अनियंत्रित हुईं तेल की कीमतें

विगत लगभग अढ़ाई सप्ताह से प्रतिदिन डीज़ल एवं पैट्रोल की बढ़ाई जाती कीमतों ने सभी को चिंता में डाल दिया है। अन्तर्राष्ट्रीय मार्किट में कोरोना महामारी के पहले दो महीनों में तेल की कीमतें बहुत कम हो गई थीं। पिछले कुछ समय से पुन: इनकी कीमतें बढ़ने के समाचार आये हैं, परन्तु ये बढ़ी हुई कीमतें भी इतनी नहीं कही जा सकतीं, जो भारी बोझ डालने वाली हों। पहले ये कीमतें कम होकर 17 डॉलर प्रति बैरल तक लुढ़क गई थीं, परन्तु आज अन्तर्राष्ट्रीय मंच पर कच्चे तेल की कीमत 40 डॉलर प्रति बैरल के लगभग हो गई है। वर्ष 2014 में इसकी कीमत 108 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गई थी। देश में तालाबन्दी के दौरान समूची गतिविधियां बंद होने के कारण आर्थिकता पर भी भारी प्रभाव पड़ा था। सरकार की आय भी कम हुई थी, परन्तु पुन: गतिविधियां शुरू होने से सरकार की आय भी बढ़ेगी। पिछले दिनों से कच्चे तेल की कीमतें कुछ सीमा तक बढ़ने से पैट्रोल एवं डीज़ल कीमतें तो बढ़ाई जा रही हैं, परन्तु जब अन्तर्राष्ट्रीय मंडी में ये कीमतें बिल्कुल गिर गई थीं, केन्द्र सरकार एवं भारतीय तेल कम्पनियों ने उस समय भी तेल की कीमतों को कम नहीं किया था। नि:सन्देह केन्द्र एवं राज्य सरकारों को अपनी आय बढ़ाने के लिए तेल ही सोने के अंडे देने वाली मुर्गी प्रतीत हो रहा है, परन्तु इसके साथ ही सरकारों को यह अवश्य एहसास होना चाहिए कि इस मुर्गी को मार कर आगे और अंडे इसमें से नहीं निकाले जा सकते। तेल रूपी इस मुर्गी से सोने के अंडे इसलिए प्राप्त हो रहे हैं कि आज तेल की वास्तविक कीमत 22 रुपये प्रति लीटर है। केन्द्र सरकार की ओर से इस पर आबकारी कर 32 रुपये लगाया जा रहा है तथा इसके अतिरिक्त 22 रुपये प्रदेश सरकार की ओर से वैट लगाया जा रहा है। इस प्रकार इस पर कर 250 प्रतिशत तक हो जाता है। सरकार को देखने वाली बात यह है कि गौ-पशु  से दूध तो निकाला जा सकता है परन्तु उसे निचोड़ने की जल्दबाज़ी से उनके सख्त बीमार होने का ़खतरा बन जाता है। सरकार को तेल पर कर लगाने की नीति को संतुलित बनाये जाने की आवश्यकता है क्योंकि यदि इसकी कीमत इतनी बढ़ जाएगी तो इसका प्रभाव देश भर में माल ढुलाई पर भी पड़ेगा। कृषि क्षेत्र भी इससे बुरी तरह प्रभावित हो जाएगा। अंत में इसका प्रभाव आम वस्तुओं की कीमतों पर भी पड़ेगा। देश भर में पहले ही हालत यह है कि कोरोना ने एक प्रकार से लोगों की कमर तोड़ रखी है। इस नामुराद बीमारी ने हर तरफ हाहाकार का माहौल बनाया हुआ है। आम आदमी की आर्थिकता बुरी तरह से लड़खड़ा गई है।  ऐसी स्थिति में यदि आवश्यक वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि होती है तो इससे साधारण व्यक्ति बहुत बुरी तरह से प्रभावित होता है। तालाबन्दी में भारतीय रुपये की कीमत और भी कम हो गई है। निरन्तर बढ़ रही वस्तुओं की कीमतों से भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में बेचैनी बढ़ रही है। इनमें कृषि, वस्तुओं की ढुलाई के लिए ट्रक तथा अन्य वाहन एवं घरेलू खपतकार भी परेशान नज़र आने लगे हैं। इससे पहले कि परेशान हुये वर्ग और बेचैन हो जाएं, सम्बद्ध सरकारों को तुरंत सिर जोड़ कर इस संबंध में कोई ऐसी नीति धारण करनी चाहिए जो पहले से उलझन में फंसे लोगों को और उलझाने का कारण न बने। नि:सन्देह केन्द्र एवं राज्य सरकारों को इस संबंध में स्पष्टीकरण देना भी बनता है तथा इसके लिए उनकी तुरंत जवाबदेही भी बनती है।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द