अफगानिस्तान-भारत रिश्ते पर पाकिस्तान की टेढ़ी नज़र
कहा जाता है कि अन्तर्राष्ट्रीय रिश्तों के बनने बिगड़ने में स्थायी दोस्ती या स्थायी दुश्मनी जैसा कुछ नहीं होता, लेकिन पाकिस्तान की नज़र भारत के बनते रिश्तों पर हमेशा टेढ़ी रही है। एक पड़ोसी होने के नाते यह कोई आदर्श स्थिति नहीं है। भारत की आम जनता और पाकिस्तान की आम जनता के मनोभाव बेशक बहुत अलग रहे हैं, लेकिन दिशा तो वहीं से निकलती है जहां राज्य सत्ता में बैठे लोग अपने संकीर्ण इरादों को जनता पर लाद देते हैं। और कोई बेहतर विकल्प बचे नहीं रहते। भारत अफगानिस्तान रिश्तों पर भी उनकी आपत्तियां जो पिछले दिनों देखी गईं उनका कोई बड़ा आधार नहीं है। कहा जा रहा है कि भारत-अफगानिस्तान के करीब क्यों जा रहा है। 2008 और 2009 में भारतीय दूतावास पर हमलों के लिए तालिबान ज़िम्मेदार माने गए। पाकिस्तान अफगानिस्तान रिश्ते असहज हो चुके हैं। वहां यह धारणा आम प्रचारित कर दी गई है कि भारत अफगानिस्तान की ज़मीन का इस्तेमाल बलूचिस्तान और खैबर पख्तूनख्वा प्रांतों को अस्थिर करने के लिए करना चाहता है। जबकि तालिबान के शीर्ष अधिकारी इस बात को सिरे से रद्द कर चुके हैं। पाकिस्तान के एक पत्रकार के अनुसार तालिबान के उच्च अधिकारी भारत के साथ अपने रिश्ते को पाकिस्तान की नज़र से नहीं देखते। तालिबान की इच्छा है कि भारत-अफगानिस्तान में कुछ महत्त्वपूर्ण विकास परियोजनाओं को ज़रूर पूरा करें, जो अशरफ गनी की सरकार के पतन से पूर्व शुरू की गई थीं, जिनमें सबसे महत्त्वपूर्ण है सलमा डैम प्रोजैक्ट, जिसे आधिकारिक रूप से अफगान-इंडिया फ्रैंडशिप डैम के नाम से जाना जाता है। भारत ने अफगानिस्तान के विकास के लिए क्या-क्या योगदान दिया है, इससे पाकिस्तानी लीडरशिप जान कर भी अनजान बनी रहती है। भारत ने अफगानिस्तान में 200 से अधिक सार्वजनिक और निजी स्कूलों का निर्माण करवाया है इनमें कुछ स्कूल लड़कियों के भी हैं। भारत ने काबुल में अफगान संसद का भी निर्माण किया है। हालांकि तालिबान की संसद को लोकतांत्रिक ढंग से परिचालित करने में कोई खास दिलचस्पी नहीं है, लेकिन वह यह ज़रूर चाहते हैं कि भारत सलमा डैम को पूरा करे और उन कई स्कूलों के लिए धन-उपलब्ध करवाने में कोई कमी न आने दे। यही नहीं, उनकी यह चाहत भी स्पष्ट है कि उनकी जूनियर क्रिकेट टीम को बार-बार भारत के दौरे के मौके उपलब्ध होते रहे। तालिबान इस बात से भी बेखबर नहीं है उनके विरोधियों के साथ भारत के रिश्ते पुराने हैं, जिनके ठिकाने अभी भी ताजिकिस्तान में हैं। तालिबान की इच्छा होगी कि भारत उनके विरोधियों को समर्थन न दे। यहां दुविधा एक और भी है। चीन अफगानिस्तान में अपना प्रभाव क्षेत्र बढ़ा रहा है। वह चुपचाप तालिबान शासन को आई.एस.आई.एस. से मुकाबला करने में मदद कर रहा है। जो चीन के शिनजियांग प्रांत में आतंकी हमले के लिए प्रयत्नशील हैं।
भारतीय राजनयिक जितेन्द्रपाल सिंह ने नवम्बर 2024 में काबुल का दौरा किया था वहां उनकी मुलाकात अफगानिस्तान के रक्षा मंत्री मुल्ला याकूब से हुई थी। इस यात्रा का एक परिणाम बिल्कुल साफ था कि डा. हाफिज इकरामुद्दीन कामिल को मुम्बई में बतौर कॉन्सुलेट जनरल नियुक्त किया गया। जे.पी. सिंह कामयाब रहे अफगानिस्तान के कार्यवाहक विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी और भारतीय विदेश सचिव विक्रम मिस्त्री के बीच दुबई में एक बैठक की व्यवस्था करवाने में। इसे पिछले चार वर्षों में दोनों देशों के बीच एक उच्च स्तरीय बैठक माना जाता है। नई दिल्ली और काबुल के बीच इसे एक नई शुरुआत एक नयी पहलकदमी की तरह देखा गया।