पटाखों की कुर्बानी

दीवाली का दिन था। चारों ओर पटाखों का शोर था। रंग-बिरंगी रोशनी फैली थी। बम उछला और रॉकेट के पास जा गिरा। अरे, यह क्या? बम ने देखा, जहां सारे पटाखे खुशी-खुशी फूट रहे थे, वहीं रॉकेट गुमसुम, आंसू बहाता एक कोने में पड़ा था। 
‘क्या हुआ रॉकेट, तुम रो क्यों रहे हो?’ बम ने पूछा। 
‘सभी रॉकेटों की तरह आज मुझे भी उड़ना पड़ेगा।’ रॉकेट ने चेहरा लटकाते हुए कहा। 
‘तो इसमें रोने वाली क्या बात है? तुम्हें तो खुश होना चाहिए। शायद तुम घबरा गए हो।’ बम ने समझाया। 
‘खुशी की बात कैसे है, भाई। मैंने सुना है, मेरी पूंछ में आग लगा दी जाएगी और मैं आकाश में उड़ जाऊंगा और नष्ट हो जाऊंगा। बहुत बुरी बात है।’ रॉकेट सुबकता हुआ बोला। 
‘ओह, ऐसा क्या। पर सारे पटाखे तो आग लगाने पर ही फूटते हैं। फिर तुम ऐसा क्यों सोच रहे हो?’ बम ने पूछा।  ‘मुझे मम्मी-पापा की बहुत याद आ रही है। अब मैं उनसे कभी नहीं मिल सकता। उनकी पूंछ में आग लगाकर अभी-अभी उन्हें उड़ा दिया गया और वे हमेशा-हमेशा के लिए चले गए, मुझे छोड़कर।’ इतना कहकर रॉकेट सुबक पड़ा। 
‘ओह, हम पटाखों की जिंदगी बहुत दर्द भरी है पर यार, हम पटाखे जलने, फूटने के लिए ही बनते हैं। अगर हम फटेंगे नहीं तो बच्चों को मजा कैसे आएगा? लोगों की खुशी, बच्चों के मनोरंजन के लिए तो हमें यह कुर्बानी देनी ही पड़ेगी। आखिर हमें उनकी खातिर ही तो बनाया गया है।’ बम गंभीर होकर बोला।  आज तक उसने कभी इन बातों के बारे में सोचा ही न था। पटाखे की दुकान में पड़ा-पड़ा बस इसी दिन का इंतजार करता रहा था कि कब उसे भी फोड़ने के लिए कोई आएगा और उसे भी फूटने का मौका मिलेगा पर आज रॉकेट के सवाल पर वह गंभीर हो गया था और नई-नई दलीलें दे रहा था। बम की दलील सुनकर रॉकेट भी एक पल को सोच में पड़ गया। ‘सच, हमारे उड़ने से बच्चों को बड़ी खुशी मिलती है। आखिर उन्हीं की खातिर तो हमें बनाया गया है।’ रॉकेट सोच ही रहा था कि अचानक एक बच्चा चीखता हुआ कूदने लगा, ‘बचाओ......बचाओ....मेरा हाथ जल गया।’  
रॉकेट ने देखा, फुलझड़ी जलाते वक्त बच्चे का हाथ जल गया था। 
‘अरे, बम। यह फुलझड़ी तो बड़ी खतरनाक है। जरा देखो तो उसका पूरा हाथ जल गया है।’ रॉकेट चीखा। अभी रॉकेट कह ही रहा था कि अचानक एक दूसरा उससे बड़ा रॉकेट उड़ता हुआ उस ओर आया। 
‘भागो.....भागो.... देखो रॉकेट आ रहा है।’ अचानक कुछ बच्चे चीखे। किसी ने टेढ़ा कर के रॉकेट छोड़ दिया था, इसलिए वह टेढ़ा होकर इधर-उधर उड़ते हुए बच्चों की ओर आ रहा था। बेचारा करता भी क्या? भागो.....भागो ....चिल्लाकर सबको सावधान कर रहा था। रूक पाना तो उसके अपने बस में था ही नहीं।  अचानक वह बड़ा रॉकेट एक मुर्गी फार्म में जा घुसा। 
‘यह क्या? यह रॉकेट तो यहीं आ घुसा, भागो।’ सारी मुर्गियां दुम दबाकर भागीं और रॉकेट वहीं फट गया।  ‘अरे, बाप रे? यह तो एकदम जानलेवा है। हमारी जान जाती है, सो जाती ही है, इससे तो बड़ा नुकसान भी होता है बम भाई।’ रॉकेट भौंचक्का होकर बोला। 
‘तुम इतने नुकसान से घबरा गए। असली नुकसान तो पर्यावरण के साथ होता है।’ पास खड़े एक बरगद के पेड़ ने कहा। अचानक बरगद को खांसी आ गई। उसने कहा, ‘देखो, तुम्हारे धुएं से मुझे कितनी खांसी हो गई है। मैं तो पेड़ हूं, सब कुछ सह सकता हूं पर ये सारे जीव-जंतु नहीं सह सकते। इन्हें तो भारी नुकसान होता है। पर्यावरण प्रदूषित होता है, कई तरह की बीमारियां पैदा होती हैं। तुम्हारे धुएं में घातक गैसें होती हैं। देखो, मैं ठंडी हवा देकर वातावरण शुद्ध करता हूं और तुम लोग धुआं फैलाकर प्रदूषण फैलाते हो।’  रॉकेट बड़ा दुखी हो गया। ‘हमारी जिंदगी कितनी बेकार सी है। लोग हमें इस तरह से क्यों नहीं बनाते कि हम जहरीला धुआं पैदा न करें, न ही आग लगवाएं और न ही इधर- उधर चीजें जलाएं।’ रॉकेट भावुक होकर बोला।  रॉकेट की बात में बम को सच्चाई नजर आ रही थी। ‘इसके लिए हम क्या कर सकते हैं?’ बम ने कहा।  रॉकेट ने कान पकड़ते हुए कहा, ‘यह सब देखकर अब मैं कभी फूटने की गलती नहीं करूंगा। मैंने सुना है हवा लगने से हम फिस कर जाते हैं फिर फूटते नहीं।’  ‘बरगद भैया, मुझ पर एक एहसान करो न, अपनी तेज हवा से मुझे फिस करा दो। मैं बच्चों को इतना नुकसान नहीं पहुंचा सकता।’ रॉकेट बोल पड़ा। 
रॉकेट की बातें सुन बम ने भी सहमति जताई। 
उनकी बातें बरगद का पेड़ अच्छी तरह समझ गया था। बोला, ‘मैं वादा तो नहीं कर सकता, पर कोशिश जरूर करूंगा कि तुम लोग फिस कर जाओ। इससे ज्यादा हम कर भी क्या सकते हैं।’ बरगद की बातें सुन रॉकेट और बम को थोड़ी राहत मिली और दोनों मिस होने का इंतजार करने लगे। (उर्वशी)