प्रेरक प्रसंग संकल्प की दृढ़ता

काशी हिंदू विश्वविद्यालय का नाम मन में आते ही  ही जो एक और नाम मन में उभरता है वह है पंडित मदन मोहन मालवीय जी का। वस्तुत: मालवीय जी काशी हिंदू विश्वविद्यालय का पर्याय ही बन चुके हैं। काशी हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना में उन्होंने जितना परिश्रम किया उसकी मिसाल मिलना दुर्लभ है। विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए धन की व्यवस्था करने के लिए उन्होंने अपने मित्रों और सहयोगियों के साथ पूरे भारत का भ्रमण कर चंदा एकत्रित किया। उन्नीसवीं शताब्दी के प्रथम दशक में मालवीय जी के प्रयास से जो राशि एकत्रित हुई वह थी लगभग एक करोड़ रुपए जो उस समय के हिसाब से एक बहुत बड़ी रकम थी। उन दिनों इतनी बड़ी राशि एकत्रित करना कोई हंसी खेल नहीं था, लेकिन इसे संभव कर दिखाया मालवीय जी के दृढ़ निश्चय और विश्वास ने।
मालवीय जी चंदा एकत्रित करने के लिए निकलने से पूर्व प्रतिदिन एक प्रतिज्ञा करते थे कि आज इतनी राशि अवश्य एकत्रित करूंगा और जब तक उस दिन के लिए निर्धारित राशि एकत्रित नहीं हो जाती, वे भोजन ग्रहण नहीं करते। एक दिन मालवीय जी चंदा एकत्रित करने के लिए अपने मित्रों के साथ अमृतसर के एक व्यापारी के घर पहुंचे। व्यापारी ने सबसे पहले आगंतुकों के भोजन की व्यवस्था की। बाकी सब लोगों ने तो भोजन कर लिया पर मालवीय जी ने भोजन नहीं किया। व्यापारी ने उनके भोजन न करने का कारण पूछा तो पता चला कि आज के लिए निर्धारित राशि अभी एकत्रित नहीं हो पाई है। अत: मालवीय जी के भोजन करने का प्रश्न ही नहीं उठता। व्यापारी ने फौरन मालवीय जी को उस दिन के लिए निर्धारित राशि चंदे के रूप में दे दी। यदि हम अपना लक्ष्य निर्धारित कर उसे पूर्ण करने का प्रण लें और उसके लिए कुछ बलिदान करने के लिए भी तैयार रहें, चाहे वह उपवास ही क्यों न हो, तो कोई ताकत नहीं जो हमारे लक्ष्य की पूर्ति में बाधा बने, अपितु हमारे अच्छे संकल्प और प्रतिज्ञाएं पूर्ण करने में दैवी  शक्तियां भी सहायक होती हैं।
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