अफवाहों के खिलाफ मज़बूत शस्त्र की भूमिका निभाते अखबार

पूरी दुनिया पर इस समय कोरोना नामक महामारी कहर बन कर टूटी है। इससे अर्थव्यवस्था पर गंभीर असर पड़ा है और उद्योग क्षेत्र भी बुरी तरह से प्रभावित हुआ है। खासतौर पर इलैक्ट्रॉनिक तथा डिजिटल मीडिया पहले से ही चुनौतियों से जूझ रहा है। प्रिंट मीडिया की तो कोरोना ने कमर ही तोड़ दी है। इस कारण कई अखबारों को मजबूरन अपने पृष्ठों की संख्या कम करनी पड़ी है। इसका एक बड़ा कारण अखबारों से कोरोना फैलने को लेकर सोशल मीडिया पर व्यापक स्तर पर उड़ी अफवाहें रही हैं, जिनमें कहा जाता रहा कि अखबारों तथा पत्रिकाओं के जरिए भी कोरोना फैल सकता है। सोशल मीडिया पर तेज़ी से फैलती फर्जी खबरें और जानकारियां समाज के ताने-बाने को छिन्न-भिन्न करने का कार्य करती हैं। ऐसे में अखबार और पत्रिकाएं समाज में फैलने वाली ऐसी अफवाहों के खिलाफ  एक मज़बूत हथियार की भूमिका निभाते रहे हैं, लेकिन इधर भारत में फर्जी खबरें फैला-फैलाकर ऐसा माहौल बना दिया गया है कि लोगों ने इनके झांसे में आकर पत्र-पत्रिकाओं से दूरी बना ली है। मेदांता अस्पताल के चेयरमैन तथा भारत के प्रमुख हृदय शल्य चिकित्सक डा. नरेश त्रेहन ने स्पष्ट किया है कि अखबार से कोरोना संक्रमण के प्रसार की आशंका केवल अफवाह मात्र ही है। अमरीका के सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रीवेंशन का भी दावा है कि अखबार की डिलिवरी से कोरोना वायरस के संक्रमण फैलने की संभावना न के बराबर है। प्रधानमंत्री सहित दुनियाभर के अधिकतर स्वास्थ्य विशेषज्ञ बार-बार स्पष्ट कर चुके हैं कि कोरोना संक्त्रमण अखबारों और पत्रिकाओं के जरिये नहीं फैलता। केन्द्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने भी कहा है कि अखबार पढ़ने से कोरोना नहीं फैलता, लेकिन सोशल मीडिया पर अखबारों से कोरोना फैलने को लेकर अफवाहों का बाजार इस कदर गर्म कर दिया कि कोरोना के भय से बहुत सारे लोगों ने अखबार और पत्रिकाएं पढ़ना छोड़ दिया। सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय द्वारा पिछले दिनों सभी राज्यों के मुख्य सचिवों को भेजे गए पत्र में कहा गया कि लोगों में जागरूकता पैदा करने और उन तक सही सूचनाएं पहुंचाने के लिए अखबारों की छपाई और उनका वितरण बेहद ज़रूरी है। इसी से फर्जी खबरों और अफवाहों पर अंकुछा लगाया जा सकेगा। राज्य सरकारों से इसमें सहायता की अपील भी की गई थी।प्रधानमंत्री ने पिछले दिनों अखबारों की सराहना करते हुए कहा कि महामारी के समय में अखबार जनता और प्रशासन के बीच पुल का काम करते हैं, वहीं विश्व स्वास्थ्य संगठन सहित दुनियाभर के अनेक वैज्ञानिकों और चिकित्सकों ने कहा है कि अभी तक दुनिया में कहीं भी ऐसी कोई घटना सामने नहीं आई है, जिसमें अखबार से कोरोना वायरस का प्रसार देखा गया हो। इंडियन काउंसिल ऑफ मैडीकल रिसर्च (आईसीएमआर) में महामारी विज्ञान की प्रमुख निवेदिता गुप्ता के मुताबिक कोरोना श्वसन तंत्र का संक्रमण है और अखबार छूने से इसके फैलने का कोई खतरा नहीं है। अधिकांश चिकित्सकों का एक स्वर में यही कहना है कि अखबारों या पत्रिकाओं को असुरक्षित कहने का कोई तर्क नहीं है। यही वजह रही कि पूरी दुनिया में कहीं भी कोरोना संक्रमण के भयानक कहर के बाद भी लोगों ने अखबार पढ़ना बंद नहीं किया। संक्रामक बीमारियों पर महाराष्ट्र सरकार के तकनीकी सलाहकार डा. सुभाष सालुंके के अनुसार जो देश कोरोना महामारी से सर्वाधिक प्रभावित हैं, वहां भी अखबारों का प्रसार बंद नहीं हुआ क्योंकि अखबारों को छूना पूर्णतया सुरक्षित है। दुनिया भर के अधिकतर वायरोलॉजिस्ट का कहना है कि अखबार को छूने से तो संक्रमण फैलने की आशंका लगभग ना के बराबर होती है। नैशनल सेंटर फॉर डिज़ीज़ कंट्रोल के निदेशक सुजीत सिंह के मुताबिक शोध करने वाले वायरलॉजिस्टों को ऐसा कोई प्रमाण नहीं मिला है कि कोरोना वायरस कागज पर सक्रिय या जीवित रह सकता है। विश्वभर में संक्त्रमण रोगों के विशेषज्ञों का साफ तौर पर कहना है कि इस बात के अभी तक कोई प्रमाण नहीं हैं कि अखबार और पैकेज संक्त्रमण फैला सकते हैं। यूएस सेंटर्स फॉर डिज़ीज़ कंट्रोल एंड प्रिवेंशन के मुताबिक जीवित कोशिकाओं के बाहर अधिकांश सतहों पर कोरोना वायरस ज्यादा समय तक जिंदा नहीं रहता है। दिल्ली स्थित एम्स के निदेशक डा. रणदीप गुलेरिया भी स्पष्ट रूप से कहते हैं कि किसी व्यक्ति को संक्त्रमित करने के लिए अखबार या पत्रिकाओं के कागज पर वायरस इतने लम्बे समय तक ज़िंदा नहीं रहते। इनका वितरण भी पूर्णतया स्वस्थ हाथों में रहता है। इसलिए अखबार या पत्रिकाएं पढ़ने से कोरोना संक्रमण का कोई जोखिम नहीं रहता है। दरअसल आज लगभग सभी अखबारों और बड़ी पत्रिकाओं की छपाई काफी उच्च तकनीक के साथ होती है, जिसमें मानवीय योगदान न के बराबर होता है। इसके अलावा कोरोना संक्रमण को देखते हुए पाठकों की सुरक्षा के मद्देनजर सभी अखबारों द्वारा सुरक्षा के अन्य ज़रूरी उपाय भी किए गए हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन कह चुका है कि कोविड-19 को रोकने की लड़ाई में अखबार लेना और पढ़ना पूरी तरह सुरक्षित है। संगठन के मुताबिक अखबार का बंडल, लगातार एक से दूसरे स्थान पर स़फर करता है है, अलग-अलग परिस्थितियों व तापमान से गुजरता है। उसमें कोरोना वायरस होने की संभावना न्यूनतम भी नहीं रहती। संगठन के अनुसार जिन इलाकों से कोविड-19 के मामले सामने आए हैं, वहां भी पैकेट रिसीव करना सुरक्षित है। हाटफोर्ड हैल्थकेयर ने भी कहा है कि अपने घर आये डिलीवरी को लेने से डरें नहीं क्योंकि कोरोना वायरस लंबे समय तक किसी एक वस्तु पर ज़िंदा नहीं रहता। वैज्ञानिकों का मानना है कि करंसी नोट, कपड़े और हवा गुजरने वाली छिद्रदार वस्तुओं पर वायरस लम्बे समय तक जीवित नहीं रहता। वैज्ञानिकों के मुताबिक पराबैंगनी विकिरण के सम्पर्क में आने पर इसकी संक्रामक क्षमता कम हो सकती है। अखबारी कागज कार्डबोर्ड के मुकाबले बहुत ज्यादा छिद्रदार होता है, इसलिए इस पर किसी भी वायरस के सक्रिय रहने की अवधि बेहद कम होती है। अखबारों और पत्रिकाओं में इस्तेमाल होने वाली स्याही और प्रकाशन प्रक्रिया के कारण ये अधिक जीवाणुरहित भी होते हैं। कई वैज्ञानिक शोधों में बताया जा चुका है कि अखबारों तथा पत्र-पत्रिकाओं के प्रकाशन में उपयोग होने वाला कागज कोरोना संक्रमण के खतरे से सुरक्षित है। ग्राहकों के स्वास्थ्य और सुरक्षा के मद्देनज़र इनके प्रकाशक अपने प्रकाशन केन्द्रों, वितरण केन्द्रों, न्यूज स्टैंड तथा होम डिलीवरी के दौरान हर पर्याप्त सावधानी भी बरत रहे हैं। संक्रामक बीमारियों के तमाम विशेषज्ञ लगातार कह रहे हैं कि अखबारी कागज पर वायरस लम्बे समय तक जीवित नहीं रहते और अखबार से संक्रमण फैलने की आशंका नहीं के बराबर है। ऐसे में अखबारों से कोरोना संक्त्रमण को लेकर भ्रामक प्रचार करना सर्वथा अनुचित है।

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