शशि कपूर व जेनिफर के प्रेम का अनुसना किस्सा

1956 की बात है,18 वर्ष के शशि कपूर अपने पिता के पृथ्वी थिएटर में अभिनेता व सहायक मंच प्रबंधक की दोहरी भूमिका निभाया करते थे। उनका ग्रुप कलकत्ता के एम्पायर थिएटर में परफॉर्म कर रहा था और जनता की प्रतिक्रिया जानने के लिए शशि कपूर ने पर्दे के कोने से झांककर देखा तो उनकी नज़र एक सुन्दर लड़की पर पड़ी, जो उन्हें रूसी प्रतीत हुई। उन्होंने जानने की कोशिश की कि वह लड़की कौन है, तो मालूम हुआ कि वह एक अन्य थिएटर ग्रुप शेक्सपियराना की अभिनेत्री जेनिफर केंडल है और चूंकि पृथ्वी थिएटर के मंचन दिवस बढ़ा दिए गए थे, इसलिए वह अपनी बारी की प्रतीक्षा करते हुए खाली थी।
इस अंग्रेज़ लड़की को शशि कपूर ने अगले दिन भी दर्शकों में देखा और वह मन ही मन उससे प्रेम करने लगे। लेकिन इतना साहस न जुटा सके कि जाकर उससे कुछ बात कर सकें क्योंकि उस समय तक उन्होंने अपने परिवार व ग्रुप की महिलाओं को छोड़कर किसी लड़की से बात तक नहीं की थी। अपने एक कजन के सहारे वह, वहां तक तो पहुंच गए जहां जेनिफर ठहरी हुई थीं, उनके पिता जेफ्फरी केंडल से बात भी हुई, लेकिन मुलाक़ात की उस पूरी अवधि के दौरान जेनिफर ने उन्हें आंख उठाकर तक नहीं देखा। शशि कपूर बहुत निराश हुए। उनका दिल टूटने ही वाला था कि अगले दिन जेनिफर ने उन्हें एक स्कूल में अपना नाटक देखने के लिए आमंत्रित किया। और इस प्रकार दोनों की मुलाकातों का सिलसिला शुरू हुआ, जिसमें अक्सर चार आने की पूरी कचौरी का लंच हुआ करता था क्योंकि शशि कपूर की मामूली आमदनी इसी की ही अनुमति देती थी।
मुलाकातों के बावजूद शशि कपूर अपने प्रेम का इज़हार नहीं कर पा रहे थे, तो बड़े भाई शम्मी कपूर ने हस्तक्षेप किया और जेनिफर को माता पिता से मिलाने के लिए कहा। कपूर खानदान तो ‘फिरंगी’ बहू के लिए सहमत हो गया, लेकिन जेफ्फरी केंडल नहीं माने और उन्होंने दो वर्ष के लिए बात टाल दी। जेनिफर के करीब रहने के लिए शशि कपूर शेक्सपियराना थिएटर में काम करने लगे, लेकिन दो साल बाद भी जेफ्फरी केंडल ने इंकार ही किया, वह अपने थिएटर की नायिका को खोना नहीं चाहते थे। इस बार जेनिफर अड़ गईं। उन्होंने शशि कपूर से कहा कि वह वयस्क हैं और अपना फैसला स्वयं कर सकती हैं। फलस्वरूप दोनों ने परम्परागत तरीके से मुंबई में जुलाई 1958 को शादी कर ली। केंडल दंपत्ति ने विवाह में हिस्सा नहीं लिया।
जेनिफर के जीवन में आते ही शशि कपूर की नौका फिल्म संसार में और थिएटर की दुनिया में तेज़ी से चलने लगी। हालांकि बीच बीच में खराब दिन भी आए जब शशि कपूर के पास कोई काम नहीं था, लेकिन कामयाबी और ख़ुशी के दिन अधिक थे, खासकर इसलिए कि करण, कुणाल व संजना के जन्म से जेनिफ़र व शशि कपूर का संसार पूर्ण हो चुका था। जेनिफ़र न केवल घर, पृथ्वी थिएटर को देखती बल्कि शशि कपूर की डाइट का भी ख्याल रखती ताकि उनका शरीर फिल्मों के लायक बना रहे क्योंकि कपूर खानदान में शरीर फूलने की बीमारी है। जेनिफर ने शशि कपूर से कभी कोई बात नहीं छुपाई, सिर्फ अपने कैंसर की बात को छोड़कर, जिसके कारण उनका 7 सितम्बर 1984 को निधन हो गया। अपनी बीमारी के कारण शशि कपूर का फिल्मों में काम करना तो 1999 में ही बंद हो गया था, लेकिन उन्होंने थिएटर में अपनी दिलचस्पी को कभी कम नहीं होने दिया, केवल जेनिफर की वजह से। उन्होंने अपने घर में कुछ नहीं बदला क्योंकि उसमें जेनिफर की याद बसी थी, जिनकी उपस्थिति वह हर पल महसूस करते थे, इसलिए व्हीलचेयर पर बैठे हुए अपना सारा दिन अपने घर में ही गुज़ारते थे।
नेट पर उनके मरने की खबर कई बार आयी, लेकिन आख़िरकार लम्बी बीमारी के बाद जेनिफ़र की यादों को अपने दिल में समाये शशि कपूर 79-वर्ष की आयु में 4 दिसम्बर 2017 को इस दुनिया से रुखसत हो गये।
शशि कपूर अपने परिवार से बहुत अधिक जुड़े हुए थे। वह कभी रविवार को काम नहीं करते थे और पूरा दिन अपने परिवार के साथ बिताते थे। रविवार को वह अपने किसी दोस्त को भी अपने घर पर आमंत्रित नहीं करते थे । 80 के दशक में वह 6 शिफ्टों में काम कर रहे थे, घर पर बहुत देर से पहुंचते थे लेकिन सुबह 7:30 पर अपने परिवार के साथ नाश्ता अवश्य करते थे। 60 के दशक के आखिर में शशि कपूर के पास कोई काम नहीं था। उन्होंने अपनी स्पोर्ट्स कार बेच दी, घर का और भी सामान बिकने लगा, लेकिन 1971 में जब ‘शर्मीली’ आयी तो सब कुछ ठीक होने लगा। शशि कपूर स्टार बन गए। इसके बावजूद उनमें स्टारों के नखरे कभी नहीं आए, वह सेट पर समय से पहुंचते, सबसे अच्छा व्यवहार करते और हर कोई उनके साथ काम करना पसंद करता था। शशि कपूर ने अच्छी पारिवारिक जिंदगी गुजारी, जीवन को भरपूर जिया, अच्छी फिल्में बनायी। बीमारी के कारण फिल्मों से अलग होने के बाद वह अपने बच्चों के भविष्य की अच्छी कामना करते हुए अपनी प्यारी पत्नी जेनिफर केंडल की यादों में खोय रहते थे, विशेषकर इस अफसोस के साथ कि ’36 चौरंगी लेन’ का सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का नेशनल अवार्ड जेनिफर को क्यों नहीं दिया गया? 1981 का यह अवार्ड रेखा को ‘उमराव जान’ के लिया दिया गया था, हालांकि जेनिफर का अभिनय भी किसी भी सूरत में रेखा से कम नहीं था। 
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर