टीम इंडिया को फिर लगी  बड़े टूर्नामैंट न जीत पाने की बीमारी ?

पिछले दिनों जब हमारी क्रिकेट टीम एशिया कप के लिए यूएई रवाना हुई थी तो वह टूर्नामैंट की ‘मोस्ट फेवरेट’ टीम थी। लेकिन हम जिस तरह पाकिस्तान और फिर श्रीलंका से हारे उसके बाद फाइनल में भी नहीं पहुंचे। इस टूर्नामैंट में  हमारा वही हाल हुआ जो पिछले विश्व कप में हुआ था। बात इतनी भर ही नहीं है। अगर गौर से देखें तो हम लगातार बड़े टूर्नामैंटों में ‘मोस्ट फेवरेट’ होने के बाद भी जिस तरह से फ्लोप हो रहे हैं, उससे लग रहा है हमें फिर बड़े टूर्नामैंटों में टांय टांय फिस्स होने की बीमारी लग गई है। पिछले 11 सालों में यह पहला ऐसा दौर है कि हम क्रिकेट के किसी भी बड़े टूर्नामैंट के चैंपियन नहीं है। न किसी आईसीसी टूर्नामैंट के न ही किसी एसीसी टूर्नामैंट के।
वास्तव में इसकी सबसे बड़ी वजह कप्तान और उसकी कप्तानी है। महेंद्र सिंह धोनी इस सदी के एकमात्र ऐसे भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान हैं, जिनकी अगुवाई में भारत ने पांच आईसीसी और एशियन क्रिकेट काउंसिल यानी एसीसी खिताब जीते हैं। पिछले 11 सालों में हमारी एक बड़ी उपलब्धि यह भी रही है कि हम हर समय किसी न किसी बड़े टूर्नामैंट के डिफेंडिंग चैंपियन रहे हैं। लेकिन हाल ही में यूएई में एशिया कप गंवाने के बाद अब हम किसी भी बड़े टूर्नामैंट के विजेता नहीं रहे। हम साल 2011 से 2015 तक विश्व कप विजेता थे। साल 2013 से 2017 तक चैंपियनशिप ट्राफी विजेता थे। जबकि साल 2016 से 2022 तक हमारे पास एशिया कप ट्राफी थी। अब इसके भी हम पूर्व विजेता हो गए हैं। बीच में कोरोना के चलते एक दो साल टूर्नामैंट नहीं आयोजित किया गया। गौरतलब है कि टीम इंडिया 1983 के बाद साल 2011 में जाकर वर्ल्ड कप चैंपियन बनी थी, जबकि इसके पहले तक लगातार भारत के पास एक से बढ़कर एक दिग्गज खिलाड़ी थे। लेकिन 2011 के विश्व कप को हम 2015 में डिफेंड नहीं कर पाये। 2015 में फिर से ऑस्ट्रेलिया ने अपनी बादशाहत कायम कर ली थी।
साल 2013 में हमने चैंपियन ट्राफी जीती थी, लेकिन साल 2017 में इस ट्राफी के भी विजेता नहीं रहे। पहली बार हम फाइनल में पाकिस्तान से बुरी तरह से हार गये। 2016 में हम एशिया कप में चैंपियन रहे थे। 2018 में हमने फिर से एशिया कप जीता। कहने का मतलब यह है कि अगर किसी एक बड़े टूर्नामैंट की बात की जाए तो पिछले 11 सालों से हमारे पास किसी न किसी बड़े टूर्नामैंट की ट्राफी हमेशा होती थी। हाल में एशिया कप में हारने के बाद हम पहली बार दुनिया की ऐसी धाकड़ टीम हैं, जिसके पास कोई भी आईसीसी या एसीसी क्रिकेट ट्राफी नहीं है। इस साल तो हम एशिया कप के फाइनल में भी नहीं पहुंच पाए। हालांकि इसी एशिया कप में पिछले तीन सालों से शतक के लिए जूझ रहे विराट कोहली ने अपना 71वां शतक जड़ दिया। लेकिन हम इस बड़े टूर्नामैंट से जिसके हम शुरु होने के पहले हर हाल में चैंपियन माने जा रहे थे, वैसे ही बाहर हो गये जैसे 2021 के विश्व कप में हम न्यूजीलैंड से हारकर फाइनल में नहीं पहुंच पाये थे।
अगर आंकड़ों को गहराई से देखें तो क्या यह तस्वीर बन रही है कि बड़े टूर्नामैंट में जीतने में प्रतिभाशाली खिलाड़ियों से ज्यादा प्रतिभाशाली कप्तान और उसकी कप्तानी महत्वपूर्ण होती है? इस सवाल का जवाब निश्चित रूप से ‘हां’ की तरफ  है। क्योंकि अगर भारत पिछले 11 सालों में पहली बार किसी भी क्रिकेट के बड़े टूर्नामैंट का डिफेंडिंग चैंपियन नहीं है तो इसके पीछे पहली नज़र में एक बड़ा कारण यही दिख रहा है कि इस समय महेंद्र सिंह धोनी न तो कैप्टन है और न ही एक खिलाड़ी के रूप में ही वो टीम का हिस्सा हैं। भारत ने हाल में एशिया कप में जिस तरह से लगातार पहले पाकिस्तान और फिर श्रीलंका से मैच 19वें ओवर में हारा, वह अपने आपमें यह देखने की बात थी कि कैसे चालाक और दूरदर्शी कप्तान जरूरी होते हैं ?
धोनी होते तो अगर वह हारे हुए मैच को भी नहीं जीत पाते तो भी कम से कम एक ही तरह से गलतियां करके दो बार मैच तो नहीं हारते। लेकिन एशिया कप में इस बार दो मैचों में कप्तान रोहित शर्मा ने एक ही जैसी गलती की। दोनों ही बार 19वां ओवर भुवनेश्वर कुमार से कराया। जिसमें एक बार उन्होंने 19 रन और एक बार 15 रन दिया। पाकिस्तान के खिलाफ  भारत हर हाल में जीतने की स्थिति में था, क्योंकि 12 गेंदों में 26 रन बनाने थे और पाकिस्तान के पास उस समय बैटिंग करने के लिए न तो बाबर आजम थे और न ही रिजवान खान। लेकिन 19वें ओवर में बार-बार फैंके गये वाइड बॉल और फिर प्रेशर में दिये गये चौकों व छक्कों के चलते हमने इस ओवर में 19 रन दे दिए। इसके बाद मैच ही कुछ नहीं बचा, फिर भी अर्शदीप सिंह ने पाकिस्तान को 7 रन बनाने के लिए पांच गेंदें खेलने के लिए मजबूर किया।
यही हाल श्रीलंका के विरूद्ध भी रहा। इससे साफ पता चलता है कि चाहे रोहित शर्मा हो या उसके पहले विराट कोहली, इन दोनों की ही कप्तानों में धोनी की जैसी क्रिकेटिंग समझ और स्मार्टनेस नहीं है, जो हारे हुए मैचों को भी जिता सकें या अपनी ताकत का बेहतर प्रदर्शन कर सकें। दरअसल धोनी ने ही हमें लगातार जीतने की आदत सिखायी थी। इसके पहले भी हम कभी कभार टूर्नामैंट जीता करते थे। चाहे विश्व के महान् आल राउंडर कपिल देव के नेतृत्व की बात रही हो या भारत में सबसे आक्रामक और साहसी निर्णय लेने के लिए मशहूर सौरव गांगुली रहे हों। लेकिन इन महान खिलाड़ियों के दौर में हम आमतौर पर एक या दो बड़े टूर्नामैंट ही जीत पाये हैं। यह अकेले धोनी ही है जिनके नेतृत्व में हमने सभी आईसीसी ट्राफियों पर अपना कब्जा जमाया है। चाहे वो टी-20 वर्ल्ड कप हो, चाहे चैंपियन ट्राफी हो, चाहे एकदिवसीय मैचों का विश्व कप हो या एशिया कप। हम सभी तरह के टूर्नामैंट धोनी के नेतृत्व में बड़ी सहजता से जीतते रहे हैं। क्योंकि धोनी में प्रेशर हैंडिल करने की अद्भुत क्षमता थी।
जब धोनी कप्तान होते थे तो वह न तो खुद और न ही उनकी प्लेइंग इलेवन का कोई खिलाड़ी खेलते समय पैनिक होता था। लेकिन धोनी के जाने के बाद हम दो देशों के आपसी टूर्नामैंट तो आसानी से जीत लेते हैं, लेकिन जब बात बड़े स्टेज की होती है यानी जहां दुनिया की ज्यादातर टीमें होती हैं, वहां हम यह मौका गंवा देते हैं। शायद इसमें सबसे बड़ी बात मैच के दौरान कप्तान का व्यवहार है। जिस तरह से एशिया कप में एक पाकिस्तानी खिलाड़ी का कैच छोड़ने पर रोहित शर्मा ने अर्शदीप पर चिल्लाये, वह सिर्फ  अर्शदीप पर ही नहीं बल्कि बहुत से दूसरे खिलाड़ियों पर भी प्रेशर का कारण बन गया, जिसका असर अगले मैच तक रहा।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर