अहिंसा का संदेश देता है मुहर्रम

इस्लाम के शुरुआती दौर में भी कुछ ऐसा ही हुआ। हिजरी सन् 60 में यज़ीद खल़ीफा बन बैठे और इसके साथ ही हिजरी सन् 61 में उनके अत्याचार बढ़ने लगे। एक अत्याचारी को अपने गलत कामों को अंजाम देने के लिए कुछ अच्छे या समाज के प्रभावशाली व प्रतिष्ठित लोगों के समर्थन व सहयोग की ज़रूरत पड़ती है। अपने गलत कार्यों के लिए यज़ीद ने हज़रत इमाम हुसैन से भी समर्थन माँगा लेकिन उन्होंने यज़ीद के गलत कार्यों पर मोहर लगाने से इन्कार कर दिया। यज़ीद के अत्याचारों का समर्थन न करने पर उसने हज़रत इमाम हुसैन के कत्ल का हुक्म दे दिया। हज़रत इमाम हुसैन आततायी यज़ीद के अत्याचारों से बचने के लिए मदीना से कूफ़ा के लिए चल पड़े लेकिन रास्ते में कर्बला के मैदान में हज़रत इमाम हुसैन सहित 72 लोगों को शहीद कर दिया गया। मुहर्रम या यौमे-आशूरा हज़रत इमाम हुसैन और उनके साथियों की शहादत की याद को ताज़ा करने तथा उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करने का दिन है। यज़ीद व उसकी सेनाओं ने अत्यंत बर्बरतापूर्वक हज़रत इमाम हुसैन के पूरे परिवार, रिश्तेदारों और उनके साथियों को मार डाला। ऐसे हालात पैदा कर दिए गए जिनसे तपते रेगिस्तान में बच्चे व महिलाएँ भूख और प्यास से तड़प-तड़प कर मरने को विवश हो गए। उन्होंने गलत बात को स्वीकार करने की बजाय शहीद होना स्वीकार कर लिया।  हज़रत इमाम हुसैन का शहीदी दिवस पूरी दुनिया में फैले इस्लाम धर्म के अनुयायी मातम के रूप में मनाते हैं।  हज़रत इमाम हुसैन अपने साथियों के साथ धर्म की रक्षा अथवा आतंक और अन्याय का विरोध करने के लिए शहीद हुए थे इसलिए मुहर्रम हमें अहिंसा का पैग़ाम देता है। मुहर्रम या यौमे-आशूरा हमेशा पहले अरबी महीने मुहर्रम की दसवीं तारीख़ को पड़ता है। जिस प्रकार ईसाइयों के पर्व 
क्रि स्मस इत्यादि अंग्रेज़ी महीनों और तिथियों (ईस्वी संवत्सर अर्थात् ग्रिगोरियन कैलेंडर ) के अनुसार तथा हिन्दुओं के पर्व भारतीय महीनों और तिथियों (विक्र म संवत्सर) के अनुसार मनाए जाते हैं, उसी तरह सभी इस्लामी पर्व अरबी या इस्लामी महीनों (हिजरी संवत्सर) के अनुसार मनाए जाते हैं। इस्लामी या हिजरी संवत्सर हज़रत मुहम्मद साहिब (सल्ल.) की हिज्रत से शुरू होता है। हज़रत इमाम हुसैन की याद में ताजियों का जुलूस निकाला जाता है। बाद में मजलिसें होती हैं और मातम मनाया जाता है। मुहर्रम हमें अहिंसा का पैग़ाम देता है अत: मुहर्रम के दिन किसी भी प्रकार की हिंसा मुहर्रम की मूल भावना के सर्वथा विपरीत है। (युवराज)

-सीताराम गुप्ता