उठ रही है, लेकिन केंद्र सरकार अभी तक इन चुनावों को कराने में कोई दिलचस्पी दिखाती नज़र नहीं आ रही।
अगर वर्तमान की बात करें तो पंजाब को अगस्त-सितम्बर के महीने में भारी बाढ़ का सामना करना पड़ा। लगभग 5 लाख एकड़ क्षेत्र में पंजाब की फसलें नष्ट हो गईं, 5 हजार एकड़ ज़मीन स्थायी रूप से नदियों के प्रवाह में समा गई, राज्य के 6-7 जिलों के लोग, खासकर ग्रामीण इलाकों के लोग बुरी तरह प्रभावित हुए। लोगों के घरों और पशुधन को भी भारी नुकसान हुआ। सड़कें, स्कूल और पुल आदि भी बड़े पैमाने पर क्षतिग्रस्त हुए। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने विशेष तौर पर पंजाब का हवाई सर्वेक्षण भी किया। केंद्रीय मंत्रियों और केंद्रीय टीमों ने भी बार-बार पंजाब का दौरा किया। प्रधानमंत्री ने राज्य को 1600 करोड़ रुपये की राहत देने की घोषणा की, लेकिन अभी तक राज्य सरकार को केंद्र सरकार से एक पैसा भी नहीं मिला। केंद्र सरकार द्वारा यह कहा जाता है कि सड़क निर्माण के लिए राष्ट्रीय स्तर पर जो अनुदान दिया जाता है और बेघरों को घर बनाने के लिए जो अनुदान दिया जाता है, वह राशि भी 1600 करोड़ रुपये के फंड से ही दी जा रही है। इस प्रकार का दावा करते हुए केंद्र ने कहा है कि लगभग 800 करोड़ रुपये की राशि पंजाब को दे दी गई है।
केंद्र सरकार ने यह भी बार-बार कहा है कि प्राकृतिक आपदाओं का सामना करने के लिए विगत समय राज्य को कुल 12000 करोड़ रुपये दिए गए थे। राज्य सरकार इसका इस्तेमाल लोगों को राहत देने के लिए कर सकती है। दूसरी ओर राज्य सरकार का यह पक्ष है कि यह पैसा उसके पास नहीं है। पिछली सरकारें समय-समय पर बाढ़ पीड़़ितों को राहत देने के लिए इस फंड का इस्तेमाल करती रही हैं। उसने भी कुछ हद तक इस फंड का इस्तेमाल किया है। राज्य सरकार के पास 12000 करोड़ रुपये में से कोई ज़्यादा फंड नहीं बचा है। केंद्र सरकार और राज्य सरकार के बीच इस तकरार और अविश्वास में पंजाब के बाढ़ पीड़ित पिस रहे हैं। उन्हें केंद्र सरकार द्वारा घोषित फंड से कोई ज़्यादा राहत नहीं मिली। राज्य सरकार अपने संसाधनों के ज़रिये ही राज्य के किसानों और बाढ़ प्रभावित लोगों को राहत देने की कोशिश कर रही है।
वर्तमान पंजाब की समस्याएं केवल केंद्र सरकार की ज़्यादतियों और धक्केशाही तक ही सीमित नहीं हैं, बल्कि राज्य में 1997 के बाद सत्ता में आई राज्य सरकारों की गलत और मुफ्तखोरी पर आधारित नीतियों की भी भारी कीमत राज्य और राज्य के लोगों को चुकानी पड़ रही है। मौजूदा हालत यह है कि राज्य सरकार के पास स्वास्थ्य, शिक्षा और बुनियादी ढांचे जैसे महत्वपूर्ण ढांचें के रख-रखाव के लिए भी पर्याप्त धन नहीं है। राज्य की वित्तीय स्थिति यह है कि राज्य पर 3.82 लाख करोड़ रुपये का कज़र् हो चुका है और वित्तीय वर्ष 2025-26 तक यह कज़र् बढ़कर 4.17 लाख करोड़ रुपये हो जाएगा। यह कज़र् राज्य के सकल घरेलू उत्पाद का 46.6 प्रतिशत बनता है। राज्य सरकार का व्यय उसके राजस्व का 122 प्रतिशत है, अर्थात उसका व्यय उसकी आय से अधिक है। सरकार की आय का 44 प्रतिशत हिस्सा पिछले कज़र् को चुकाने में ही खर्च हो जाता है। इस कारण सरकार को बार-बार कज़र् लेना पड़ रहा है।
यदि पंजाब में लोगों के काम-धंधों और व्यवसायों की बात करें तो इस समय राज्य का मुख्य व्यवसाय कृषि, जो प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से बड़ी संख्या में लोगों को रोज़गार प्रदान कर रहा है, गंभीर संकट में है। पीढ़ी-दर-पीढ़ी ज़मीन के बंटवारे और फसलों का लाभकारी मूल्य दिलाने में सामयिक केंद्र सरकारों की विफलता, नकली दवाइयों, नकली खाद और नकली बीजों के कारण किसानों की लगातार लूट और इसके साथ ही बार-बार आ रही प्राकृतिक व अप्राकृतिक आपदाओं के कारण किसान और कृषि बुरी तरह प्रभावित हुए हैं। राज्य के किसानों पर पूरे देश के किसानों से ज़्यादा कज़र् है। किसान आत्महत्या करने के लिए मजबूर हैं। केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा अब तक किए गए सभी प्रयास कृषि संकट को हल करने और किसानों की आय बढ़ाने में सफल नहीं हो सके। इसी प्रकार चाहे समय की सरकारों द्वारा राज्य में कृषि आधारित और अन्य उद्योग स्थापित करने के लिए बार-बार प्रयास किए जाते हैं, लेकिन इस दिशा में अभी तक कोई बड़ी उपलब्धि हासिल नहीं हुई है। (शेष कल)



