मामूली न समझें पेशाब की जलन को

पेशाब में जलन एवं रुकावट युवा एवं मध्य आयु की स्त्रियों एवं वृद्ध पुरूषों को परेशान करने वाली एक आम समस्या होती है। बचपन में इस बीमारी के शिकार होने वालों में पचानवे प्रतिशत हिस्सा मूत्र मार्ग के छोटे होने के कारण पाया जाता है।  जिनमें या तो मूत्र मार्ग में या मूत्र थैली में पथरी होती है।
पेशाब में जलन का होना अनेक कारणों से होता है। कई बार मूत्र थैली में किसी बाहरी वस्तु के प्रवेश होने से भी पेशाब में जलन होने लगती है। मूत्र थैली में पथरी का प्रवेश, पेशाब निकालने के लिए डाली गई रबड़ की नली, किसी कैंसर की गांठ का होना, मूत्र थैली में सूजन अथवा किसी बीमारी द्वारा फोड़ा उत्पन्न होने पर पेशाब की थैली या मार्ग में संक्र मण पैदा हो जाता है तथा पेशाब में जलन होने लगती है।
मूत्र विकार का मुख्य कारण मूत्र मार्ग का संक्र मण होना है। यह संक्र मण कई  रास्तों द्वारा मूत्र में पहुंचता है। मुख्य रूप से यह मूत्र मार्ग में मौजूद जीवाणुओं के मूत्र थैली में प्रवेश किये जाने के कारण होता है। मल में मौजूद जीवाणु मल त्याग के पश्चात् योनि मार्ग एवं उसके आसपास फैल जायें तो आसानी से मूत्र थैली तक पहुंच कर उसे संक्र मित कर देते हैं।  मूत्र मार्ग में नली प्रवेश करके जब मूत्र निकाला जाता है तो उसके साथ भी जीवाणु अंदर पहुंचकर मूत्रमार्ग को संक्र मित कर देते हैं। संक्र मण पैदा करने वाले जीवाणु रक्त मार्ग से भी मूत्रथैली या मूत्र में फैलकर उसे संक्र मित कर सकते हैं। फोड़े द्वारा विसर्जित जीवाणु, फेफड़ों या गले के संक्र मण स्थल से निकले जीवाणु भी खून के माध्यम से मूत्र में प्रवेश करके मूत्रनली को संक्र मित कर डालते हैं।
पेशाब की बार-बार इच्छा होना, पेशाब के वेग को सहने की क्षमता का न होना, बूंद-बूंद करके कठिनता से पेशाब उतरना, दर्द की तीव्रता का बढ़ते जाना, दर्द नाभि के नीचे, होता रहता है। मूत्र त्याग के बाद भी मूत्र त्याग की इच्छा बनी रहती है। कई बार पेशाब के अंत में खून की दो-चार बूंदों का टपकना या लाल रंग का पेशाब होना, पेशाब में दुर्गन्ध आना, पेशाब का रंग दूधिया, पीला आदि होना इसके लक्षण होते हैं।
  (स्वास्थ्य दर्पण)