कोरोना की दहशत से मुक्त प्रवासी पक्षी पहुंचने लगे देश

कोरोना की दहशत सिर्फ  इंसानों तक ही सीमित है, पशुओं, पक्षियों में पहले दिन से इसकी कोई दहशत नहीं दिखी। बावजूद इसके पारिस्थितिकी विशेषज्ञों को एक फीसदी ही सही कहीं न कहीं आशंका थी कि इस साल पूरी दुनिया में जिस तरह लंबे समय तक लॉकडाउन रहा है, उससे तमाम तरह की प्राकृतिक और पारिस्थितिकीय गतिविधियों में जो फर्क देखा गया है, मसलन धरती से काफी हद तक प्रदूषण कम हुआ है। औद्योगिक कारखानों और वाहनों के धुएं में जो कमी आयी है उसके चलते ओजोन परत का छेद आसानी से बंद होता नजर आया है। ऐसे में विशेषकर पक्षी विशेषज्ञों को लग रहा था कि कहीं इस साल प्रवासी पक्षियों का व्यवहार बदला हुआ न दिखे, यानी आशंका थी कि इस बार ऐसा न हो कि दूर देश से चलकर आने वाले प्रवासी पक्षी हिंदुस्तान न आएं। लेकिन आमतौर पर जिन प्रवासी पक्षियों की भारत में आवक नवंबर और दिसंबर के महीने में होती है, पता नहीं यह कोरोना के चलते कम हुए प्रदूषण का नतीजा है या कोई भ्रम कि इस साल ऐसे तमाम प्रवासी पक्षी समय से काफी पहले ही भारत के मैदानी इलाकों में पहुंचने लगे हैं। सितम्बर के दूसरे सप्ताह में भारत-पाकिस्तान की सीमा से सटे जम्मू के घराना वेटलैंड में प्रवासी पक्षियों की पहली खेप पहुंची। आम तौर पर अक्टूबर के बाद पहुंचने वाले इन पक्षियों को देखकर स्थानीय लोग ही नहीं पर्यावरण विशेषज्ञ भी थोड़े चौंक गये और सोचने लगे कहीं यह हिमालय के ऊपरी चोटियों में भारत और चीन के सैनिकों की हलचल का नतीजा तो नहीं है क्योंकि पहली खेप में जो पक्षी घराना वेटलैंड पहुंचे हैं, उनमें बड़ी संख्या में राजहंस या हेडेड गीज भी हैं। राजहंस आमतौर पर ऊपरी हिमालयी इलाकों में रहता है। लेकिन भारी सर्दियों के पहले वह नीचे बहते गर्म पानी के इर्द-गिर्द रहने को आ जाता है। घराना वेटलैंड पहुंचने वाले प्रवासी पक्षियों में और भी कई प्रवासी पक्षी दिखे, मसलन कामन कूट, नार्दन शावलर, गार्गेनी और कामन टील। पर्यावरण और पारिस्थिति की विशेषज्ञ इन पक्षियों के करीब एक डेढ़ महीना पहले आने से थोड़े हैरान हैं। हालांकि घराना वेटलैंड इस साल पिछले सालों से कहीं बेहतर तरीके से प्रवासी पक्षियों की अगुवानी के लिए तैयार है। क्योंकि इस साल यहां कई सालों बाद बहुत अच्छी बारिश हुई है। घराना वेटलैंड एक उथली झील सरीखा बड़ा तालाब है और पानी से खूब लबालब है। सिर्फ  तालाब में ही पानी नहीं बल्कि कई किलोमीटर तक पानी का दलदल भी बना हुआ है। दरअसल प्रवासी पक्षी इस दलदल में आसानी से अपना शिकार हासिल कर लेते हैं, इसलिए वे किसी भी वेटलैंड की तरफ  सबसे ज्यादा आकर्षित होते हैं। पर्यावरण विशेषज्ञ इस साल प्रवासी पक्षियों के जल्द पहुंचने का एक कारण बेहतर पर्यावरण को भी मानते हैं। क्योंकि इनके मुताबिक भले प्रवासी पक्षी एक डेढ़ महीना पहले पहुंच गये हैं, लेकिन वातावरण काफी धुला-धुला और मोहक हो चुका है। अब चूंकि समय से पहले प्रवासी पक्षी आ गये हैं तो उनको देखने, उनको दाना खिलाने तमाम पर्यटक भी घराना वेटलैंड पहुंच रहे हैं। पर्यटकों के वेटलैंड के इर्द-गिर्द बैठने और पक्षियों के लिए दाना आदि डालने की अच्छी व्यवस्था की गई है। हालांकि हर जगह प्रवासी पक्षी अभी तक नहीं आये, लेकिन इस कोरोना काल में कुछ तो जल्दबाजी पक्षियों को है मसलन जिस खंजन पक्षी को आमतौर पर हिमालय के नीचे मैदानों में अक्टूबर के बाद देखा जाता था, इस साल वह सितंबर के दूसरे हफ्ते में ही उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले में खूब दिखाई पड़ रहा है। लेकिन खंजन की सबसे पसंदीदा जगह चंबल नदी है। चंबल नदी में जहां घड़ियाल अठखेलियां करते हैं, वहीं छोटी सूरमा, चुटकन्ना उल्लू, कला सिरसिरा और सफेद खंजन भी इस नदी की जैव विविधता की शान हैं। चंबल का बेसिन जैव विविधता से भरपूर है। लेकिन इस साल चंबल में अभी तक खंजन नहीं पहुंचे। पर चूंकि चंबल से कुछ सौ किलोमीटर पहले तक आ चुके हैं तो किसी को शक नहीं है कि वो सितंबर के तीसरे हफ्ते तक चंबल में अठखेलियां नहीं कर रहे होंगे। हालांकि देश में वेटलैंड्स की संख्या दिनोंदिन सिकुड़ती जा रही है। फिर भी पूरे देश में अभी भी एक लाख से ज्यादा वेटलैंड मौजूद हैं। मगर इनकी संख्या किस तरह दिनोंदिन कम हो रही है, उसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि एक दशक पहले तक जहां अकेले झारखंड में 10 हजार से भी ज्यादा वेटलैंड थे, वहीं अब इनकी संख्या घटकर 5 हजार के नीचे पहुंच गई है। दुनिया में औद्योगीकरण के नाम पर जिस तरह से दिन दूनी रात चौगुनी रफ्तार से पर्यावरण का नाश हो रहा है, उसके चलते आर्द्रभूमि यानी वेटलैंड्स लगातार कम हो रहे हैं जिससे पक्षियों का वैश्विक भ्रमण भी धीरे धीरे सीमित होता जा रहा है। पर्यावरण विशेषज्ञ इससे बहुत चिंतित हैं क्योंकि प्रवासी पक्षी सिर्फ  खुद नहीं आते बल्कि हजारों किलोमीटर दूर से बहुत सारी जानकारियां, बहुत सारी खूबियां और बहुत सारे सवाल लेकर आते हैं इसलिए वेटलैंड्स का  दुनिया में होना बहुत महत्वपूर्ण है।

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