नया वर्ष, पुरानी तासीर
नया वर्ष आ चुका है। नये वर्ष पर वही आपके खुश रहने की शुभकामनाओं का दौर रहा है लेकिन आजकल यह खुशी अपना चेहरा बदल चुकी है। अब खुशी यह नहीं है कि आप पूरा वर्ष अपने हर उद्यम में सफल हों। उदासियां और चिंताएं आपका दामन छोड़ दें। बुरे की आशंका आपका पीछा छोड़ दे। अच्छा हो जाने का एहसास केवल एक आकाश-कुसुम ही न रहे, बल्कि आपकी ज़िन्दगी में कम से कम औना पौना घटता नज़र आए। लेकिन इस बार नये वर्ष के इस स्वागत में यूं होने की यह उम्मीद घसमैली हो गई है। पिछले साल भी इसी उम्मीद से बरस शुरू हुआ था, लेकिन फिर चन्द दिन गुज़रते ही यह उम्मीद दुराशा में बदल गई थी।
बीते बरस के बीमारी से लेकर चोरबाज़ारी तक के विकट संकट फिर अपनी तुर्शी के साथ इस बार लौट आए, और लोग अपने अच्छे दिन आने की कल्पना का अपहरण चोरबाज़ारी से लेकर घोषणाओं की निरर्थकता तक में बदलता देख रहे हैं।
इस बरस की तो शुरुआत ही ऐसे किसी भ्रमजाल की उम्मीद के बाद अपशकुन जैसे सत्य के साक्षात्कार से नहीं हुई। इस बार की शुरुआत नये सपनों से नहीं, चेतावनियों से हुई है। महामारी की वापसी के भय से हुई है। नये वर्ष के आगमन और सड़कों पर ऊधम का संग साथ सदा से रहा है। इस बार यह ऊधम सड़कों पर नहीं, उन नई बस्तियों में नज़र आया, जो इन सड़कों को स्मार्ट बनाने के नाम पर इनकी टूट-फूट और उसे अधूरा छोड़ जश्न मनाने वाले इनके निर्माताओं, नौकरशाहों और राजनीतिज्ञों ने मनाया है। इन बस्तियों में रहने वालों ने आजकल बेहतर ज़िन्दगी के सर्वाधिकार अपने नाम सुरक्षित करवा लिए हैं, और नये वर्ष से अधिक बुरा हो जाने की आशंका से सहमते लोगों को या अभागी जनता को दया और राहत भाव बांट देने की दिलासा के साथ अपनी प्रतिबद्धता का संदेश दे दिया है।
नये वर्ष की प्रतिबद्धता इस लिए नहीं है कि इस बरस हम आपकी ज़िन्दगी में कुछ बुरा नहीं घटने देंगे, बल्कि इस दिलासा में है कि जो बुरा, जो रोग, जो संक्रमण आपकी ज़िन्दगी में घटने जा रहा है, वह उतना बुरा, उतना मारक, उतना आपकी ज़िन्दगी को पटरी से उतार देने वाला नहीं होगा, जितना कि आपने पिछले साल भोगा।
जो एक और बात कही जा रही है, वह नयेपन की पुड़िया में लिपटी पुरानी थपकी सी लगती है। अपने अथक प्रयासों से आपने पुन: लपेटने वाली महामारी की तीसरी लहर को स्थगित कर दिया था। वह अब इस नये साल में लौटने का अपना वायदा पूरा करेगी लेकिन हौसला रखिये, वह इस बार चाहे फैलेगी कई गुणा तेज़ी से, लेकिन आपको अस्पताल पहुंचाने में विलम्ब करेगी। रोग गम्भीर होगा, लेकिन कम लोगों को मारेगा। जितनी तेज़ी से आयेगा, उसी तेज़ी से विदा हो जाएगा।
यह दिलासा ही अब आपके लिए नये बरस का उपहार है। पिछले बरस नये दिनों के शुरू होने पर देश को महामारी निरोधी टीकों के अभियान के शुरू होने का उपहार मिला था। इस नये बरस में इस अभियान को तीव्र करने की घोषणा का उपहार है। कई नये सत्यों के गिफ्ट पैक में देने की उदारता मिली है। पहली बात तो यह कि अब इस महामारी का कोई वज्रपात नहीं। सामान्य बात समझ लीजिये, एक लहर जायेगी, दूसरी आयेगी जैसे सुख के बाद दुख अधिक। सेहत की जगह बीमारी बंटने, दवा बाज़ार ही नहीं हर बाज़ार से चोरबाज़ारी की अनिवार्यता को आपने स्वीकार कर लिया है। इसी तरह यह सच भी स्वीकार कर लीजिये कि यह महामारी अब विदा नहीं होगी। लहरों का आना-जाना किसी मौसमी बुखार की तरह लगा रहेगा। लोगों के इसमें कम मरने की रिपोर्ट उन मिथ्या आंकड़ों का आचरण बन जायेगी, जिन्हें प्रसारित कर आपके भाग्य-नियन्ता सार्वजनिक रूप से आपकी पीठ थपथपाया करते हैं। मिथ्या और छद्म अहसास के साथ देश की प्रगति यात्रा पहले भी चली है, नये बरस भी चलती रहेगी। रिपोर्टें नई होंगी, जनता के लिए चाहे उनकी तासीर पुरानी रहेगी।
वैसे हर पुरानी विडम्बना आपको नये पैकेज में परोसने का यह प्रयास नियमित हो गया है। कभी रिश्वत और भ्रष्टाचार को अपने समाज की विकलांगता और दुर्गन्ध माना जाता था। आज इसे इत्र से सराबोर हुआ पाते हैं। पुरानी और संकरी गलियों में नयी हवेलियां उभर आयी हैं, जिनकी दीवारों में नये भित्तिचित्र नहीं उकरे। बड़े-बड़े खजाने छिपाये जा रहे हैं। खोजी उन्हें खोद कर निकालते हैं तो उन्हें पुश्तैनी बता कर इन बड़े घरों को तिलिस्मगाह बता दिया जाता है।
यूं अमीरों की बस्तियों में देवकी नन्दन खत्री के ज़माने के तिलिस्म बंधे नज़र आने लगे हैं, जिन्हें तोड़ने की कहानियां ‘चन्द्रकांता’ या ‘चन्द्रकांता सन्तति’ साहसिक कहानियां नहीं, राजनीतिक दलों के आरोप-प्रत्यारोप बन जाती हैं। आम आदमी फुटपाथों पर घटते डम्पनुमा जीवन को गले लगाते हुए सोचता है कि जैसे महामारी की निरन्तरता का संदेश मिला, वैसे ही भ्रष्टाचार की विकलांगता को भी क्या इत्र से सराबोर मान इसकी गन्ध को सुगन्ध मान अयाचित इत्र से गहगहा ना लें।