थैली से उपजा दुखांत

अमृतसर, तरनतारन और बटाला के क्षेत्रों में विषाक्त शराब का जो दुखांत घटित हुआ है, वह अतीव दुखद है। इससे हमारे समाज के गुरबत में फंसे लोगों की तस्वीर ही उभरती है। अब तक 104 व्यक्ति इस दुखांत में अपनी जानें गंवा चुके हैं। बहुत से लोग मृत्यु के साथ जूझ रहे हैं। कइयों की आंखों की रौशनी खत्म हो गई है। इनमें अधिकतर मेहनत-मज़दूरी करने वाले दिहाड़ीदार अथवा आर्थिक चक्की में पिस रहे लोग शामिल हैं जो गांवों में खुलेआम बिकने वाली नकली शराब का सेवन करते हैं। वे 20 रुपये की शराब की थैली खरीदते हैं जिसमें मिथाइल अल्कोहल तथा पानी का मिश्रण होता है।  शराब बेचने वालों की ओर से भट्ठियों पर देसी शराब तैयार करने की अपेक्षा इसे फटाफट तैयार क र लिया जाता है तथा फिर गरीबी के मारे इन मज़दूर लोगों के गले में उतार दिया जाता है। यह दुखांत माझा के जिलों में घटित हुआ है। शराब का यह धंधा चिरकाल से इसी तरह निरंतर चलता आ रहा है। इस धंधे से पुलिस तथा प्रशासन लापरवाह हैं। दूसरे शब्दों में यह काम उनकी नाक के नीचे चलता है। प्रशासन की आंखें बंद रहती हैं। यह बात नहीं कि पुलिस एवं आबकारी विभाग को इसका पता नहीं होता। गुप्तचर विभाग ने कुछ समय पहले सरकार को ऐसे 500 से अधिक तस्करों की एक सूची भेजी थी जो प्राय: पूरे पंजाब में सक्रिय हैं। इनका कार्य अपने बनाए तंत्र के माध्यम से लोगों को सस्ती अवैध शराब बांटना होता है। सरकार ने समय-समय पर मिलने वाली ऐसी रिपोर्टों पर सख्ती के साथ कार्रवाई क्यों नहीं की, इस संबंध में अब कोई बड़ी रहस्यपूर्ण बात नहीं रही। निचले स्तर पर पुलिस, आबकारी विभाग एवं स्थानीय राजनीतिज्ञों का जोड़-तोड़ होता है। जिला स्तरीय धरातल पर पुलिस अधिकारी राजनीतिज्ञों की सिफारिश पर ही नियुक्त होते हैं। सारे अपने-अपने स्थान पर अपनी स्थिति के अनुसार हाथ रंगते हैं। यदि ऐसी बात न होती तो पिछले चार दिनों में ही पुलिस की ओर से छापेमारी के दौरान इस धंधे से जुड़े हुए लगभग 150 स्थानों को कैसे पहचान लिया गया तथा सैकड़ों लोगों को किस प्रकार गिरफ्तार कर लिया गया। यह बात भी विश्वास के साथ कही जा सकती है कि ऐसी पुलिस कार्रवाइयां लोगों की आंखों में धूल झोंकने के समान होती हैं क्योंकि कुछ एक लोगों को छोड़ कर इन सभी दोषियों ने देर-सवेर बाहर आकर लोगों को यह विष बांटने के अपने इस धंधे में फिर से सक्रिय हो जाना है। आज अकाली स्थान-स्थान पर प्रदर्शन करते हुए कांग्रेसियों पर आरोप लगा रहे हैं परन्तु उन्हें शायद यह याद नहीं रहा कि उनके शासनकाल में भी यह धंधा निरंतर चलता रहा था। यह किसी एक पार्टी की देन नहीं है। यह प्रचलित हो चुकी आज के समय की राजनीति का ही एक उभरा हुआ भयानक एवं कुरूप चेहरा है। घटित हुए इस दुखद कांड ने समय की सरकार की छवि को और भी धुंधला करके रख दिया है। घटित हुए ऐसे कांडों के संबंध में जवाब आज के राजनीतिज्ञों द्वारा सहज रूप में इसलिए नहीं दिया जाना क्योंकि इसका संबंध नीयत के साथ है। जिस दिन राजनीतिज्ञों की नीयत अच्छी हो जाएगी, उस दिन ऐसे दुखांत घटित होना भी बंद हो जाएंगे। मुख्य समस्या तो आज के उन भाग्य-नियंताओं की है जिन्होंने आम लोगों की किस्मत को तय करना है। 

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द