आम हीरो वाले किरदार चुनौतीपूर्ण नहीं होते नवाजुद्दीन सिद्दीकी

नवाजुद्दीन सिद्दीकी इकलौते ऐसे कलाकार थे जिन्होंने दर्शकों को राहत देने का काम किया था।  बाला साहेब ठाकरे की बायोपिक ‘ठाकरे’  में नवाजुद्दीन सिद्दीकी, हर एंगल से बाला साहेब ही नजर आते थे। हालांकि इसके लिए उन्हें  अपने मराठी उच्चारण पर सबसे ज्यादा मेहनत करनी पड़ी लेकिन वे अपने डॉयलॉग धाराप्रवाह से बोल पाने में कामयाब रहे।  ‘बोले चूड़ियां’ में वह तमन्ना भाटिया के अपोजिट मेन लीड में हैं। इसका निर्देशन नवाजुद्दीन सिद्दीकी के भाई समास कर रहे हैं। राधिका आप्टे के साथ वह ‘रात अकेली है’ कर रहे हैं। मुझे लगता है कि ‘ग्रे केरेक्टर’ में एक एक्टर को करने के ज्यादा अवसर होते हैं। उसमें अभिनय के कई रंग होने के साथ-साथ स्कोप भी ज्यादा होता है।
 यह एक इत्तफाक है कि इस वक्त मैं हीरो टाइप फिल्में कर रहा हूं वर्ना इस तरह के किरदार करते हुए मुझे ज्यादा मजा नहीं आता। गंभीर किरदारों से अलग मेरा मन कुछ समय के लिए नाच गाने के लिए हुआ तो इस तरह की फिल्में कर ली वर्ना मैं तो अपनी तरह की फिल्मों में ही खुद को ज्यादा सहज महसूस करता हूं।  न किरदार की लोकप्रियता और न व्यावसायिक कामयाबी। मैं तो कोई फिल्म साइन करते वक्त बस यही देखता हूं कि जो किरदार निभाने जा रहा हूं, क्या उसे निभाते वक्त मुझे रचनात्मक संतुष्टि मिल सकेगी। यदि जवाब हां हुआ तो मैं बिना कुछ सोचे उसके लिए हां कह देता हूं। यदि मुझे रचनात्मक संतुष्टि नहीं होती तो मैं ‘मंटो’ और ‘ठाकरे’ जैसी फिल्में कभी नहीं करता। एक आम हीरो वाला किरदार निभाने में चुनौती नहीं होती। चुनौती तब होती है जब आप किसी और के किरदार में, ढलने की कोशिश करते हैं क्योंकि आप वो नहीं होते हैं जो बनने की कोशिश कर रहे होते हैं। अब न तो मैं ‘मंटो’ हूं, न बाला साहेब, इसलिए मेरे लिए दोनों ही किरदार चुनौतीपूर्ण थे।