बरगद दादा की सीख

जंगल में नदी किनारे बहुत पुराना एक बरगद का पेड़ था जो बसंत ऋतु आने पर खूब हरा-भरा हो जाता। उसकी डालियां झूम-झूमकर हवा में लहराती थीं। उस वृक्ष की हरी-भरी डालियों, हरे-हरे पत्तों को देखकर राहगीरों की आंखों को ठंडक पहुंचती थी। उस पर लदे हुए छोटे-छोटे फल और फूल उसकी सुंदरता में चार चांद लगाते थे। भोर होते ही चिड़ियां उस बरगद के पेड़ पर आ बैठतीं। मीठे-पके फलों को कुतर-कुतरकर खाने में उन्हें बड़ा आनंद आता था। बंदरों और लंगूरों को बरगद का वह पेड़ बहुत भाता था। वे दिन भर इस डाल से उस डाल पर कूदते-फांदते रहते थे। वसंत में कोयल बरगद के पेड़ पर बैठकर मधुर आवाज में कुहू-कुहू करती। ऐसे में बरगद फूला नहीं समाता था। बरगद से थोड़ी दूर पर आम, जामुन, अमरूद और अनार के पेड़ भी थे। बरगद के पेड़ के आसपास रंग-बिरंगे फूल लगे हुए थे। ये फूल बरगद की लताओं से लटक-लटककर उसको और भी खूबसूरत बनाते थे। उस जंगल के सभी पेड़-पौधे बरगद दादा का बड़ा सम्मान करते थे और आदर से उसे ददू कहकर पुकारते थे। बरगद को खुश करने के लिए कितनी ही बार वे अपनी शाखाओं को उसकी डालियों में उलझा लेते। बरगद दादा अपने प्रति उनका स्नेह देखकर गश्वद् हो उठते। ढेरों चिड़ियां बरगद के पेड़ पर अपना बसेरा बनाए हुए थीं। उसके कोटरों में कई छोटे-छोटे जानवर भी रहते थे। बरगद उन्हें अपने बच्चों की तरह समझता था और उनकी खुशहाली देख फूला नहीं समाता था। अपनी जटाओं को एक दूसरी में उलझाकर उसने पक्षियों के लिए झूले तैयार किए थे। जब पक्षी उसकी जटाओं के झूलों में बैठकर गीत गाते हुए झूलते थे तो बरगद को बहुत खुशी होती थी।  
बरगद की छाया में थके हुए मुसाफिर अक्सर आराम करते थे। एक दिन एक राहगीर उस बरगद़ के नीचे आराम करने बैठा। सारा दिन धूप में पैदल चलने से वह थक गया था। हवा के झोंके उसके थके शरीर को आराम पहुंचा रहे थे। उसे नींद आने लगी। वह सोने के लिए लेटा ही था कि अचानक उसकी निगाह बरगद की टहनियों पर पड़ी। वह राहगीर थोड़ा घमंडी थी। जब उसने बरगद के छोटे-छोटे फलों को देखा तो उसे बहुत आश्चर्य हुआ। ‘इतने बड़े पेड़ के इतने छोटे-छोटे से फूल और फल?’ राहगीर तिरस्कार से बोला।  कुछ देर सोचने के बाद उसने हंसते हुए कहा, ‘सब कहते हैं कि यह पेड़ बहुत बुद्धिमान है। अगर इसके फल इतने छोटे-छोटे हैं, तो यह समझदार कैसे हो सकता है।’ बरगद का पेड़ सारी बात सुनने के बाद भी चुप रहा। उसने अपने पत्ते हिलाकर हवा की। राहगीर जल्द ही खर्राटे भरने लगा। तभी ‘टप’ से एक छोटा-सा फल राहगीर पर गिरा। वह एकदम झटके से उठा। ‘हूं, जब मुझे नींद आ रही थी, तभी यह होना था।’ राहगीर फल उठाते हुए बड़बड़ाया। ‘चोट लगी क्या?’ बरगद ने मुस्कुराते हुए पूछा। ‘नहीं, पर तुमने मेरी नींद तोड़ दी।’ राहगीर ने आंख मलते हुए कहा।  ‘इसे घमंडी राहगीर के लिए एक सबक समझो। तुम मुझ पर इसीलिए हंसे थे न कि मेरे फल छोटे हैं।‘ बरगद ने हंसते हुए कहा।  राहगीर गुस्से से कहा, ‘हां, मैं हंसा था। न जाने लोग क्यों तुम्हें समझदार समझते हैं? सोते लोगों को जगाना क्या समझदारी है? ’बरगद फिर हंसा और बोला, ‘मेरे दोस्त, घमंड करना कोई बुद्धिमानी नहीं है। मेरे पत्ते तुम्हें आराम करने के लिए छाया व हवा दे रहे हैं। हां, मेरे फल जरूर छोटे हैं। अगर मेरा फल नारियल जितना बड़ा होता और वह तुम्हारे सिर पर गिरा होता तो सोचो कि तुम्हारे सिर का क्या हाल होता।’ राहगीर यह सुनकर चुप हो गया। उसने इस बारे में तो सोचा ही न था। ‘जो लोग नम्र होते हैं, वे अपने आसपास की चीजों को देखकर भी बहुत कुछ सीख सकते हैं।’ बरगद ने धीरे से कहा। राहगीर ने बरगद से माफी मांगते हुए कहा, ‘मुझे माफ कर दीजिए। मुझे सब समझ आ गया और आज मुझे सीख भी मिल गई। मैं वादा करता हूं कि आगे कभी भी घमंड नहीं करूंगा और छोटे-बड़े का भेदभाव मन में नहीं पालूंगा।’ ‘शाबाश, अब तुम जी भरकर मीठी-मीठी नींद लो।’ बरगद ने बहुत प्यार से कहा। राहगीर निश्ंिचत होकर पेड़ की छांव में सो गया। (उर्वशी)