अहिंसा

शेर ने क्रोध से लोमड़ी को ज़ोर से थप्पड़ मारा। लोमड़ी दर्द से कराहते हुए बोली, ‘जा तुझे माफ किया, क्योंकि मैं अहिंसा में विश्वास रखती हूं।’ सभी जानवर खिल खिलाकर हंस दिए कोई भी उसे अहिंसक मानने को तैयार न था बेचारी लोमड़ी अपमान का घूट पीकर वहां से चलती बनी। 
एक दिन लोमड़ी ने अपने अपमान का बदला लेने हेतु तैश में आ गई और बिना विचारे शेर को चांटा लगा दिया। सभी जानवर दिल थाम कर बैठ गए उन्हें लगा कि लोमड़ी का आखरी वक्त आ गया। मगर अगले ही क्षण शेर ने सबको हैरत में डालते हुए कहा, ‘जाओ लोमड़ी मौसी, तुम्हें माफ किया, अब मैं भी अहिंसक बन गया हूँ।’ सब ने शेर की बात पर एकदम विश्वास कर लिया और शेर की प्रशंसा करने लगे। लोमड़ी बहुत हैरान हुई कि जब उसने शेर को माफ किया था तो किसी ने उसकी प्रशंसा नहीं की थी मगर आज सभी शेर की प्रशंसा करते हुए थक नहीं रहे। 
तभी एक बूढ़े लोमड़ ने लोमड़ी को प्यार से समझाया, ‘देख बेटी, यदि कोई कमज़ोर व्यक्ति किसी शक्तिशाली व्यक्ति को माफ करने की बात करे तो इसका कोई अर्थ नहीं है, क्योंकि कमजोर व्यक्ति के पास इसके सिवाय कोई विकल्प भी नहीं होता, मगर जब कोई शक्तिशाली व्यक्ति किसी कमजोर व्यक्ति को माफ कर देता है तो वह प्रशंसनीय है, जैसे आज यदि शेर चाहता तो तुम्हारी गलती के लिए तुम्हारी जान ले सकता था मगर फिर भी उसने तुम्हें माफ कर दिया वह वास्तव में अहिंसा है और प्रशंसनीय है।’