दो कुण्डलिया छन्द

रत्नाकर सब के लिए होता एक समान
बुद्धिमान मोती चुने, सीप चुने नादान,
सीप चुने नादान, अज्ञ मूंगे पर मरता
जिसकी जैसी चाह, इकट्ठा वैसा करता।
ठकुरेला कविराय, सभी खुश इच्छित पाकर
हैं मनुष्य के भेद, एक-सा है रत्नाकर।
-त्रिलोक सिंह ठकुरेला
थोड़ा-सा धीरज रखो, क्यों हो रहे उदास
इस पतझर के बाद  भी, महकेगा मधुमास
महकेगा मधुमास, हवा होगी पुरवाई
कोयलिया की कूक, सुनायेगी अमराई।

-बृज भूषण चतुर्वेदी ‘ब्रजेश
 

#दो कुण्डलिया छन्द