आर्थिक फायदे की गारंटी है  एवोकैडो का पेड़

एवोकैडो मूल रूप से मध्य अमरीका, विशेष रूप से मैक्सिको, ग्वाटेमाला और पेरू में पाया जाने वाला पेड़ है, जो सन् 1900 के आसपास भारत में अंग्रेजों के जरिये आया था लेकिन यह 50-60 साल तक केरल तमिलनाडु और कर्नाटक तक ही सीमित रह गया, वह भी एक विशेष सजावटी फल के रूप में। पहली बार पिछले सदी के 60 के दशक में कर्नाटक के कुर्ग में इसका वाणिज्यिक परीक्षण शुरु हुआ और 1980 के आसपास इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ हार्टीकल्चरल रिसर्च (आईआईएचआर) बेंग्लुरु, में इसकी हेस, फुर्टे और बेकन जैसी वाणिज्यिक किस्में विकसित की गईं, जिसकी बदौलत आज भारत में करीब 4000 से 5000 हेक्टेयर में एवोकैडो की खेती होती है और सुपरफूड के रूप में दिनोंदिन विख्यात हो रहे इस फल की मांग लगातार बढ़ रही है। जिस कारण आज ये बाजार में 300 से 400 रुपये किलो तक पहुंच गया है। लब्बोलुआब यह है कि जिस भारतीय किसान ने इसकी खेती पर हाथ आजमाया है, आज वह आर्थिक दृष्टि से मालामाल है, तो आइये अनुमान लगाएं कि उत्तर भारत में किसान अपने आर्थिक फायदे के लिए किस तरह गारंटी के साथ सुपरफ्रूट बन चुके एवोकैडो से फायदा ले सकते हैं। 
आगे बढ़ने के पहले एक स्पष्टीकरण ज़रूरी है कि एवोकैडो वास्तव में है तो एक फल यानी फ्रूट, लेकिन इसका उपयोग आमतौर पर फूड यानी भोजन के तौर पर किया जाता है। कुल मिलाकर ये एक ऐसा फल है, जो मीठा नहीं होता बल्कि क्रीमी और तैलीय स्वाद वाला होता है, इसलिए इसे सलाद, सैंडविच, स्मूदी, टोस्ट और हेल्दी डिशों में खाने की परंपरा खासकर युवाओं के बीच बहुत तेज़ी से बढ़ रही है। इसलिए आज एवोकैडो की फसल भारत में किसानों की आर्थिक गारंटी के रूप में उभरी है। सवाल है उत्तर भारत के किसान अपने आर्थिक फायदे के लिए इस विदेशी से लगने वाले करीब सवा सौ साल पुराने भारतीय फल की खेती कैसे करें? वह भी उत्तर और मध्य भारत में। वास्तव में उत्तर व मध्य भारत के किसान अगर एवोकैडो की खेती को समझदारी से करें, तो यह उनके लिए एक लाभदायक ‘कैश क्राप’ साबित होती है। 
लेकिन एवोकैडो की खेती करने के पहले किसानों को इसको लेकर होमवर्क कर लेना ज़रूरी होता है। एवोकैडो वास्तव में मध्यम तापमान लगभग 18 से 28 डिग्री सेंटीग्रेड की गर्मी के वातावरण का फल है। जहां तेज लू या सर्दियों में पाला पड़ता है, वहां इसकी खेती मुश्किल है। इसलिए इसे उत्तर और मध्य भारत में ऐसे इलाकों पर कैश क्रॉप के रूप में उगाया जा सकता है, जहां ठंड बहुत कड़ी नहीं पड़ती। मसलन अगर उत्तराखंड में इसकी खेती करनी हो तो हलद्वानी, काशीपुर, उद्यम सिंह नगर आदि में की जा सकती है और की जाती है। इसके अलावा हिमाचल के निचले हिस्सों में, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र के कुछ इलाकों में एवोकैडो की नगदी फसल होती भी है और संभव भी हैं। आगे बढ़ने के पहले एक बात और समझ लें, एवोकैडो भले फूड या भोजन के तौर पर इस्तेमाल वाला फल हो, लेकिन यह जिस पेड़ पर लगता है, वह बकायदा मध्यम दर्जे का भरा पूरा ऊंचा पेड़ होता है, जिसकी ऊंचाई 20 से 40 फुट तक होती है। इसका वानस्पतिक नाम- पर्सिया अमेरिकाना है। 
यह तेजपत्ता परिवार का पेड़ होता है। इसका विकास मध्यम आकार का होता है और यह 4 से 6 सालों में फल देने लगता है। इसके पत्ते गहरे हरे, मोटे और चमकदार होते हैं। इसके फूल छोटे हरे, पीले रंग के गुच्छों में आते हैं और इसका फल नाशपाती के आकृति वाला होता है, जो अकसर हरा, काला या बैंगनी रंग का होता है। जबकि अंदर का गूदा क्रीमी कलर का होता है और फल के बीच में एक बड़ा सा बीज होता है। एक परिपक्व एवोकैडो का पेड़ साल में कम से कम 200 और अधिक से अधिक 500 तक फल देता है। यह पेड़ दिखने में तो बड़ा होता है, लेकिन इसकी जड़ें बहुत गहरे नहीं जातीं। इसलिए ढीली और जलनिकासी वाली मिट्टी इसके लिए सबसे उपयुक्त होती है। एवोकैडो की खेती करने के लिए मिट्टी का पीएच स्तर 5.5 से 7.0 के बीच होना चाहिए। 
एवोकैडो के पेड़ को पहले खेत को गहराई से जोतना चाहिए और एक एकड़ में कम से कम 10 से 15 टन गोबर की खाद डालना चाहिए। ठंडी जलवायु में टिकाऊ होने के लिए फुर्टे किस्म को लगाना चाहिए, जिसमें आमतौर पर 200 से 300 फल हर पेड़ में हर साल आते हैं। लेकिन बाज़ार में सबसे लोकप्रिय काला और हरा एवोकैडो वाला फल है, जिसकी किस्म को हेस कहते हैं और इस किस्म के एक पेड़ में हर साल 300 से 500 के बीच फल आते हैं। एवोकैडो की बेकन किस्म तेज धूप और ठंड दोनों जगह का मौसम बर्दाश्त कर लेती है और इस किस्म के पेड़ में औसतन 250 से 400 फल हर साल आते हैं। बाजार में सबसे ज्यादा मांग हेस किस्म की है, जिसकी आमतौर पर कीमत 300 से 400 रुपये प्रतिकिलो होती है। 
एवोकैडो के पेड़ की जहां तक सिंचाई और रखरखाव का सवाल है तो इसका पौधा फरवरी, मार्च या अगस्त से सितंबर के बीच में रोपना चाहिए। पहले 15 से 20 दिन में लगातार सिंचाई करनी चाहिए। लेकिन जनवरी से जून के बीच जब फल बनने का समय होता है, उस समय इस पेड़ को लगातार सींचना चाहिए, नहीं तो फल सूखकर गिर जाते हैं। एवोकैडो के पेड़ के इर्दगिर्द मलचिंग करनी चाहिए ताकि नमी बनी रहे और खरपतवार न बनें। हर साल पांच से दस किलोग्राम गोबर की खाद एवोकैडो के पेड़ को नियमित रूप से देनी चाहिए। आमतौर पर एवोकैडो का पेड़ तीन से चार साल के बीच में फल देना शुरु कर देता है और आठ से दस सालों के बीच पूरी तरह से उत्पादक हो जाता है। अच्छी तरह से विकसित एवोकैडो का पेड़ औसतन 80 से 150 किलो फल हर वर्ष देता है। अगर एक एकड़ में एवोकैडो के 100 पेड़ लगा लिए जाएं तो किसान को हर साल 2 से 6 लाख रुपये की कमाई बड़े आसानी से हो सकती है। पहले साल डेढ़ से दो लाख रुपये का फायदा होगा, मगर चौथे साल के बाद से औसतन 6 से 10 लाख रुपये के बीच फायदा लिया जा सकता है। 
सबसे बड़ी बात यह है कि एवोकैडो के पेड़ की उम्र 40 से 50 साल की होती है। जहां तक इसके विपणन और बिक्री बाज़ार की बात है तो यह देश के सभी हाई-एंड-मार्किट में तेजी से लोकप्रिय हो रहा फल है। दिल्ली, मुंबई, बेंग्लुरु, हैदराबाद, पुणे, चंड़ीगढ़, गुरुग्राम और लखनऊ में इसके फलों की अच्छी खासी मांग है, जहां किसान सीधे नेटवर्क के जरिये भी अपनी फसल बेंच सकते हैं। साथ ही होटल, हेल्थ, फूड स्टोर और सुपर मार्किट में भी इसकी अच्छी खासी मांग है। अगर ऑर्गेनिक प्रमाणन (एफएसएसएआई/अपीडा) हासिल कर लें तो इसके अच्छे खासे निर्यात की भी संभावनाएं है। एवोकैडो के फल के अलावा बाज़ार में इसके जिन अन्य उत्पादों की तेजी से मांग बढ़ रही है, वो हैं- इसका तेल, फेस क्रीम, सलाद-डेसिंग तथा स्मूदी। बेंग्लुरु का आईआईएचआर संस्थान एवोकैडो की बंग्लुरु की अन्य कई नई किस्मों पर रिसर्च कर रहा है, जिन्हें देश के किसी भी क्षेत्र में उगाया जा सकता है।

 -इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर 
 

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