आओ, ग्रीन दीवाली मनाएं 

दीवाली यानि स्वच्छता, दीयों और खुशियों का त्योहार। लेकिन आज यह त्योहार प्रतिष्ठा का प्रतीक बन गया है। दीयों के नाम पर बिजली की लड़ियां और खुशियों के नाम पर आसमान को दहलाने वाले कानफोड़ू पटाखों का शोर। जो जितनी देर रात तक पटाखे चलाता है उसे उतना ही आर्थिक रूप से संपन्न माना जाता है। वह लोग यह नहीं समझते कि इससे पैसे की बर्बादी तो होती ही है साथ ही पर्यावरण भी प्रदूषित होता है। वातावरण में कार्बन मोनोऑक्साइड जैसी ज़हरीली गैस के घुलने से इस दिन सांस लेनी भी मुश्किल हो जाती है। याद आती है मुझे वह बचपन की दीवाली, जब दिन में मां द्वारा बनाए गए पकवानों से सारा घर महक उठता था और रात को सारा घर दीयों की रोशनी से जगमगा उठता था। पटाखों के नाम पर सिर्फ  अनार और फुलझड़यिं ही होती थी। कई बार दादा जी के पास जाते तो वह पटाखे ले कर दे देते, उसे भी पिता जी दीवाली पर पूरा खत्म नहीं करने देते। वह अक्सर ही कहते कि सभी आज ही खत्म मत करना बाकी गुरु पर्व पर चलाएंगे और हम भाई-बहन उसे सहर्ष ही स्वीकार कर लेते। यानी बच्चों को जो भी सिखाओ वह सीख जाते हैं। आओ, इस बार बच्चों को ग्रीन दीवाली मनाने के लिए प्रोत्साहित करें।  पटाखों पर खर्च होने वाले पैसे से किसी जरूरतमंद को मिठाई, कपड़े दे कर उसे खुशियां देने का प्रयास करें। 

-संगीता भंडारी