सास करे प्यार और बहू करे सत्कार

आम तौर पर सास शब्द जालिम और तानाशाह महिला के लिए प्रयोग किया जाता है। इसलिए कहते हैं ‘सास तो मिट्टी की भी सहन नहीं होती’। लेकिन यह पूर्ण सत्य नहीं। बहू और सास का रिश्ता मां-बेटी के रिश्ते की तरह प्यार भरा भी हो सकता है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि महिला ममता की मूर्त है। वह पहले एक मां है, जोकि पूरे परिवार का अभिन्न अंग होती है। परिवार के सभी सदस्यों का ध्यान रखना और परिवार को सफलता के साथ समाज में आगे बढ़ाना उसका प्राथमिक कर्त्तव्य है। इसलिए परिवार में कुछ मर्यादा तो कायम रखनी ही पड़ती है।
आगे परिवार की दो किस्में होती हैं। एक होता है एकल परिवार जहां केवल पति-पत्नी और उनके बच्चे ही होते हैं। दूसरा संयुक्त परिवार जिसमें पति-पत्नी उनके बच्चे, बच्चों के दादा-दादी और कई बार बुआ, चाचा-चाची तथा ताया-ताई और उनके बच्चे भी हो सकते हैं। इस प्रकार प्राकृतिक तौर पर परिवार के सभी सदस्यों के आपस में रिश्ते बनते हैं जिसे बहुत प्यार, विश्वास और सुहृदयता से निभाना होता है। यदि इन रिश्तों को निभाने में हम ज़रा सा भी चूक जाएं तो आपस में कड़वाहट पैदा हो जाती है। ऐसे परिवार की नींव बहुत मजबूत होती है और वह परिवार खुशी से दिन-दोगुणी रात चौगुनी उन्नति करता है और नई उपलब्धियों को हासिल करता है। समाज में भी ऐसे परिवार की मज़बूत पकड़ होती है। इस परिवार में एक रिश्ता सास और बहू का होता है, जिसके पास रहने से परिवार में अनुशासन आता है और परिवार को और भी मज़बूती मिलती है। यदि इस रिश्ते में ज़रा भी दरार आ जाए तो पूरा परिवार बिखर जाता है। सास और बहू की अनबन के कारण परिवार तमाशा बन कर रह जाता है।
कई महिलाएं अपनी बेटियों को बहुओं से ऊंचा और ज्यादा सम्मान देती हैं। वह बहू को घटिया समझती है और सहायकों की तरह छोटे-छोटे कार्यों पर लगाये रखती हैं। इस प्रकार बहुओं का अपमान होता है और उनका घर में दम घुटता है। कुछ बहुएं सास को अपनी मां के समान नहीं समझतीं और उनके साथ कड़वा बोलती हैं। बात-बात पर उनका अपमान करती हैं। यहां बहू और सास दोनों का व्यवहार गलत है। बहू चाहे जितनी भी पढ़ी-लिखी हो या अफसर लगी हो यदि बुजुर्गों के साथ बोलने की तमीज़ नहीं तो उसकी सारी डिग्रियां बेकार हैं। रिश्ते विश्वास पर कायम रहते हैं। एक-दूसरे पर सन्देह नहीं करना चाहिए। सन्देह से रिश्तों में दरार आ जाती है। घर उजड़ जाते हैं। इसलिए चुगलखोरों से बचकर रहना चाहिए। सबसे पहली बात यह है कि समाज और परिवार में महिला का दर्जा पहले वाला नहीं रहा। अपने इस अस्तित्व को बरकरार रखने के लिए उसे बहुत संघर्ष करना पड़ रहा है। उसे घर और आफिस का दोहरा काम करना पड़ रहा है। वह शारीरिक और मानसिक तौर पर बहुत थक जाती है, जिससे उसे घरेलू काम-काज में पति और सास के सहयोग की आवश्यकता होती है। इस सच्चाई को स्वीकार करना चाहिए।
संयुक्त परिवार समाज के दो मज़बूत पहलू हैं। यदि बहू और सास मिलकर बैठें तो संयुक्त परिवारों को टूटने से काफी हद तक बचाया जा सकता है। आजकल की युवा लड़कियों को अच्छी तरह समझ लेना चाहिए कि एक दिन उन्होंने भी सास बनना है और अपने परिवार की समूची मर्यादा कायम रखनी पड़नी है। 
सास और बहू के रिश्ते का सम्मान करें। परिवार की बुजुर्ग महिला (सास) एक धागे की तरह होती है, जो सभी सदस्यों को एक माला की तरह संजो कर रखती है। यदि वह धागा टूट जाए तो सभी मोती (सदस्य) बिखर जाते हैं। स्मरण रखें अमीर वह नहीं होता जहां सोने चांदी के ढेर लगे हों, अमीर वह होता है, जहां बहुएं, बेटियां और सास खुश हो।