अतीत की ़गलतियों से कांग्रेस ने नहीं सीखा कोई सबक
हरियाणा के विधानसभा चुनावों में लगातार तीसरी हार के बावजूद लगता है कि कांग्रेस ने अभी तक कोई सबक नहीं सिखा है। अक्सर कहा जाता है कि इन्सान अतीत की गलतियों से सीखता है और भविष्य की कल्पना करता है लेकिन कांग्रेस पर यह लागू नहीं होता। कांग्रेस ने अब पार्टी की विधानसभा चुनाव में हार के कारणों की जांच के लिए पूर्व कृषि मंत्री करण दलाल की अध्यक्षता में एक फैक्ट फाईंडिंग कमेटी का गठन किया है। कमेटी ने पार्टी के चुनाव हारने वाले उम्मीदवारों और पार्टी के वरिष्ठ नेताओं व सांसदों से पार्टी के हार के कारणों बारे जानने के लिए बैठकें आयोजित करनी शुरू कर दी हैं। लोगों का मानना है कि यह सिर्फ लीपापोती के लिए किया जा रहा है। इस कमेटी के हाथ में कुछ खास लगने वाला नहीं है। कुछ छोटे कारण तो कमेटी के सामने आ जाएंगे, लेकिन हार के बड़े कारणों पर कांग्रेस पार्टी में कोई चर्चा करने को भी तैयार नहीं है। इस बार कांग्रेसी नेताओं को इतना ज्यादा भ्रम हो गया था कि वे सरकार बनाने के लिए चुनाव नहीं लड़ रहे थे बल्कि मुख्यमंत्री या मंत्री बनने की कतार में लगे हुए थे। अनेक उम्मीदवार ऐसे थे जो विधायक बनने के लिए जोर नहीं लगा रहे थे बल्कि वे यह माने बैठे थे कि विधायक तो वे बन ही जाएंगे, वे तो मुख्यमंत्री, उपमुख्यमत्री या मंत्री बनने की रेस में लगे हुए थे और कइयों ने तो अपनी पसंद के विभाग भी चुन लिए थे।
टिकटों का फार्मूला पड़ा भारी
कांग्रेस ने पार्टी के सभी सिटिंग विधायकों को सिटिंग गैटिंग के फार्मूले के तहत टिकट दे दिया था जिनमें से आधे से ज्यादा सिटिंग विधायक चुनाव हार गए। इसी तरह अनेक स्थानों पर कांग्रेस ने कई-कई नेताओं को टिकट दिए जाने का भरोसा दिला रखा था। जिन नेताओं को टिकट नहीं मिला, वे बागी होकर चुनाव मैदान में डट गए और कांग्रेस की हार का कारण बने। इतना ही नहीं बागी नेताओं को मनाने व चुनाव मैदान से हटने के लिए मनाने का कोई प्रयास तक भी नहीं किया गया। कांग्रेस का चुनाव अभियान पूरी तरह से हवा हवाई था। पिछले 12 सालों से प्रदेश में कांग्रेस का कोई संगठन नहीं है और संगठन के अभाव में कांग्रेस पार्टी लगातार तीसरी बार चुनाव मैदान में चाराें खाने चित्त हो गई। खुद कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष उदयभान जिनके कंधों पर पार्टी के उम्मीदवारों को विजयी बनाने की जिम्मेदारी थी, खुद अपना चुनाव हार गए। इस साल लोकसभा चुनाव के बाद बंसी लाल की पुत्रवधु किरण चौधरी अपनी बेटी श्रुति चौधरी के साथ कांग्रेस को छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए और किरण चौधरी को भाजपा ने राज्यसभा का सांसद और उनकी बेटी श्रुति चौधरी को हरियाणा सरकार में कैबिनेट मंत्री बना दिया।
सामूहिक नेतृत्व का अभाव
कांग्रेस पार्टी आम तौर पर सामूहिक नेतृत्व के तहत चुनाव लड़ा करती है लेकिन इस बार एक तरफ जहां पार्टी का संगठन पूरी तरह से गायब था, जोकि बन ही नहीं पाया था और दूसरी तरफ समाज के विभिन्न वर्गों को साथ जोड़ने के लिए भी कहीं कोई प्रयास नहीं किया जा रहा था। चुनाव की घोषणा होते ही सबसे पहले तो अपने-अपने चहेतों को टिकट दिलाने की मारामारी चलती रही और टिकट बंटने के बाद इस बात के प्रयास भी होने लगे कि कांग्रेस को सरकार बनाने के लिए सिर्फ 46 सीटें ही चाहिएं। कुछ कांग्रेसी नेताओं को जब यह अहसास होने लगा कि माहौल कांगे्रस के पक्ष में है और कांग्रेस की करीब दो तिहाई सीटें आ सकती हैं तो फिर विरोधियों को ठिकाने लगाने के प्रयास शुरू हो गए। कांग्रेस नेताओं को किसी दूसरे से हार के कारण पूछने की शायद जरूरत ही ना पड़े अगर वे ईमानदारी से अपने-अपने अंतर्मन में झांकने का काम करें और अपनी अंतरआत्मा से यह भी चिंतन करें कि इस हार में उनका खुद का योगदान कितना है।
कांग्रेस आलाकमान भी जिम्मेदार
अभी भी कांग्रेसी नेता पार्टी की इस तीसरी हार से कहीं कोई सबक लेने को तैयार नहीं हैं और वे लोगों की आंखों में धूल झोंकने और हार की जिम्मेदारी एक दूसरे पर डालने के प्रयासों में लगे हुए हैं। कांग्रेस की इस हार में जहां प्रदेश कांग्रेस के प्रमुख नेता जिम्मेदार हैं, वहीं कांग्रेस नेतृत्व भी इस हार की जिम्मेदारी से बच नहीं सकता। कांग्रेस आलाकमान ने 12 साल तक पार्टी का संगठन क्यों नहीं बनाया, इस बात का कांग्रेस आलाकमान के पास कोई जवाब नहीं है। कांग्रेस के अनेक नेता बारी-बारी से पार्टी छोड़ कर भाजपा में जाते रहे, तब भी उनके पार्टी छोड़ने के पीछे क्या कारण रहे, इस बात को कांग्रेस नेतृत्व ने कभी जानने का प्रयास नहीं किया। कांग्रेस नेतृत्व में पार्टी के जो-जो भी प्रभारी बनाए गए, उन्होंने अब तक अपनी जिम्मेवारी ठीक से क्यों नहीं निभाई। कांग्रेस के मौजूदा प्रभारी दीपक बाबरिया भी चुनाव अभियान के दौरान दिल्ली के एक अस्पताल में जाकर भर्ती हो गए थे।
विपक्ष के नेता
कांग्रेस की दयनीय स्थिति का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि चुनावी नतीजों की घोषणा होने और विधानसभा का गठन होने के बाद कांग्रेस पार्टी अभी तक विधानसभा में अपने विधायक दल के नेता और नेता प्रतिपक्ष का चयन नहीं कर पाई है। विधानसभा सत्र का दूसरा चरण शुरू हो गया है और कांग्रेस के पास अभी तक बताने के लिए एक नाम ऐसा नहीं जिसे कांग्रेस विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष के तौर पर घोषित कर सके। कांग्रेस जहां आपसी गुटबाजी में बंटी हुई है, वहीं भाजपा ने अपने संगठन के बलबूते प्रदेश में ना सिर्फ फिर से सरकार बना ली है बल्कि लगातार तीसरी बार हरियाणा में सरकार बनाकर एक नया कीर्तिमान स्थापित कर दिया है। सरकार में होने के बावजूद भाजपा का संगठन लगातार जमीनी स्तर पर सक्रिय देखा गया है।
किस्मत के धनी राव नरवीर
कहते हैं कि कुछ लोग किस्मत के धनी होते हैं। इनमें से एक नाम राव नरवीर सिंह व किरण चौधरी का भी माना जा सकता है। राव नरवीर जब-जब विधायक बने हैं तो संयोग से हरियाणा में उसी पार्टी की सरकार बनती रही और राव नरवीर हर सरकार में मंत्री बनते रहे हैं। राव नरवीर 1987 में चौधरी देवीलाल की पार्टी से विधायक बने और पहली बार विधायक बनते ही वह देवीलाल की सरकार में सबसे कम उम्र के मंत्री भी बने। इसी तरह 1996 में राव नरवीर बंसीलाल की पार्टी से विधायक बने और बंसीलाल सरकार में मंत्री भी बने। राव नरवीर 2014 में भाजपा की टिकट पर विधायक बने और मनोहर लाल खट्टर की सरकार में मंत्री बने। इस बार 2024 में राव नरवीर एक बार फिर भाजपा की टिकट पर विधायक बने हैं और नायब सैनी सरकार में कैबिनेट मंत्री बने हैं। इसी तरह राज्यसभा सांसद किरण चौधरी पहली बार जब दिल्ली विधानसभा में विधायक बनीं तो वे दिल्ली विधानसभा की डिप्टी स्पीकर भी बन गईं। जब उन्होंने हरियाणा से राजनीति शुरू की तो लगातार 10 साल भूपेन्द्र हुड्डा की सरकार में केबिनेट मंत्री रहीं और उनकी बेटी श्रुति चौधरी भिवानी-महेन्द्रगढ़ लोकसभा क्षेत्र से सांसद भी बनीं। जब कांग्रेस पार्टी विपक्ष में आई तो किरण चौधरी कांग्रेस विधायक दल की नेता बनीं। अब किरण भाजपा में शामिल हो गई हैं तो खुद वह राज्यसभा सांसद बन गई हैं व उनकी बेटी श्रुति चौधरी हरियाणा सरकार में कैबिनेट मंत्री बन गई हैं।
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