पहले तोड़ो, फिर जोड़ो भारत 

लिखो तो आफत और न लिखो तो आफत। बोलो तो आफत  और न बोलो तो भी आफत। हम जैसे लेखकों के एक ओर कुआं तो दूसरी और खाई हमेशा से होती है। बावजूद इसके हम सब अपना काम करते हैं, ठीक उसी तरह जैसे देश में सियासत अपना काम करती है। सियासत न किसी के रोके रुकती है और न किसी से डरती है। इसी तरह न हम किसी के रोके रुके हैं और न किसी के डराने से डरे हैं। ये बात और है कि आजकल हमारे यहां भयाक्रांत करने वाली सियासत चल रही है।
पिछले तीन दशक से भी ज्यादा समय से इस देश में गांधी-नेहरू परिवार से कोई व्यक्ति प्रधानमंत्री नहीं बना, फिर भी निशाने पर यही परिवार है। सत्तारूढ़ दल पर आरोप है कि पिछले आठ साल से  उसकी ओर से देश को तोड़ने की कोशिश की जा रही है। ये कोशिश किश्तों में और केवल चुनावी फायदे के लिए की जा रही है। कभी भाषा के नाम पर, कभी धर्म के नाम पर, कभी राष्ट्रवाद के नाम पर। देश तोड़ने के लिए उपकरणों की कोई भी शक्ल हो सकती है लेकिन भारत गणराज्य की संरचना कुछ ऐसी है कि देश टूट नहीं रहा। भारत तोड़ने के लिए पहले बड़े राज्यों को तोड़ा गया। बाद में देश के मुकुटमणि जम्मू-कश्मीर के तीन टुकड़े कर दिए गए। वहां से लोकतंत्र समाप्त कर दिया गया। टूटे हुए राज्य में सभी को मतदाता बनने की इजाजत दे दी गयी लेकिन देश नहीं टूटा। देश इतनी आसानी से टूटता भी नहीं है। हमारे साथ ही आजाद हुए पाकिस्तान को टूटने में भी 24  साल लगे और उसके लिए बाकायदा जंग लड़ना पड़ी। भारत को तोड़ने के लिए भी बीते 75  साल से जंग लड़ी जा रही है किन्तु देश टूटा नहीं है।
सत्तारूढ़ भाजपा की इन कथित देश तोड़ो कोशिशों के जवाब में अब मृतप्राय कांग्रेस भारत जोड़ो अभियान शुरू कर रही है। कोई माने या न माने देश की आज़ादी के बाद से कांग्रेस के ही शासन काल में देश को जोड़ने की जो अनंत प्रक्रिया शुरू हुई वो 2014  तक जारी रही। भारत की आज़ादी के पूर्वोत्तर के कितने ही भारत संरक्षित राज्यों को पूर्ण राज्य का दर्जा देकर भारतीय गणराज्य का अंग बनाया गया। पूर्वोत्तर का चाहे सिक्किम हो, चाहे असम हो, चाहे मिजोरम हो सबके सब भारत के साथ जुड़े। टूटा कोई नहीं, हालाँकि पड़ोसी देशों ने इन सभी को तोड़ने की लाख कोशिशें कीं।
देश की राजनीति से लगातार हाशिये पर जा रही कांग्रेस के भारत जोड़ो अभियान का आप मजाक उड़ाना चाहें तो उड़ा सकते हैं। आप इस आंदोलन की सराहना करना चाहें तो कर सकते हैं, क्योंकि यह एक वक्ती आंदोलन है और इसकी देश को बहुत जरूरत है। देश बाहर से भले एक लग रहा हो किन्तु भीतर से यह जगह-जगह से टूट गया है। देश के किसान टूटे हैं, नौजवान टूटे हैं। महिलाएं टूट रहीं हैं, बच्चे टूट रहे हैं। और तो और देश की संवैधानिक संस्थाएं टूट रहीं हैं। मीडिया और अदालतों से भरोसा टूटे तो अरसा हो गया है।
देश को तोड़ने की जैसे होड़ लागी है। किसी महिला के सामूहिक दुष्कर्मियों की रिहाई हो या फिर घृणा फैलाने   वाले भाषण देने वाले लोगों को संरक्षण हो। ये सब देश तोड़ने की प्रक्रिया का ही एक हिस्सा हैं। ऐसे में देश को जोड़ने का अभियान महत्वपूर्ण हो जाता है। सत्तारूढ़ दल के लिए सबसे बड़ा खतरा कांग्रेस से ही है इसलिए उसके हिसाब से भारत जोड़ो आंदोलन भी एक चुनौती है। इस आंदोलन के ज़रिये कांग्रेस के अघोषित प्रधान राहुल गांधी अपने सैकड़ों, हजारों कार्यकर्ताओं के साथ एक लम्बी पदयात्रा करेंगे। मुमकिन है कि उनकी कोशिशों से देश जुड़ जाये! न भी जुड़े तो भी कोई बात नहीं क्योंकि कोशिश एक आशा से वाबस्ता चीज है। कोशिश हर आदमी को करना चाहिए। भारत की आज़ादी आंदोलनों के गर्भ से ही निकली है। देश में 9  अगस्त 1942  को भारत छोड़ो आंदोलन शुरू किया गया था। अब 80  साल बाद भारत जोड़ो आंदोलन शुरू किया जा रहा है। ये आंदोलन भले ही कांग्रेस का है लेकिन 150  दिन चलने वाले इस आंदोलन में कोई भी शामिल हो सकता है। इस आंदोलन के जरिये कांग्रेस देश की 3500  किमी की यात्रा करेगी और देश  को जोड़ने की कोशिश करेगी। पदयात्राएं करके ही देश को उद्वेलित, जागरूक किया जाता रहा है। गनीमत ये है कि कांग्रेस ने इस आंदोलन के लिए पदयात्रा को माध्यम बनाया, कोई रथयात्रा अंगीकार नहीं की। भाजपा ने देश की राजनीति में रथयात्रा के जरिये ही सत्ता का शीर्ष हासिल किया। 
यात्रा चाहे रथ पर सवार होकर की जाये, चाहे पैदल, दोनों का मकसद परिवर्तन ही होता है। सबके सब राजनीतिक लोग हैं । सबकी दृष्टि सत्ता पर होती है। इसमें कोई बुराई भी नहीं है, क्योंकि कलिकाल में सत्ता ही जनसेवा का सबसे बड़ा उपकरण है। ये उपकरण जिसके हाथ में है वो ही इस देश का भाग्यविधाता है । सत्ता हासिल करने के लिए दो ही तरीके हैं कि आप या तो जनादेश हासिल करें या जनादेश को खरीद लें। जब कुछ न कर पाएं  तो जनता के बीच जाएं।