मृत्यु एवं पुनर्जन्म का रहस्य

पुनर्जन्म आध्यात्मिक विषय है। दुनिया भर में वैज्ञानिक मापदण्डों पर इसकी सत्यता पर रखने के लिए अनेक शोध किए जा रहे हैं।
वेदों से लेकर जातक ग्रन्थों, अनेक मत, सम्प्रदायों की धार्मिक, दार्शनिक पुस्तकों और जनश्रुतियों तक में इसके बारे में अनेक प्रामाणिक तथ्य व घटनाएं पढ़ने और सुनने में आती हैं। वहीं दूसरी तरफ सस्ती लोकप्रियता प्राप्त करने के लिए अनेक तथाकथित तंत्र-विद्या के जानकार पुनर्जन्म की घटनाओं और तथ्यों को अंधविश्वास, पाखण्ड और भ्रमजाल के रूप में पेशकर जन-सामान्य को भ्रमित करते आ रहे हैं।
पुनर्जन्म पर जो शोध हुए हैं, वे यह प्रमाणित करते हैं कि पुनर्जन्म पूर्व जन्मों के संस्कारों, कर्मों और भावनाओं के कारण मिलता है। विश्व में पुनर्जन्म संबंधी छ: हजार घटनाओं पर शोध हो चुके हैं। इनसे जो बातें निकल कर आयी हैं, उनसे वेदों, उपनिषदों, बौद्ध और जैन ग्रन्थों की पुनर्जन्म संबंधी सिद्धातों की ही पुष्टि हुई है। पूर्व जन्म के अनुभव और नैरन्तर्य को योग सिद्ध पुरुष ही प्रामाणिक रूप में बता सकता है। सामान्य जन तो केवल यही बता सकता है कि प्राणी एक शरीर को त्यागता है और दूसरा धारण करता है। ऋ ग्वेद के मंत्र में ईश्वर से प्रार्थना की गई है कि हे ईश्वर, आप अनुकम्पा कर पुनर्जन्म पाने पर हमारी बुद्धि मन, चित्त, बल, पराक्र म और उत्तम इन्द्रियों से युक्त हमें शरीर दीजिए। गीता में भगवान कृष्ण अर्जुन से कहते हैं-हे अर्जुन, मेरे और तुम्हारे अनगिनत जन्म हो चुके हैं परन्तु उन सब को तू नहीं जानता, मैं जानता हूं। अथर्ववेद के एक मंत्र में पुनर्जन्म को समझाते हुए कहा गया है-जो पूर्व जन्म के स्वभाव युक्त जीवात्मा है, वह पूर्व शरीर को छोड़कर वायु के साथ रहता है। पुन: जल, औषधि एवं प्राण आदि में प्रवेश कर वीर्य में प्रवेश करता है। जो मनुष्य अधर्माचरण करता है, वह अनेक निम्न कोटि के शरीर पाता है। बाल्मीकि रामायण में भी पुनर्जन्म की पुष्टि करने वाला एक लोक प्रसिद्ध प्रसंग आया है। भगवान राम आहत दशा में लक्ष्मण को अपनी बाहों में भरे हुए विलाप करते हुए कहते हैं-‘निश्चय ही मैंने अनेक पाप किए हैं। अनेक जन्मों के पापों का फल आज हमें दुखी कर रहा है।’ इसके अलावा महाभारत में अनेक स्थलों पर पुनर्जन्म की अनेक घटनाओं के प्रसंग आए हैं। अपने सौ बलशाली पुत्रों, पौत्रों और हजारों सगे सम्बन्धियों के मारे जाने पर गांधारी विलाप करती हुई श्री कृष्ण से कहती है’ हे माधव। मैंने निश्चय ही पिछले जन्म में बहुत से पाप किए हैं जिसके कारण मैं अपने सम्पूर्ण कुल, सम्बन्धियों और भाइयों को मरा हुआ  देख रही हूं।’ वैदिक और बौद्ध-जैन वांड्मय के अलावा पुनर्जन्म के बारे में पाश्चात्य धर्मवेत्ताओं और दार्शनिकों ने भी अपनी राय जाहिर की है। वर्तमान समय में ऋ षि कल्प समझे जाने वाले एडवर्ड कारपेंटर ने पुनर्जन्म को इस तरह ख्यायित किया है कि जो मनुष्य पृथ्वी पर जीवन धारण करता है, वह इस जगत के लिए कोई सर्वथा नवीन आत्मा नहीं होता। मैक्समूलर ने पुनर्जन्म पर अपना विचार देते हुए लिखा है-‘मरणोपरान्त आत्मा सूक्ष्म शरीर के साथ एक नाड़ी के रास्ते बाहर निकल जाती है और अपने कर्मों के अनुसार अगला जन्म धारण करती है।’ प्लेटो ने पुनर्जन्म को पारिभाषित करते हुए लिखा है-‘आत्मा इस जन्म में जो भी ज्ञान प्राप्त करती है, वस्तुत: वह पूर्व जन्मों के अनुभवों की आवृत्ति मात्र है।’ अरस्तु ने तो वैदिक वांड्मय की पुनर्जन्म की सनातन मान्यताओं को ही दोहराया है। पुनर्जन्म के संबंध में पक्ष और विपक्ष में अनेक तर्क दिए जाते रहे हैं। मैं पुनर्जन्म को सत्य प्रमाणित करने वाले तर्कों के बारे में ही विचार करूंगा। पुनर्जन्म का मतलब है आत्मा का अपने पूर्व जन्म के कर्मों, संस्कारों एवं विषय वासनाओं के अनुसार अगला जन्म प्राप्त करना। पुनर्जन्म को प्रमाणित करने वाली घटनाएं संसार में रोज घटित होती हैं। कोई न कोई बालक आए दिन पूर्व जन्म की अपनी स्मृतियों को बताता ही रहता है जो शोध के अनुसार सत्य प्रमाणित होती हैं।  छोटी उम्र में ही बिना सिखाए अनेक विषयों में दक्षता हासिल कर लेना पूर्व जन्म के कर्मों को ही प्रमाणित करता है। एक ही जन्म मानने से वे सभी तर्क-सिद्धान्त और मूल्य समाप्त हो जाते हैं जिनके अनुसार मानवीय मूल्य, न्याय, प्रेम, त्याग, ईमानदारी के फल इस जन्म के अलावा पुनर्जन्म में भी प्राप्त होते हैं। बिना पुनर्जन्म को माने शुभ-अशुभ कर्मों के फल नहीं प्राप्त कराए जा सकते।  विकास योनि की श्रेणी को निर्धारित करने के लिए पुनर्जन्म को मानना अति आवश्यक है अन्यथा जो पशु, कीट, पतंग एवं वनस्पति योनि में जीव हैं, वे हमेशा के लिए उसी योनि में पड़े रह जाएंगे जो कर्म सिद्धान्त के परे हैं। लौकिक व्यवहार में इसे इस तरह से भी समझा जा सकता है कि किसी छात्र ने किसी कक्षा में प्रवेश लिया। वह एक वर्ष तक कठिन परिश्रम करता रहा। फिर यदि उसे परीक्षा देने और उस परीक्षा के फलानुसार आगे बढ़ने का अवसर न मिला तो उसे साल भर मेहनत से पढ़ने का क्या मतलब?  अधिकांश दार्शनिक और धर्मवेत्ता आत्मा को अमर एवं सूक्ष्मातिसूक्ष्म मानते हैं। आत्मा की अमरता का अर्थ यह बताता है कि वह अनंत योनियों में सतत शरीर धारण कर पूर्व जन्मों के कर्मों का फल भोगती है। इस तरह पुनर्जन्म को प्रमाणित करने के लिए अनगिनत तर्क तथा तथ्य पेश किए जा सकते हैं। पुनर्जन्म को प्रमाणित करने के लिए दुनिया के तमाम मनोवैज्ञानिक, धर्म-अध्यात्मवेत्ता तथा रहस्यवेत्ता शोध में लगे हुए हैं। इयन स्टीवेंसन, रेमण्ड मूडी, माइकल सेबॉम और जमुना प्रसाद जैसी मनोविज्ञान की हस्तियां अब तक पुनर्जन्म की छ: हजार घटनाओं को रिकार्ड कर चुकी हैं।  न घटनाओं से पुनर्जन्म को बकवास साबित करने वाले तर्कों एवं मान्यताओं को जहां तथ्यहीन साबित करने में बल मिलता रहा है। 

—अखिलेश आर्येन्दु