युवाओं को खेलों की ओर प्रेरित करें

खेलें सदा से ही पंजाब की संस्कृति का एक अटूट अंग रही हैं। सभी पंजाबियों के लिए यह बहुत गर्व की बात है कि जापान में होने वाले ओलम्पिकस 2021 में पूरे भारत में से अकेले पंजाब में से 16 फीसदी खिलाड़ियों का चयन हुआ है एक ओर खुशी की बात यह है कि पंजाब से मनप्रीत सिंह (पुरुष हाकी टीम के कप्तान) ओलम्पिक के उद्घाटन समारोह में भारतीय झंड़े की अगुवाई करेंगे।
आजकल कई स्थानों से नवयुवक पीढ़ी की गलत रास्तों पर चलने की खबरें मिलती हैं। जैसे कि नशा, चोरी और अन्य गलत रास्तों पर चलने के बारे। इन सब खबरों के दौरान ओलम्पिक खेलों में पंजाबी युवाओं का शामिल होना एक आशा की किरण साबित हुई है। जो बच्चे खेलों में भाग लेते हैं वह 24-25 वर्ष की उम्र में पहुंच कर अपने न खेलने वाले साथियों से आठ गुणा ज़्यादा सक्रिय और तंदुरुस्त होते हैं। 
कथन है कि : 
1. खेलें दृष्टिगत उत्तमता के साथ समाज की सेवा करती हैं। 
2. खेलों का मूल है अपने-आप को परखना, आपने में सुधार करना और अपने बीते दिनों से बेहतर बनना। 
3. वाकय ही इन पंक्तिं में यह सच्चाई छिपी है। 
खेलों से शरीर का सम्पूर्ण विकास होता है। इन्सान के अंदर स्वयं को परखना अपने लक्ष्य को निर्धारित करना, लीडरशिप के गुण आते हैं और सबसे ज़रूरी खेल भावना यानि कि जीत हार को मानना यह सब खूबियां एक खिलाड़ी के अंदर स्वयं ही पनप जाती हैं। खेलों से बच्चों और नौजवानों का सम्पूर्ण विकास होता है। 
एक इन्सान के जीवन में उनके लिए पढ़ लिख कर आपने पैरों पर खड़ा होना बहुत ज़रूरी है लेकिन पढ़ाई के साथ-साथ हमें अपने बच्चों को खेलों के लिए भी ज़रूर प्रेरित करना चाहिए और जिस खेल में बच्चे की दिलचस्पी हो उसे उत्साहित करना चाहिए। यह एक बहुत बड़ा सच है कि जो बच्चे किसी खेल की ओर लग जाते हैं यानि उनकी खेलों में लगन लग जाती है उनका ध्यान अन्य किसी कामों में जैसे सोशल मीडिया, चैटिंग आदि की ओर नहीं जाता और न ही किसी बुरे प्रभाव जैसे नशा आदि का उन पर असर होता है। ऐसे बच्चों का ध्यान पढ़ाई की ओर भी अधिक एकत्रित रहता है। 
हम यह समझते हैं कि हर किसी के पास साधन नहीं होते जिससे वह अपने बच्चों को उस मुकाम तक पहुंचाएं लेकिन हर माता-पिता के पास एक चीज़ ज़रूर होती है वह होती है बच्चों को उत्साहित करना, हौंसले को बढ़ाना और आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करना। आजकल अगर कोई बच्चा खेलों में बढ़िया प्रदर्शन करता है तो घर वालों के पास साधन न होने पर भी सरकारें, गैर-सरकारी संगठन बच्चे का एक खिलाड़ी के तौर पर उभरने की सहायता करते हैं। 
आजकल इंटरनेट और सोशल मीडिया हमारी नई पीढ़ी पर हावी है और कोरोना काल के दौरान आनलाइन क्लासें होने के कारण इंटरनेट का अधिक असर बच्चे के मन पर पड़ना लाज़िमी था। बढ़ रही उम्र में अपने बच्चों को सही रास्ते पर लाने के लिए माता-पिता की बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी है। इस उम्र में लगता है कि बच्चे बड़े हो गए हैं लेकिन यही उम्र होती है जब उनको सही मार्गदर्शन, अच्छी सलाह और सही रास्ते की आवश्यकता होती है। इसीलिए बचपन से ही अपने बच्चे के मन में पढ़ाई के साथ-साथ खेलों के प्रति भी दिलचस्पी पैदा करें ताकि जैसे-जैसे वह बड़े होते जाएं तो यह दिलचस्पी उनके खेल के प्रति जुनून में बदल जाए। फिर किसी गलत काम, नशा आदि की ओर उनका ध्यान न रहे। सो, आओ अपने देश के भविष्य को बचपन से ही खेलों के रास्ते पर डालें जिससे आगे चल कर वह अपने शहर, अपने देश का नाम रौशन करें और किसी न किसी मंच पर अपने राज्य की, देश की प्रतिनिधिता करें और माता-पिता के सिर को गर्व से ऊंचा करें। 
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