161 वर्ष पूर्वर् आज के दिन हुआ था अजनाला का खूनी दुखांत


अमृतसर, 31 जुलाई (सुरिन्द्र कोछड़): तहसील अजनाला के कुएं से निकाली गईं 282 हिन्दुस्तानी सैनिकों की अस्थियों के 4 वर्ष बीत जाने के बाद भी केन्द्र सरकार ब्रिटेन से उपरोक्त सैनिकों के नामों की सूची मंगवाने में पूरी तरह असफल रही है। ये सैनिक उक्त कुएं की काली मिट्टी में पूरे 161 वर्ष पहले दफन किए गए थे। 157 वर्ष तक कुएं में दफन रहने के पश्चात् 4 वर्ष पहले 28 फरवरी से 2 मार्च 2014 तक कुएं की खुदाई कर उनके कंकाल बन चुके पार्थिव शव बाहर निकाले गए। 
उल्लेखनीय है कि लाहौर की मीयां मीर छावनी से 30 जुलाई 1857 को ब्रिटिश ईस्ट इंडिया ट्रेडिंग कम्पनी के विरुद्ध बगावत कर भागे बंगाल नेटिव इन्फैंट्री की 26 रैजीमैंट के हिन्दुस्तानी सैनिकों का एक दस्ता 31 जुलाई को दरिया रावी के किनारे मौजूदा तहसील अजनाला के गांव डड्डियां में आ पहुंचा। गांव के चौकीदार द्वारा इसकी सूचना सौड़ियां के तहसीलदार को देने पर मौके पर पहुंचे तहसीलदार के सिपाहियों ने निहत्थे थके-हारे हिन्दुस्तानी सिपाहियों पर गोलियां चलानीं शुरू कर दीं जिससे 150 के लगभग सिपाही बुरी तरह घायल होकर दरिया रावी के तेज़ बहाव में बह गए और 50 के लगभग ने गोलियों से बचने के लिए दरिया में छलांग लगा दी। अमृतसर के डिप्टी कमिश्नर फ्रैड्रिक हैनरी कूपर अपने सिपाहियों व ज़मींदारों की सहायता से जीवित पकड़े गए 282 हिन्दुस्तानी सैनिकों को रस्सी से बांधकर उसी रात अजनाला ले आया। अगले दिन 1 अगस्त 1857 की सुबह उनमें से 237 सैनिकों को 10-10 कर थाने के सामने कैपिंग ग्राऊंड में गोलियों से छलनी कर दिया गया। इसके बाद कूपर के आदेश पर गोलियों से मारे गए सैनिकों के साथ ही 45 अर्द्धबेहोशी की हालत में सिपाहियों को वहां पास मौजूद पानी रहित बड़े कुएं में फेंककर कुएं को मिट्टी से बंद कर दिया गया। 
पूरे 157 वर्ष तक अजनाला के उक्त कुएं ने पहचान व आत्मा की शांति के लिए तरस रहे 282 हिन्दुस्तानी सैनिकों के पार्थिक शरीरों को अपनी आगोश में सम्भाल कर रखा, परंतु स्वतंत्र भारत की किसी भी सरकार या संगठन ने कुएं की तलाश कर उसमें दफन इन हिन्दुस्तानी सैनिकों के पार्थिव शरीरों को कुएं  से बाहर निकालने के लिए प्रयास नहीं किया।