आइये, स्वच्छता की ओर कदम बढ़ाएं

ज्ञान सिर्फ दूसरों को बांटने के लिए होता है। यह बात सोलह आने तब सच हो जाती है, जब अक्सर ही हम लोग स्वच्छता का नारा पीटते हुए भी, गंदगी फैलाने में सारी दुनिया में नम्बर एक पर हैं, कैसे? और क्यों बसों में, ट्रेनों में, रास्ते पर, सड़कों पर, नहरों में, खाली जगहों पर, अपनी गाड़ी के बाहर, रेलवे लाइनों के बीच... हर जगह आपको इस बात के सबूत कचरे के ढेरों व उन पर भिनभिनाती मक्खियों से मिल ही जायेंगे। 
कुछ भी खाकर बचा लिफाफा, रोटी का रैपर, बची सब्ज़ी, पान की पीक, बच्चे का डाइपर, मूंगफली या फलों के छिलके, स्नैक्स के रैपर आदि हम सड़कों पर फैंक कर हाथ झाड़ कर आगे निकल जाते हैं और बड़ी अकड़ से कूड़े के ढेर के पास से गुजरते नाक ढकने लगते हैं। यह कचरा भी तो हमीं ने जमा किया है, फिर बदबू भी हमारी फैलाई है। कमाल है अपनी ही चीज़ खाकर, उस पेपर को डस्टबिन में डालना हम अपनी आन, बान और शान के खिलाफ समझते हैं। तो एक बात बताइये, रोज़ अपने घर में झाड़ू क्यों लगाते हैं? क्योंकि घर साफ होना चाहिए, तो घर से निकलकर जिस रास्ते पर हम चलते हैं, उसकी सफाई का ध्यान कौन रखेगा? 
हमारे टशन, हमारे फैशन में या अकड़ के नीचे दबे हमारे घटिया ख्यालात हमें मुंह नहीं चिढ़ाते। ठीक कहा है, किसी ने कि अक्ल कपड़ों से नहीं, व्यवहार से परखी जाती है। महंगे कपड़े या खुली जुल्फों से हम स्वच्छता के जिस माऊंट एवरेस्ट पर चढ़ना चाहते हैं, वह दिखावे, अमीरी, स्टेटस व अमीरी-गरीबी के गलियारों में ही खोकर अपना दम तोड़ देगी। मैं हैरान हो जाती हूं, जब लोग अपने ही कागज़ कूड़ेदान में डालने में शर्म महसूस करते हैं। दूसरे देशों की सफाई का व्याख्यान करते अपने देश की दीवारों पर गंदगी का लेबल लगाते उन्हें जरा-सी शर्म का एहसास भर नहीं होता। शायद हमें बदबू सूंघने की लत लग चुकी है। जागो भारत, स्वच्छता अभियान जैसे स्लोगन हमें मुंह चिढ़ाते नज़र आते हैं। जब तक हम हर जगह को घर की तरह नहीं मानते तब तक सफाई के सारे दावे खोखले व बेमतलब हैं। जी हां, सबसे पहले हमें अपने मन की सफाई करनी होगी। ‘मैं क्यों करूं’ का वाक्य बदलकर ‘मैं ही करूं’ का स्लोगन याद करना होगा। आपको पता है विदेशों में सड़कों पर थूकना, कागज़ फैंकना सब सज़ा के योग्य अपराध हैं, जिसे भारत में हम सीना चौड़ा करके बड़ी बेशर्मी से अंजाम दे देते हैं।
आइये, सचमुच एक कदम स्वच्छता की ओर बढ़ाएं व गंदगी न फैलाएं और न ही फैलने दें। सफाई रखें ताकि रोज़ नई-नई पैदा हो रही बीमारियों से अपने आपको व अपनी आने वाली पीढ़ी को बचाया जा सके।