प्राचीन मंदिर महाकाली श्री पौहलाणी माता

महाकाली श्री पौहलाणी माता गांव खैहर डैंडकुंड, डाकखाना डल्हौजी, ज़िला चम्बा, हिमाचल प्रदेश में स्थित है। विश्वविख्यात पर्यटन नगरी डल्हौजी से लगभग 14 किलोमीटर की दूरी पर सबसे ऊंची पहाड़ी पर यह मंदिर सुशोभित है। डल्हौजी की सड़क का रास्ता तय करके फिर एक विशाल ऊंची पहाड़ी के शिखर पर पैदल ही जाना पड़ता है। मंदिर को जाता यह लगभग तीन किलोमीटर का सीधा पहाड़ी रास्ता कठिन परन्तु आनंददायक है। सीधी चढ़ाई और कही-कहीं केवल दो फुट चौड़ा कठिन रास्ता और साथ-साथ गहरी खड्डें। ऊंचे पर्वतों के बीच का टेड़ा-मेढ़ा रास्ता मंदिर दृश्य की रोचकता को बढ़ाता है। कुछ पहाड़ियों के बाद मंदिर नज़र आने लगता है। सर्दियों में भी यहां पसीने छूट जाते हैं। इस मंदिर से दूर-दूर के दृश्य अच्छे लगते हैं। कमाल के दृश्य खूबसूरती का मंज़र पेश करते हैं। दो पहाड़ों के बीच यह लाल रंग का एकाग्रमयी मंदिर आध्यात्मिकता तथा शक्ति का संदेश देता है। इस प्राचीन मंदिर का निर्माण पहले पहल गांव वालों ने किया। यहां एक छोटा-सा मंदिर था परंतु 1977 में इस मंदिर को बड़ा रूप दिया गया। आजकल मंदिर की कमेटी बनी हुई है। आजकल यहां लगभग 1500 श्रद्धालुओं के ठहरने के लिए सराय हैं। प्रसाद चाय-पानी के लिए कुछ दुकानें हैं। मंदिर में हवन करने के लिए भी जगह है। मंदिर से खजियार आधा घंटा पैदल का रास्ता है। समुद्र तट से लगभग दस हज़ार फुट की ऊंचाई पर स्थित माता पौहलाणी मंदिर श्रद्धालुओं की आशाएं संपूर्ण करता है। भक्तगण मनोकामना के लिए मंदिर में त्रिशूल तथा लाल चुनरी बांधते हैं। मन्नत जब संपूर्ण हो जाती है, तब श्रद्धालु चुनरी खोल देते हैं तथा त्रिशूल मंदिर में भेंट कर देते हैं। श्रद्धालु अपनी-अपनी श्रद्धा तथा सामर्थ्य के अनुसार चढ़ावा चढ़ाते हैं। भंडारे, हवन, कीर्तन, बैंड-बाजे आदि का आयोजन होता है। यहां हर समय श्रद्धालुओं का तांता लगा राहत है खास करके प्रत्येक मंगलवार, वीरवार, रविवार को लोगों की लम्बी कतारें लगी रहती हैं। यहां का मौसम गुनगुना, गुदगुदा मज़ा देता है। आप ऊपर और बादल पहाड़ों के बीच नीचे, कमाल का दृश्य देखने को मिलता है। मंदिर के साथ ऊपर दाईं ओर ऊंची पहाड़ी पर काली माता की पत्थर की मूर्ति भी है। श्रद्धालु यहां भी दर्शन करने जाते हैं। श्रद्धालु तरह-तरह के पकवान के अतिरिक्त नई फसल की पहली रोटी चढ़ाते हैं। यहां बांझ महिला की गोद हरी होती है। यहां तरह-तरह की जड़ी-बूटियों की सुरभि मन को भाती है। स्वयं खिले फूल पहाड़ों की सुंदरता को चार चांद लगाते हैं। माता पौहलाणी जी को संकट मोचन भी कहा जाता है। यह मंदिर लालिमा में अपनी शक्ति का प्रतीक नज़र आता है। इस मंदिर पर छत नहीं डाली जाती। ऐसा इसलिए है कि माता का आशीर्वाद ही सब कुछ है। 

—बलविन्दर ‘बालम’
मो. 98156-25409