कृषि का दुखांत

एक और अत्यधिक हृदय-विदारक समाचार प्राप्त हुआ है, जिसने सभी को उदास भी कर दिया है, और जो प्रदेश की समूची अर्थ-व्यवस्था की गम्भीरता से जांच-परख किए जाने एवं उसका हल तलाश करने की आवश्यकता को महसूस कराता है। प्रदेश में किसानों की आत्महत्याओं का सिलसिला लम्बी अवधि से चला आ रहा है, जिसकी प्रत्येक दृष्टिकोण से जांच-पड़ताल किए जाने की आवश्यकता है। सभी आत्महत्याओं को ऋण के साथ तो नहीं जोड़ा जा सकता परन्तु इनमें से ऋण के साथ संबंधित मामले बड़ी संख्या में माने जा सकते हैं। अनेक बार किसानों की ओर से ऐसे ऋण लेने के कई अन्य भी कारण हो सकते हैं, परन्तु इनके पीछे किसान की मन्दी होती जाती आर्थिकता अवश्य दिखाई देती है। तत्कालीन सरकारें इसे सुधारने के लिए कोई संतोषजनक हल नहीं निकाल सकीं। उनकी ओर से अपनाई गई सतही नीतियों से थोड़ी-बहुत राहत अवश्य महसूस होती है, परन्तु समस्या वहीं की वहीं खड़ी है। दस वर्ष के अकाली-भाजपा शासन के समय भी ऐसे अनेक समाचार सामने आते रहे। 1997 में अकाली-भाजपा सरकार के समय किसानों को दी जाने वाली बिजली को मुफ्त करने की घोषणा की गई थी। यह क्रम अब तक चलता आ रहा है, परन्तु इसने भी किसानों की आर्थिकता को सुदृढ़ स्तम्भ प्रदान करने का कार्य नहीं किया, अपितु इसके नकारात्मक प्रभाव अधिक सामने आते रहे हैं। प्रत्येक बार केन्द्र सरकार की ओर से कुछ फसलों के खरीद मूल्य निश्चित करने की घोषणाएं भी की जाती रही हैं। इनसे भी किसान वर्ग की संतुष्टि नहीं हो सकी। किसानों की इस दुर्दशा का एक बड़ा कारण ज़मीनों का निरन्तर कम होते जाना भी है। थोड़ी-थोड़ी ज़मीनें किसी भी प्रकार से लाभप्रद नहीं रहतीं अपितु ये ऋण के चक्र को और तेज़ करती हैं। पिछले दिनों बरनाला के गांव भूतना में एक युवक लवप्रीत सिंह की अत्यधिक उदास कर देने वाली आत्महत्या की घटना से हालत काफी स्पष्ट हो जाती है। हमारी जानकारी के अनुसार लवप्रीत सिंह के परदादा जोगिन्द्र सिंह के पास किसी समय 13 एकड़ भूमि थी, जो लवप्रीत तक पहुंचते-पहुंचते सिर्फ 6 कनाल रह गई। परिवार की ओर से आढ़ितयों से लिए गए ऋण के कारण पहले जोगिन्द्र सिंह और फिर उसके बड़े बेटे भगवान सिंह ने आत्महत्या कर ली थी। परिवार की सारी ज़िम्मेदारी तब भगवान सिंह के भाई नाहर सिंह (लवप्रीत के दादा) के सिर पर आ पड़ी। नाहर सिंह ने भी ऋण की परेशानी के कारण आत्महत्या कर ली। इसके बाद ऋण का यह बोझ नाहर सिंह के लड़के कुलवंत सिंह (लवप्रीत सिंह के पिता) के कन्धों पर आ पड़ा। कुलवंत सिंह ने कृषि के साथ-साथ ड्राइवरी भी की, परन्तु ऋण के कारण धीरे-धीरे इनकी ज़मीन बिकती चली गई। वर्ष 2016 में हुई ओला-वृष्टि ने कुलवंत सिंह की उम्मीदों पर पर भी पानी फेर दिया। इस सदमे में पिछले वर्ष जनवरी महीने में कुलवंत सिंह ने भी आत्महत्या कर ली। कुलवंत सिंह के परिवार के सिर पर पहले ही लगभग 12 लाख रुपए का ऋण था। सरकार की ऋण माफी योजना के तहत सहकारी सभा का लगभग 57,000 रुपए का ऋण माफ हो गया। लवप्रीत की मां हरपाल कौर ने बताया है कि इस समय उनके सिर पर लगभग डेढ़ लाख रुपए का ऋण बैंकों का है, तथा शेष लगभग 7 लाख रुपए का कज़र् आढ़तियों एवं अन्य ग्रामीणों का है। इस ऋण का 82,000 रुपया ब्याज़ प्रत्येक 6 मास के बाद देना पड़ता है। पिता की आत्महत्या के बाद घर की पूरी ज़िम्मेदारी लवप्रीत पर आ गई। उसकी पढ़ाई भी छूट गई। ऋण के कारण एवं घर में कुंवारी बहन के विवाह को लेकर लवप्रीत सिंह मानसिक तौर पर काफी परेशान रहने लगा था तथा इसी परेशानी के कारण उसने भी आत्महत्या  कर ली। इस परिवार के पांच प्राणी पीढ़ी दर पीढ़ी आत्महत्या कर चुके हैं। हमने यह विस्तार इसलिए दिया है कि आज पंजाब के अधिकतर छोटे किसानों एवं कृषि मजदूरों की हालत लगभग इसी प्रकार की है। वे भी ऐसी ही मानसिक अवस्था से गुजर रहे हैं। अब एक और समाचार प्राप्त हुआ है कि बठिण्डा ज़िला के गांव जयसिंह वाला में कीटनाशक दवाई पीकर एक किसान महंगा सिंह ने भी आत्महत्या कर ली है। उसके सिर पर भी 10 लाख रुपए का ऋण बताया जा रहा है। यदि पंजाब जैसे प्रांत में ऐसी दुखद घटनाएं हो रही हैं, तो देश के अन्य प्रांतों में क्या हाल होगा, इसका अनुमान लगा पाना कठिन नहीं है। विगत दो वर्षों में पंजाब के 900 किसानों ने आत्महत्या कर ली। पंजाब की कांग्रेस सरकार इस वायदे के साथ सत्तारूढ़ हुई थी कि वह किसानों का सारा ऋण माफ कर देगी। उसने अब तक कुछ पग अवश्य उठाये हैं। लगभग 3600 करोड़ रुपए के ऋण माफ किए जा चुके हैं। सरकार ने यह भी वायदा किया है कि वह पांच वर्षों में किसानों के 7,000 करोड़ रुपए के ऋण माफ करेगी परन्तु इसके बावजूद बड़ी संख्या में किसान वर्ग मायूस दिखाई दे रहा है। आज इस दुखांत का हल तलाश करना एक बड़ी चुनौती बन चुका है। आंकड़ों के अनुसार देश के अन्य प्रांतों में भी विगत वर्षों में हज़ारों किसानों ने आत्महत्या की है। नि:संदेह इस स्थिति को प्रत्येक ढंग से बदले जाने की आवश्यकता है, ताकि बढ़ते हुए इस संताप से झुलस रहे पंजाब को बचाया जा सके।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द