हमारी दिनचर्या का अभिन्न अंग नींद 

आज के वैज्ञानिक युग में जबकि मानव एक मशीन बन चुका है, दिन-रात के कठोर परिश्रम से उसे अच्छी नींद ही राहत दिला सकती है। चौबीस घंटों में हम एक तिहाई समय तक सोते रहते हैं। वैज्ञानिक अभी तक इसके बारे में कोई निश्चित बात नहीं कर पाये हैं कि हम सोते क्यों हैं और सोने का हमारे शरीर पर क्या प्रभाव पड़ता है? सोने की आवश्यकताएं हर व्यक्ति के लिए अलग-अलग हैं। आम तौर पर एक वयस्क औसतन 7 से 9 घंटे प्रतिदिन सोता है। बूढ़े आदमी 3-4 घंटे तक ही सोते हैं। बच्चे सबसे अधिक नींद लेते हैं। वे लगभग 12 घंटे सोते हैं। सोते समय मानव शरीर की बाहरी गतिविधियां समाप्त हो जाती हैं लेकिन आंतरिक गतिविधियां पूरी तरह से समाप्त नहीं होती। मस्तिष्क की विद्युत तरंगों के अध्ययन से पता चला है कि सोता हुआ व्यक्ति कई स्तरों से गुजरता है। हल्की नींद से व्यक्ति गहरी नींद में पहुंचता है, फिर आराम की स्थिति में पहुंचता है। सपने इसी स्थिति में आते हैं। नींद के पूरे समय में ऐसी स्थिति 3 से 5 बार आती है। आज हम उन्नति के चरम शिखर की ओर बढ़ते जा रहे हैं लेकिन इसके साथ साथ हमारा जीवन भी व्यस्त होता जा रहा है जो हमारे जीवन को तनावग्रस्त बनाता जा रहा है। बढ़ता हुआ तनाव अनिद्रा रोग को जन्म दे रहा है। आज दुनिया के करोड़ों लोग अनिद्रा का शिकार बन गये हैं। एक आम बीमारी है-अनिद्रा। इसमें रोगी को नींद नहीं आती। डाक्टरों के अनुसार यह बीमारी तनाव के कारण होती है। नींद की गोलियां इस बीमारी में केवल अस्थायी आराम पहुंचाती हैं। एक नींद विशेषज्ञ के अनुसार-नींद न आने का कारण जरूरी नहीं कि कोई बीमारी ही हो। हो सकता है कि आपकी जीवन शैली में ही कोई गड़बड़ी हो। अगर फिर भी आप की नींद की गड़बड़ी जारी रहती है तो आप अपने चिकित्सक या नींद विशेषज्ञ की तुरंत सलाह लें अन्यथा यही समस्या एक बहुत बड़ी मानसिक विकृति का रूप ले सकती है।

(स्वास्थ्य दर्पण)