किस्सा ब्लैक होल का

मेरेविचार में ब्लैक होल शब्द का रिश्ता विज्ञान से बहुत पहले इतिहास के साथ जुड़ा हुआ है। ईस्ट इंडिया कम्पनी, फोर्ट विलियम और बंगाल के नवाब सराज-उद-दौला 20 जून, 1756 को उसने फोर्ट विलियम पर फतेह करके 146 अंग्रेज़ पकड़े और 18 फुट जर्ब 14 फुट की छोटी कोठरी में बंद कर दिया। आगामी सुबह सिर्फ 23 बचे। बाकी सभी मारे गये। इस घटना को हमें 8वीं कक्षा के इतिहास में कोलकाता की ब्लैक होल घटना के नाम से पढ़ाया था। आगामी वर्ष 1757 में प्लासी के युद्ध में बंगाल के नवाब को हरा कर अंग्रेज़ों ने न सिर्फ इसका बदला लिया बल्कि हिन्दुस्तान में अंग्रेज़ी शासन की स्थायी नींव भी रख दी। तारों, ग्रहों और ग्लैक्सियों की ओर रुचि हुई तो ब्लैक होल शब्द के विज्ञान के संकल्प के साथ सम्पर्क हुआ तो जो त्रास्द न हो कर दिलचस्प और रहस्यों से भरपूर था। 18वीं सदी में ही 27 नवम्बर, 1783 के फिरोसाफीकल ट्रांसजैक्शनज़ ऑफ रायल सोसायटीज़ ऑफ लंदन में जॉन मिशेल ने ब्लैक होल के बीज़ रूप में कल्पना डार्क स्टार के नाम से किया। उसने कहा कि अगर कहीं हमारे सूर्य से 500 गुणा बड़ा तारा हो तो उसका गुरुत्वाकर्षण इतना  अधिक होगा कि उससे बच निकलने वाली गति (अस्केप वेलासिटी) रोशनी की गति से अधिक होगी। यानि रोशनी भी उससे बाहर नहीं जा सकेगी। इस वर्ष लैपलेस ने भी लंदन की रॉयल सोसायटी के सामने एक लैक्चर में यह बात कही कि अधिक तारों का गुरुत्वाक र्षण इतना अधिक हो सकता है कि उससे रोशनी भी हमारे तक नहीं पहुंच सकती। इस तरह इतिहास  का विज्ञान दोनों में ब्लैक होल की कहानी 18वीं सदी तक जा पहुंची है। मिशेल और लैपलेस की इन टिप्पणियों की ओर किसी ने ध्यान न दिया। पूरी 19वीं सदी इसी तरह निकल गई। आईनस्टाइन के व्यापक (जनरल) सापेक्षता सिद्धांत के पीछे उक्त नुस्खों की जांच-परख/सच की कहानी चली। सिगुलैरिटी के बिन्दू जहां पदार्थ और रेडिएशन के गायब हो जाने, 1915 की आईनस्टाइन की समीकरणों से निकले। फिर भी आईनस्टाइन ने 1939 में आप ने एक लेख के द्वारा यह कहा था कि मिशेल और लैपलेस की काल्पनिक किस्से की वास्तविक अस्तित्व से दूर है। 1916 में आइनस्टाइन के व्यापक संक्षेप्ता सिद्धांत के आधार पर कार्ल स्वराजचाइल्ड ने बाकायदा किसी विशेष भार वाले विशाल तारे को सिंकोड़ कर ब्लैक होल का रूप देने वाले आकार का अनुमान लिया। पृथ्वी को सिंकुड़ कर ब्लैक होल बनाएं तो पृथ्वी छोटी-सी गोली के आकार जैसी हो जाएगी। हमारे सूर्य का स्वराजचाइल्ड रेडियम तीन किलोमीटर से भी कम है। अर्थात् अगर हम इसको सिंकुड़ कर ब्लैक होल बनाएं तो इसका अर्द्ध-ब्यास तीन किलोमीटर से भी कम करना पड़ेगा। भार इतना ही रखना पड़ेगा। स्वराजचाइल्ड  की 1916 में ही मृत्यु हो गई। 1931 में सी.वी. रमन के भतीजे सुबरामणियम चंद्रशेखर ने चंद्रशेखर मिलिट का संकल्प पेश किया। उसने कहा कि जब तारे मरते हैं तो उनका अंत उनके भार पर निर्भर होता है, जो उनके इलैक्ट्रोन डीजैनरेट मैटर का होता है। सरल साधारण भाषा में यह भी कह सकते हैं कि मर रहे तारों के ऊपर एक अवस्था आती है जब इनके स्वतंत्र घूम रहे इलैक्ट्रोन गुरुत्वाकर्षण के दबाव के साथ इतने इकट्ठे हो जाते हैं कि यह अपना स्वतंत्र अस्तित्व गंवाने लगते हैं। प्रोटानों के साथ मिल कर न्यूट्रान बनाने लगते हैं। इस अवस्था में पहुंचने वाले तारे का भार अगर चंद्रशेखर लिमिट से अधिक हो तो वह कहीं स्थिर नहीं रहता। उसके अपने ही गुरु एंक्रिस्टन, रूसी वैज्ञानिक लैंडो और उसके समकालीनों के चंद्रशेख लिमिट से भरे ऐसे ही मर रहे तारे न्यूट्रान स्टार बन जाते हैं। स्मरण रहे कि चंद्रशेखर ने यह लिमिट अपने सूर्य के भार से 1.4 गुणा बताई थी और इससे कुछ भारी मरने की कगार के तारों में न्यूट्रान तारा बनने का पता कुछ वर्षों बाद लगा था। मरने के कगार पर तारों वाली बात भी स्पष्ट बनती है। यह वास्तव में तारे के व्हाइट डवार्फ  बनने की स्टेज है। 1939 में टालमैन-ओपनहीमर-वालक़ाफ ने मिल कर टी.ओ.वी. लिमिट बताई। यह संयुक्त सूर्य से डेढ़ से तीन गुणा भार की सीमा थी। अगर मारे गए तारे का व्हाइट डवार्फ की अवस्था में भार इस सीमा से अधिक हो जाता है तो यह सचमुच ब्लैक होल बन जाता है। यह एक ऐसा अंधा कुआं है कि जिसके भीतर गिरना सम्भव है। इस कुएं का अर्द्ध-व्यास ज़रूर किसी बड़े तारा का स्वराजचाइल्ड रेडियस होगा। इस कुएं के सब कुछ खा जाने वाले घेरे को आज वैज्ञानिक इवैंट होराईज़क कहते हैं। इवैंट होराइज़न को लांघना कर कुछ वापिस नहीं आता। वह इस अंधे कुएं में समा जाता है। इस कुएं का पेट नहीं भरता। किसी ऐस्टराइड, पुच्छल तारे की बात छोड़ें, हमारा चांद या हमारी पृथ्वी भी इस सीमा को पार करके तो खत्म। पृथ्वी तो क्या हमारा सूरज भी यह गुस्ताखी नहीं कर सकता। ब्लैक होल असंख्यक सूरज निगलकर भी भूखा रहता है। यह बातें टी.ओ.वी. सीमा से चाहे स्पष्ट नहीं थी हुईर्ं परन्तु ब्लैक होल की यथार्थ सम्भावनाएं और उसके व्यवहार संबंधी चर्चा ज़रूर छिड़ गई। ब्लैक होल के अंधे कुएं की चार दीवारी को तब शवराज चाइल्ड सरफेस कहा जाता था। इसको 1958 में डेविड फिंकलस्टीन ने इवैंड होराईज़न का नाम दिया। इस सीमा सरहद से सभी रास्ते एक तरफ अर्थात भीतर ही जाते हैं। ब्लैक होल शब्द का प्रयोग आज भी नहीं था शुरू हुआ। इस शब्द को पहली बार 1963 में लाइफ और साईंस न्यूज़ नाम के दो मैगज़ीनों ने इस्तेमाल किया था। एन एविंग नामक एक महिला पत्रकार ने 18 जनवरी, 1964 को ब्लैक होल इन स्पेस नाम एक लेख में इस शब्द को कलीवलैंड में अमरीकन एसोसिएशन फार की अडवांसमैंट ऑफ साईंस की बैठक में रिपोर्ट प्रकाशित करवाते हुए प्रयोग किया था। दिसम्बर 1967 में जान वीलर ने लैक्चर के समय एक विद्यार्थी ने ब्लैक होल शब्द इस्तेमाल करके बात की तो वीलर को यह शब्द इवैंट हैराइज़न के व्यवहार को संक्षेप में पूरी तरह स्पष्ट करने लगा। उसने उसके उपरांत यह शब्द इसकी अर्थ-समर्था और एडवलटाइज़मैंट मूल्य कारण  स्थायी ही अपना लिया। उसने इसका अपने लैक्चरों, खोज पत्रों, लेखों, रचनाओं में इतना अधिक इस्तेमाल किया कि अधिकतर लोग यह मानने लगे कि ब्लैक होल शब्द जान वीलर ने ही बनाया है। डार्क स्टार, शवारजचाइल्ड सरफेस, इवैंट होराइज़न और ब्लैक होल संबंधी संक्षेप्ता सिद्धांत गरुत्त्वाकर्षण से गणितज्ञ समीकरणों के सहारे इतनी अजीबो-गरीब बातें सामने आती थी कि बड़े-बड़े वैज्ञानिक देर तक इनकी यथार्थ सम्भावना से इन्कार करते रहे। और तो और एडिंगटन, लैंडो और आईस्टाइन जैसे सोचते थे कि ऐसा नहीं होगा। 20वीं सदी के सातवें दशक में वैज्ञानिक यह सोचने लगे कि सचमुच ही ब्लैक होल यथार्थ का हिस्सा हो सकता है। 1971 में जान लीवर ने अंतरिक्ष में पहला ब्लैक होल का पता बताया। टालमैन ओपनहीमर वोलकाफ लिमिट ने तीन/चार से अधिक वाले किसी भी वाईट डवाऱफ को ब्लैक बनने से नहीं रोका जा सकता। इस सच्चाई को वैज्ञानिक स्वीकार करने लगे। इतने बड़े तारों के स्वै-गरुत्त्वाकर्षण से खत्म होने को ग्रैवीएशन कोलैपस का नाम दिया गया। वैज्ञानिकों ने कहा कि ब्रह्मांड के विकास के प्राथमिक समय में इतने बड़े तारों से बड़ी-बड़ी ब्लैक होलें बनती रही हैं। हमारे सूर्य से एक हज़ार गुणा भारी भी। तारों को जन्म देने वाले पूरे के पूरे बदलाव की उन समयों में मर कर सुपर मैसिव ब्लैक होल बन गए। एक लाख सूर्यों जैसी भारी ब्लैक होलें। वह यह कहने लगे कि हमारी दूधिया आकाश गंगा सहित हर ग्लैक्सी के केन्द्र में एक बड़ा ब्लैक होल है।