किसानों की आय कैसे बढ़े ?
पंजाब में धान (बासमती सहित) लगभग 30 लाख हैक्टेयर रकबे में लगाया जाता है। धान की काश्त ने सब्ज़ इन्कलाब के दौरान गत शताब्दी के 6वें दशक में ज़ोर पकड़ा जब गेहूं-धान का फसली चक्र देश की अनाज की कमी को दूर करने के लिए स्थापित हुआ। सरकार द्वारा अधिक उत्पादन देने वाली बीजों की किसमें, सिंचाई के साधन और कीमियाई खादों पर रियायत देने के तौर पर धान एवं गेहूं की काश्त के अधीन क्रमश: रकबा 30 लाख हैक्टेयर और 35 लाख हैक्टेयर पर स्थिर होता गया। उस समय देश को अनाज की ज़रूरत थी और केन्द्र एवं राज्य सरकार ने धान व गेहूं की फसल की काश्त बढ़ाने के लिए किसानों को प्रोत्साहित किया। उस समय भारत में अनाज की बड़ी कमी थी और भारत अपनी आबादी की भूख दूर करने के लिए अमरीका से पी.एल. 480 के तहत अनाज मंगवाने के लिए मजबूर था।
यह सब्ज़ इन्कलाब था जिससे फिर 6वें दशक के दौरान अधिक उत्पादन देने वाली किस्में, कीमियाई खादें और कीटनाशक इस्तेमाल करके 6वें दशक के अंत और 7वें दशक के दौरान इन्कलाब आया और पंजाब, हरियाणा में गेहूं, धान की उत्पादकता शीर्ष पर पहुंच गई। पंजाब आज 21 क्ंिवटल प्रति एकड़ गेहूं और 30 क्ंिवटल प्रति एकड़ धान पैदा कर रहा है। आज भारत का चावल का अनुमानित उत्पादन (सन् 2020-21 में) 102.36 मिलीयन टन के रिकार्ड को छू गया है। भारत ने गत वर्ष 139 लाख टन गैर-बासमती चावल 35448.24 करोड़ रुपये का निर्यात किया। बासमती चावल 46.32 लाख टन 29849.40 करोड़ रुपये का निर्यात किया। केन्द्रीय अनाज भंडार में 557.78 लाख टन चावल का योगदान डाला। धान पंजाब की पारम्परिक फसल नहीं थी परन्तु सब्ज़ इन्कलाब के दौरान यह पंजाब की अहम फसल बन गई। धान के न्यूनतम समर्थन मूल्य और सरकारी खरीद होने से किसानों ने मक्की, तेल बीज फसलों और दालों आदि की फसलों के तहत रकबा बदलने के लिए कोई उत्साह नहीं दिखाया। केन्द्र सब्ज़ इन्कलाब के दौरान और इसके बाद काफी समय अनाज की ज़रूरत को पूरा करने हेतु किसानों को प्रोत्साहित कर इस फसली चक्कर को मज़बूत करता रहा। अब जब ज़रूरत विशेषकर धान की अन्य दूसरे राज्यों से पूरी हो गई तो केन्द्र द्वारा भी सब्ज़ इन्कलाब के दौरान और इसके बाद किसानों को सब्सिडी एवं रियायतें समाप्त करने के प्रयास किये जा रहे हैं। केन्द्र को अब पंजाब के चावल एवं गेहूं की आवश्यकता नहीं रही। चावल एवं गेहूं केन्द्र न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम कीमत पर निर्यात कर रहा है। केन्द्र के इस रवैये के कारण किसानों में अशांति फैल रही है और वे तीन कृषि कानूनों को रद्द करवाने के लिए आन्दोलन कर रहे हैं। केन्द्रीय कृषि और किसान कल्याण विभाग के मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर ने कुछ देर हुई एग्रीकल्चरल कैमिकल्स कांग्रेस में कहा था कि संशोधित बीज, कीमियाई खाद एवं कीटनाशक कृषि उत्पादन तीनों बड़े साधन हैं। किसानों द्वारा ये साधन अपनाये जाने के कारण ही कोविड-19 के बीच सिर्फ कृषि ही थी जो तालाबंदी से प्रभावित नहीं हुई।
गत वर्ष कोरोना वायरस के दौरान खरीफ एवं रबी की फसलें भरपूर हुईं। अब दूसरी लहर के बावजूद खरीफ की भरपूर फसल होने की उम्मीद है। उत्पादन और उत्पादकता शीर्ष पर पहुंच जाने के कारण कृषि क्षेत्र में अब ठहराव आ गया है। खर्च बढ़ने से किसानों की आय प्रभावित हुई है। डीज़ल भी 90 रुपये प्रति लीटर से ऊपर हो गया है। अब ‘फोकस’ उत्पादन से मंडीकरण एवं कृषि उत्पादन की खपत बढ़ाने पर होना चाहिए। किसानों का आय बढ़ाने के लिए निर्यात बढ़ाने की आवश्यकता है। इस समय भारत का विश्व के कृषि निर्यात में हिस्सा लगभग 2 प्रतिशत है। कृषि विशेषज्ञों और उद्योगपतियों का कहना है कि उत्पादन का निर्यात तीन गुणा होना चाहिए। किसानों की आय बढ़ाने के लिए उन्हें आधुनिक कृषि तकनीक अपना कर सस्ती कृषि पैदावार लेने के लिए प्रयास करना चाहिए। इस समय किसानों द्वारा जो खर्चे किये जा रहे हैं, वे शुद्ध लाभ को कम कर रहे हैं। कृषि ज्ञान और विज्ञान के साथ किसानों को जोड़ने की ज़रूरत है। इस तरह ही उनकी आय दोगुणा होगी।