केरल की पहचान हॉउसबोट 


केरल के बैकवॉटर्स में जब आपकी हाउसबोट पानी के मखमली कालीन पर फिसलती हुई सी चलती है तो आस-पास के नज़ारों और इस स़फर से मिलने वाले सुकून को शब्दों में बयान कर पाना नामुमकिन हो जाता है।
केट्टुवल्लम यानी हाउसबोट
किसी ज़माने में बैकवॉटर्स के बीच बने टापुओं से फसलों को  लाने-ले-जाने के लिए ऊपर से ढकी लकड़ी की बड़ी-बड़ी नावें यानी ‘केटटुवल्लम’ चला करती थीं। समय के साथ-साथ यही नावें हाउसबोट में तबदील हो गईं। आज यह आलम है कि इन हाउसबोट से ही केरल को पूरी दुनिया में पहचाना जाता है। लकड़ी की बनी इन हाउसबोट को ऊपर से नारियल की पत्तियों से ढककर किस्म-किस्म के आकर्षक डिज़ाइन दिए जाते हैं। पर्यटकों की सुविधा के लिए इन हाउसबोट में हर किस्म की आधुनिक सुख-सुविधाएं मौजूद रहती हैं।
हाउसबोट के ठिकाने
यूं तो हाउसबोट केरल के कई भागों में चलती हैं मगर हाउसबोट-क्रूज का मज़ा लेने के लिए सबसे लोकप्रिय जगह एलप्पी या अलापुझा ही है।
 केरल के बैकवॉटर्स की कुल हाउसबोट की लगभग आधी यहीं की पुनामडा झील में चलती है। यही वह जगह है जहां हर साल अगस्त में ओणम के मौके पर लंबी-लंबी सर्पाकार नावों की विश्वप्रसिद्ध रेस ‘वल्लमकली’ होती है जिसे देखने के लिए दुनिया भर से पर्यटक आते हैं।
कहां से कब हो हाउसबोट की सैर
एलप्पी पहुंचने के लिए करीब 54 किलोमीटर दूर कोच्चि एयरपोर्ट है। रेल से जाएं तो बाहर से आने वालों के लिए कोच्चि रेलवे-स्टेशन ही सही रहता है। वैसे एलप्पी केरल के तमाम बड़े शहरों से रेल द्वारा जुड़ा हुआ है। एलप्पी केरल की राजधानी तिरुवंतपुरम से सड़क द्वारा लगभग डेढ़ सौ किलोमीटर दूर है। हाउसबोट की बुकिंग के लिए केरल के हर छोटे-बड़े शहर और देश के सभी महानगरों में ट्रैवल एजेंट हैं। इंटरनेट या  स्थानीय टैक्सी ड्राइवरों की मदद से भी आप हाउसबोट बुक करा सकते हैं। केरल जाने के लिए नवम्बर से अप्रैल का मौसम ज्यादा उपयुक्त रहता है। क्योंकि इन दिनों में न तो यहां बारिश होती है और गर्मी भी कम पड़ती है। सर्दी तो खैर यहां होती ही नहीं है। इसके अलावा सितम्बर-अक्तूबर के महीनों में भी यहां जाया जा सकता है।
किस्म-किस्म के हाउसबोट
एलप्पी में दो तरह के हाउसबोट क्रूज का मज़ा लिया जा सकता है। एक तो चार-छह घंटे का पैकेज होता है, जो सस्ता तो पड़ता है लेकिन इसमें ज्यादा मज़ा नहीं आता। जो सबसे मज़ेदार और यादगार टूर है, वह 21 घंटे का होता है, जिसमें आप एक रात भी हाउसबोट पर बिताते हैं। हर हाउसबोट में सबसे पहले एक डाइनिंग-हॉल होता है जो तीनों ओर से खुला होता है। इसमें सोफा, कुर्सियां, डाइनिंग टेबल, टी.वी., डी.वी.डी. प्लेयर आदि होते हैं। यहीं बैठकर पर्यटक आसपास के नज़ारे देखते हैं। इसके बाद डबल बैडरूम होता है जिसमें पंखे, एयर कंडिश्नर, ड्रेसिंग टेबल, बाथरूम, टॉयलेट आदि होते हैं। हाउसबोट एक दो, तीन या चार बैडरूम वाली होती हैं और आप अपनी सुविधा व बजट के मुताबिक ए.सी. या नॉन-ए.सी. हाउसबोट किराए पर ले सकते हैं। कुछ हाउसबोट दो मंजिली भी होती हैं और कुछ होती तो एक मंजिला हैं मगर उनमें ऊपर एक डेक बना होता है, जहां बैठकर पर्यटक नज़ारे देख सकते हैं। हर हाउसबोट में एक ड्राइवर, एक रसोईया और एक हैल्पर होता है। हाउसबोट हालांकि लकड़ी, बांस, नारियल के रेशे की रस्सियों, नारियल की पत्तियों की खपरैल आदि से ही बनाए जाते हैं लेकिन अब कुछ हाउसबोट स्टील के भी बनने लगे हैं।
क्रूज की शुरुआत
आमतौर पर दोपहर 12 बजे हाउसबोट क्रूज शुरू होता है। अगर आपके साथ बच्चे हैं या खाने-पीने को लेकर आप की कुछ खास फरमाइश हैं तो बुकिंग के समय बता देने से सुविधा रहती है। बेहतर होगा अपने साथ ही खाने-पीने का हल्का-फुल्का सामान पहले से रख लें। वैसे रास्ते में किनारे पर स्थित छोटी-छोटी दुकानों से भी खरीदारी कर सकते हैं लेकिन यह महंगी पड़ती है। हाउसबोट में ही किचन होता है और एक रसोइया आपकी पसंद के मुताबिक यात्रा शुरू होते ही शाकाहारी या मांसाहारी लंच की तैयारियों में लग जाता है। दोपहर डेढ़ बजे हाउसबोट किसी किनारे पर रोक दी जाती है और केरल के स्थानीय स्वाद वाले व्यंजन परोसे जाते हैं। साढ़े तीन बजे फिर से क्रूज रवाना होता है। हालांकि ये हाउसबोट इंजन से चलती हैं लेकिन इनकी रफ्तार काफी धीमी रखी जाती है ताकि पर्यटक बैकवॉटर्स के आसपास रहने वालों की ज़िंदगी का सहज जायजा ले सकें।
हाउसबोट की शाम
शाम साढ़े पांच बजे हाउसबोट को रास्ते के किसी गांव में किनारे पर लगा दिया जाता है। दरअसल इसके बाद मछुआरे इस झील में जाल डालते हैं जिस वजह से नावें नहीं चलाई जा सकतीं। इन हाउसबोट में इनवर्टर, जैनरेटर, नहाने के पानी की टंकी, पीने के लिए मिनरल वॉटर आदि के अलावा डिश एंटीना भी होता है। हाउसबोट में सुबह जल्दी उठकर बाहर का सुनहरा नज़ारा देखने लायक होता है। नहा-धोकर लौटने के लिए तैयार हो जाइए क्योंकि सुबह 8 बजे हाउसबोट अपने वापसी के सफर पर चल पड़ती है। चलते हाउसबोट में परोसा जाने वाला खास दक्षिण-भारतीय फ्लेवर का नाश्ता आपकी यात्रा के अंतिम पलों को और खास बना देता है। (एजेंसी)