निरन्तर परिवर्तनशील रही हैं भारत की सीमाएं

15अगस्त 1947 को आज़ादी हासिल करने के बाद भारत की आन्तरिक सीमाओं में बदलाव लगातार जारी है। पिछले महीने की शुरुआत में ही जम्मू-कश्मीर को दो हिस्सों में बांट कर 2 नये केन्द्रीय शासित प्रदेशों जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के गठन की घोषणा की गई। हालांकि राज्य को केन्द्रीय शासित प्रदेशों में तबदील करने का केन्द्र सरकार का यह फैसला बेमिसाल परन्तु विवादों में फंसा हुआ है। नीचे दिए गए नक्शे में देखा जा सकता है कि गत 7 दशकों से भारत की आन्तरिक सीमाएं किस तरह लगातार बदल रही हैं। भारत की आन्तरिक सीमाओं का सबसे बड़ा पुनर्गठन 1956 में किया गया था, जब एक अधिकारिक राज्य पुनर्गठन एक्ट को अमल में लाया गया था। परन्तु इसके बाद भी राज्य की सीमाओं में 9 और बदलाव किए जा चुके हैं। 1947 में पाकिस्तान द्वारा और 1962 के युद्ध के समय चीन द्वारा भारत के कब्ज़े में लिए गए क्षेत्रों (कश्मीर के वह क्षेत्र, जिन पर भारत लगातार दावा करता आ रहा है और यह क्षेत्र भारत के नक्शे का हिस्सा हैं) के अलावा भारत की बाहरी सीमाओं में सिर्फ तीन बार बदलाव हुआ है। पहली बार 1961 में गोवा को भारत में मिलाने के समय, दूसरी बार 1962 में (अधिकारिक तौर पर) पुड्डुचेरी को भारत में मिलाने के समय और तीसरी बार 1975 में सिक्किम को भारत में मिलाने के समय भारत की बाहरी सीमाओं में बदलाव देखने को मिलता था। जब 15 अगस्त 1947 को ब्रिटिश भारत के क्षेत्रों को आज़ादी मिल गई तो कुछ क्षेत्र थोड़े वर्षों बाद भारतीय क्षेत्र में शामिल हुए। कश्मीर, हैदराबाद, जूनागढ़, मणिपुर और त्रिपुरा आदि राज्य 1947 से 1949 के बीच भारतीय संघ का हिस्सा बने, जिस कारण कई बार विवाद भी पैदा हुए। आज़ादी से पहले भारत की मौजूदा सीमाओं की लगभग सभी रियासतों ने भारतीय डोमिनियन में शामिल होने का फैसला कर लिया था। आज़ादी के समय कश्मीर और हैदराबाद की रियासतों ने घोषणा कर दी कि वह भारत का हिस्सा नहीं बनना चाहते। इसी तरह ही जूनागढ़ के शासक पहले पाकिस्तान में शामिल होने के लिए सहमत थे, परन्तु बाद में जनमत संग्रह करके सर्वसम्मति से उन्होंने भारत में शामिल होने का फैसला कर लिया था। 26 जनवरी, 1950 को भारत औपचारिक तौर पर गणराज्य बन गया। इसके साथ ही बड़े स्तर पर छोटे-छोटे राज्यों को बड़े क्षेत्रीय राज्यों में मिला दिया गया। उदाहरण के तौर पर सौराष्ट्र को बॉम्बे में मिला दिया गया था। इसके साथ ही भारत के राज्यों का तीन हिस्सों में वर्गीकरण भी किया गया। पहली श्रेणी में वह क्षेत्र रखे जो पहले सीधे तौर पर ब्रिटिश शासन के अधीन रह चुके थे। इनको चुने हुए राज्यपाल तथा राज्य विधानपालिकाओं द्वारा चलाया जाने लगा। दूसरी श्रेणी में रियासतों को रखा गया, जिनको राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त राज्य प्रमुख द्वारा चलाया जाता था। तीसरी श्रेणी में वह क्षेत्र रखे गए, जिनको सीधे तौर पर केन्द्र की ओर से चलाया जाने लगा। दरअसल इन प्रदेशों में राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किए कमिश्नर द्वारा सरकार चलाई जाती थी। वर्ष 1953 में मद्रास राज्य के तेलुगू भाषी क्षेत्रों के लिए आंध्रा प्रदेश की स्थापना के साथ ही पूरे देश में भाषा के आधार पर क्षेत्रों का बंटवारा करने के लिए राज्य पुनर्गठन आयोग की स्थापना की गई। वर्ष 1956 में देश को 14 राज्यों और 6 केन्द्रीय शासित प्रदेशों में बांट दिया गया। देश की आन्तरिक सीमाओं का यह अब तक का सबसे बड़ा पुनर्गठन है। हालांकि इस दौरान 6 राज्यों और 5 केन्द्रीय शासित प्रदेशों की सीमाओं के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं की गई। मौजूदा भारत के गोवा, पुड्डुचेरी तथा सिक्किम (ये तीन क्षेत्र उस समय भारत का हिस्सा नहीं थे) को छोड़ कर उस समय भारत के ज्यादातर क्षेत्रों की सीमाओं में तबदीली कर दी गई थी। इस दौरान अण्डेमान तथा निकोबार द्वीप समूह, लक्ष्यद्वीप, दिल्ली, मणिपुर और त्रिपुरा को केन्द्रीय शासित प्रदेश घोषित कर दिया गया था। दिलचस्प बात यह है कि राज्य पुनर्गठन आयोग ने पंजाब तथा बॉम्बे की भाषा के आधार पर बंटवारा न करने की सलाह दी। हालांकि कुछ समय बाद उपरोक्त सलाह के विपरीत इन दोनों राज्यों का बंटवारा कर दिया गया। इस बड़े पुनर्गठन के बाद भी भारत की आन्तरिक सीमाओं में परिवर्तन जारी रहा। अगले ही वर्ष 1957 में नागा हिल त्यूनसंग क्षेत्र को असम से अलग करके केन्द्रीय शासित प्रदेश घोषित कर दिया गया। संयुक्त महाराष्ट्र आंदोलन और महागुजरात आंदोलन के कारण 1960 में बॉम्बे को 2 राज्यों महाराष्ट्र तथा गुजरात में बांट दिया गया। वर्ष 1961 में गोवा भारतीय संघ में शामिल हो गया, जिससे उपमहाद्वीप में से यूरोपियन बस्तीवाद का अंत हो गया। वर्ष 1962 में पुड्डुचेरी अधिकारिक तौर पर भारत का हिस्सा बन गया। 1963 में नागालैंड (पहले नागा हिल त्यूनसंग क्षेत्र) को राज्य का दर्जा मिल गया। इस दौरान ही अकाली दल द्वारा ‘पंजाबी सूबा लहर’ चलाई जा रही थी। जिस कारण वर्ष 1966 में पंजाबी भाषी और सिख बहुसंख्या वाले क्षेत्रों वाला मौजूदा पंजाबी सूबा अस्तित्व में आया और हिन्दी भाषी तथा हिन्दु बहुसंख्या वाले क्षेत्र काटकर हरियाणा का गठन कर दिया गया। इसके साथ ही पंजाब के पहाड़ी क्षेत्रों को उस समय के हिमाचल प्रदेश में मिला दिया गया। इसके साथ ही केन्द्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ की भी स्थापना की गई, जिसको पंजाब और हरियाणा की संयुक्त राजधानी घोषित कर दिया गया।70 का दशक देश की आन्तरिक सीमाओं में कई बदलावों का साक्षी बना, जिसमें उत्तर पूर्वी क्षेत्र के बदलाव भी शामिल थे। इस कारण आतंकवाद और हिंसा की भी शुरूआत हुई। सबसे पहले 1971 में केन्द्रीय शासित प्रदेश हिमाचल प्रदेश को राज्य का दर्जा मिल गया। वर्ष 1972 में मणिपुर और त्रिपुरा को राज्य का दर्जा दे दिया गया तथा असम से निकाल कर मेघालय राज्य तथा मिज़ोरम और उत्तर पूर्वी फ्रंटियर एजेंसी (जिसको बाद में अरुणाचल प्रदेश का नाम दिया गया) की केन्द्र शासित प्रदेशों के तौर पर स्थापना की गई थी। 3 वर्ष बाद 1975 में सिक्किम में भारत के साथ मिलने या न मिलने के बारे में एक जनमत संग्रह करवाया गया, जिसमें सिक्किम के लोगों ने भारत में शामिल होने का फैसला किया। उस समय तक भारत द्वारा सिक्किम की रक्षा की जाती थी। 80 के दशक के दौरान दो उत्तरी-पूर्वी राज्यों का जन्म हुआ जब 1987 में मणिपुर और अरुणाचल प्रदेश जो पहले केन्द्रीय शासित प्रदेश थे, को पूर्ण राज्यों का दर्जा मिल गया। इसी वर्ष गोवा, दमन और दियो का बंटवारा करके गोवा को राज्य का दर्जा दे दिया गया और दियो तथा दमन को केन्द्र शासित प्रदेश बना दिया गया। वर्ष 1991 में दिल्ली को राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के तौर पर मान्यता मिल गई और इसको केन्द्र सरकार की सांझ वाली विधानसभा मिल गई। इसके बाद भारत की आन्तरिक सीमाओं में अगला बड़ा बदलाव वर्ष 2000 में आया जब उत्तर प्रदेश, बिहार और मध्यप्रदेश से क्रमवार उत्तरांचल प्रदेश, झारखंड तथा छत्तीसगढ़ का निर्माण हुआ। 1960 के दशक में भाषा के आधार पर बने राज्यों के विपरीत इन राज्यों का गठन लम्बे समय से लटकी क्षेत्रीय मांगों तथा क्षेत्रीय विकास में असमानताओं से निपटने के लिए किया गया। वर्ष 2014 में तेलंगाना की स्थापना भी ऐसे ही कारणों से हुई। इसको आंध्रा प्रदेश से अलग कर दिया गया। बावजूद इसके कि दोनों राज्यों के बंटवारे के बाद हैदराबाद पूरी तरह तेलंगाना में शामिल हो चुका था। इसको 10 वर्षों के लिए दोनों राज्यों की संयुक्त राजधानी बना दिया गया। 5 अगस्त 2019 को केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह द्वारा पेश बिलों के आधार पर देश की संसद द्वारा जम्मू-कश्मीर राज्य को दो केन्द्रीय शासित प्रदेशों में बांट दिया गया। इसके एक हिस्से में जम्मू-कश्मीर को विधानसभा वाला केन्द्र शासित प्रदेश बनाया गया, जबकि दूसरे हिस्से को काटकर लद्दाख नाम का अलग केन्द्र शासित प्रदेश बना दिया गया। हाल ही में जम्मू-कश्मीर में किया गया बड़ा बदलाव विकास के स्तर पर योग्य ठहराया जा रहा है। हालांकि इस दावे के बारे में अभी बड़ी बहस चल रही है। शायद इस बदलाव को भारत की आन्तरिक सीमाओं का अंतिम बदलाव नहीं कहा जा सकता, क्योंकि भारत के कई अन्य क्षेत्र भी पूर्ण राज्य के दर्जे के इच्छुक हैं। हालांकि अलग-अलग क्षेत्रों और समय के हिसाब से इस मांग की तीव्रता से उतार-चढ़ाव आता रहता है। विकास के अमल को तेज़ करने के उद्देश्य से सैक्शन 371 अधीन महाराष्ट्र, गुजरात और कर्नाटक जैसे राज्यों में बनाए ‘डिवैल्पमेंट बोर्डों’ तथा उत्तर-पूर्व की ‘टैरीटोरियल कौंसिलों’ भविष्य में अन्य राज्य के लिए संघर्ष करने वाले सम्भावित गुट हो सकते हैं। ऐसे बोर्ड और कौंसिल अन्य राज्य की मांगों के सुर में सुर भी मिला सकते हैं। जैसे राजनीतिक माहिर रोनो जॉय सैन दलील दे चुके हैं और विदर्भा तथा सौराष्ट्र की रणजी ट्राफी क्रिकेट टीमों को भारत में अन्य राज्यों के ‘अधूरे सपने’ के तौर पर पेश कर चुके हैं।