.... वो याद बहुत आते हैं!

भारतवर्ष की महानता यह भी है कि इसमें रहने वाले महान व्यक्तित्वों के बारे में जितना लिखा जाए उतना ही कम लगता है। भारतवर्ष की स्वतंत्रता के बाद राष्ट्र-ध्वज तिरंगे से जुड़ी कितनी ही साहसिक कहानियां उन सभी देशभक्तों, क्रांतिकारियों और स्वतंत्रता सेनानियों की याद दिला देती है, जिन्होंने देश को स्वतंत्र कराने के लिए अपना सर्वस्व निछावर कर दिया और हमें आज़ादी दिलाई दी।दो अगस्त 1907 को स्टेटगार्ट, जर्मनी में भीका जी कामा ने अंतर्राष्ट्रीय समाजवादी कांग्रेस के अधिवेशन में देश का प्रतिनिधित्व किया। इस अधिवेशन में भाषण से पहले अपने देश का झंडा फहराना ज़रूरी था। उस समय भारतवर्ष स्वतंत्र नहीं था, तो कोई झंडा भी अपना नहीं था, लेकिन भीका जी कामा ने तुरंत एक झंडे को बनाया। उसमें हरि धारी पर आठ कमल के फूल आंके, जो देश के प्रांतों के प्रतीक थे। गेरुया रंग की धारी पर वंदे मातरम लिखा, लाल धारी पर दाईं ओर उगता सुनहरा सूर्य तथा बाईं ओर अर्द्ध चंद्र आंक दिया। देखते ही देखते एक सुंदर झंडा बन गया। अपने भाषण से पहले उन्होंने झंडा फहराया और कहा—यह झंडा स्वतंत्र भारत का प्रतीक है। गौर से देखिए, यह झंडा जन्म ले चुका है। आगे चलकर कुछ परिवर्तनों के साथ स्वतंत्र भारत का राष्ट्रीय ध्वज बनाया गया और यह राष्ट्रीय ध्वज हमारा प्यारा तिरंगा ही है। तिरंगे की इस यात्रा में ऊषा मेहता का नाम भी याद आता है, जिनका बचपन गुजरात के भड़ोच नगर में बीता। 1942 में गांधी जी का ‘अंग्रेज़ो भारत छोड़ो’ नारा और आंदोलन दोनों ही साथ-साथ चल रहे थे। उसी की प्रेरणा से ऊषा मेहता अपनी सहेलियों के साथ विरोध जुलूस के लिए हाथों में तिरंगा झंडा उठाए निकलीं और वंदे मातरम का गान किया। पुलिस ने झंडे छीनकर उन्हें भगा दिया। ऊषा कहां रुकने वाली थीं। उन्होंने और उसकी सहेलियों ने एक दर्जी को ढूंढा और रात में ही तिरंगे की पोशाकें सिलवाईं। उनको पहन कर हर लड़की चलता फिरता तिरंगा झंडा नज़र आ रही थी। पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया और विरोध जुलूस बंद करवा दिया। तिरंगे और स्वतंत्रता के प्रति यह राष्ट्रभक्ति किसी के अंदर भी नव-प्राण भर सकती है। राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे की कहानी में साइकिलिंग के खिलाड़ी और स्वतंत्रता सेनानी जानकीदास भी याद आते हैं। जानकीदास ने वर्ष 1946 में ज्यूरिख, स्विट्ज़रलैंड में होने वाले अंतर्राष्ट्रीय खेलों में तिरंगा झंडा लहरा दिया था। जानकीदास अपनी कमीज़ के नीचे तिरंगे को छुपा कर ले गए। जैसे ही यूनियन जैक नीचे उतरा, तब उसी जगह पर तिरंगा हवा में लहराने लगा। विदेशी भूमि पर अपना तिरंगा लहराने वाला यह साहसी खिलाड़ी तिरंगे की इस यात्रा में अपनी अमर गाथा लिख गया। हर हाथ तिरंगा, हर घर तिरंगा, हर दिल तिरंगा होना ही चाहिए। तिरंगा झंडा राष्ट्र का प्रतीक है। हमारे गौरव और स्वतंत्रता संग्राम की अमर गाथा का प्रतीक है। तिरंगा हमारी आन-बान-शान है। तिरंगे का सम्मान ही राष्ट्र का सच्चा सम्मान है।
 


वीना गौतम