आओ, अच्छे खेलों को प्रोत्साहन देना सीखें

कोई समय था जब खेल खेलने का उद्देश्य मनोरंजन या शरीर को अरोग्य व स्वस्थ रखना होता था। खेलें खेलने में एक मानसिक सुकून, मानसिक खुशी थी। किसी को जीत या हार की अधिक चिन्ता नहीं होती थी। कोई मानसिक दबाव नहीं होता था। न टी.वी. का दौर था, न रेडियो का आलम था, न मीडिया खेलों के साथ जुड़ा हुआ था और न ही सरकार खेलों के लिए कोई सुविधाएं उपलब्ध करवाती थी। लेकिन प्रत्येक खेल खेल कर आनंदित होता था। उस खुशी का कोई मुकाबला नहीं था। लेकिन इसके विपरीत खेलें केवल जीतने के लिए ही खेली जाती हैं। जीत प्राप्त करने के लिए आज का खिलाड़ी कुछ भी करने को तैयार हो जाता है। क्योंकि इस जीत के साथ उसके निजी हित जुड़े होते हैं। आज किसी भी खिलाड़ी को हार इसीलिए बर्दाश्त नहीं होती, क्योंकि हारने वाले को कोई सम्मान नहीं दिया जाता। इसके पीछे पदार्थवादी दृष्टि का होना है। खेल जगत का सारा रोमांच हमने सिर्फ जीत के साथ जोड़ कर रख दिया है। दूसरी तरफ जीतने वाले खिलाड़ी को जीत प्राप्त करने के बाद पैसे कमाने के अवसर मिलते हैं। खेल संस्थाएं इनामी राशि देती है। सरकार द्वारा इनाम के तौर पर राशि दी जाती है। मीडिया खिलाड़ियों की जीत को काफी चर्चित करता है। खिलाड़ी हीरो बन जाते हैं। कई कम्पनियां विज्ञापन आदि के लिए निमंत्रण देती हैं। इसलिए खिलाड़ी के लिए जीत ही असली ‘प्रेमिका’ बन जाती है। हम समझते हैं कि खिलाड़ियों के निजी हित की खिलाड़ी टीम के चुनाव से ही शुरू हो जाती है। जिस खिलाड़ी की टीम का चयन नहीं होता वह अपने दिल में अपनी टीम को कभी शुभकामनाएं नहीं दे सकता। वह यही सोचता है कि उसकी टीम हार जाए, क्योंकि वह उसमें नहीं है। अगर टीम जीत गई और चैम्पियन बन गई तो उसको दुख पहुंचता है, क्योंकि वह टीम का हिस्सा नहीं है। चैम्पियन बनने पर उसकी टीम को इनाम के तौर पर राशि मिलेगी, लेकिन वह ....।
वह टीम चयन के समय समझता है कि किसी खिलाड़ी को चोट लग जाए, बीमार हो जाए ताकि उसके स्थान पर उसका चुनाव हो सके। यह सब कुछ कितने असाधारण तौर पर जीत के साथ ही जुड़ा है। देश के हितों का किस को ध्यान होता है। कौन यह सोचता है कि उससे बेहतर खिलाड़ी के साथ अगर टीम जीत सकती है तो उसका टीम से बाहर होना ठीक था। टीम में शामिल होने के लिए अनफिट खिलाड़ी भी स्वयं को पूरी तरह फिट साबित करना चाहते हैं। उनके लिए अपने अहं से भरी कोई चीज़ नहीं होती। जिसके आगे देश भी छोटा हो जाता है, बौना रह जाता है। खिलाड़ी स्वयं को जीतते हुये दिखाना चाहते हैं देश को नहीं, दूसरी तरफ दर्शकों का भी यही हाल है। उनकी मानसिकता भी अपनी टीम की जीत के साथ जुड़ी होती है, जिसको उत्साहित करने के लिए वह मैदान में आये होते हैं। दिलचस्पी एक बढ़िया खेल में नहीं, चाहे विरोधी टीम की ही क्यों न हो? रुचि अपनी टीम की जीत में है चाहे वह बेहद निराशाजनक प्रदर्शन कर रही हो। एक अच्छा खिलाड़ी, एक उत्तम खिलाड़ी, अपना बेहतरीन खेल खेलते और दर्शक एक सच्ची खेल भावना का खेल मैदान में प्रदर्शन करें। खिलाड़ियों को सम्मान साफ-स्वच्छ खेल खेलने हेतु दिया जाए चाहे वह हारने वाले ही क्यों न हो? आओ, यह रूझान समाप्त करें जहां हार चुके खिलाड़ियों को अपमानित किया जाता है। हारे खिलाड़ियों का अपमान करके उनमें हीन-भावना पैदा न करे। आओ, अच्छी खेलों को उत्साहित करना सीखें।